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अभी कुछ दिन पहले स्पेस साइंटिस्ट सुनीता विलियम्स ने अंतरिक्ष की ओर अपनी दूसरी उड़ान भरी. यह पहला मौका नहीं है जब सुनीता विलियम्स ने अंतरिक्ष की ओर रुख किया. इससे पहले वर्ष 2007 में भी वह अंतरिक्ष तक अपनी पहुंच बना चुकी हैं जब लगभग 6 महीने के लिए उन्होंने अंतरिक्ष को ही अपना घर बना लिया था.
भले ही दुनियाभर की महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बन चुकी सुनीता का नाम आज किसी पहचान का मोहताज नहीं रह गया है लेकिन जब भी भारतीय मीडिया इनके नाम को प्रचारित करती है तो सुनीता विलियम्स नाम के आगे एक ऐसा विशेषण जोड़ देती है जो कुछ ज्यादा ही हास्यास्पद प्रतीत होता है. समाचार पत्रों और न्यूज चैनलों में सुनीता विलियम्स के स्पेस जाने जैसी जानकारी तो आपने पढ़ी और सुनी होगी जिनके लिए बिना किसी कारण “भारत की बेटी” जैसी संज्ञाओं का प्रयोग अवश्य किया जाता है.
इसे देखकर मेरे मन में यह सवाल उठा कि जिस महिला का भारतीय मिट्टी से कोई लेना-देना ही नहीं है उसे भारत की बेटी कहना कितना सही है? सुनीता विलियम्स के पिता दीपक पांड्या का जन्म भारत में हुआ था लेकिन जितना समय उन्होंने भारत में नहीं बिताया उससे कहीं ज्यादा समय उन्होंने अमेरिकी जमीन पर गुजारा है. उनकी भारतीय नागरिकता भी छिनी जा चुकी थी. सुनीता विलियम्स की मां एक अमेरिकी महिला थीं और उनके पति भी एक अमेरिकी ही हैं. सुनीता की पढ़ाई-लिखाई, उनका पालन-पोषण, संस्कार सभी अमेरिकी हैं. उनका भारत से कोई सीधा संबंध भी नहीं है लेकिन हम फिर भी खुद को संतुष्ट करने और बेवजह का श्रेय लेने के लिए उनके भारतीय होने का दम भरते रहते हैं.
सुनीता विलियम्स को भारत की बेटी कहना और उनकी उपलब्धियों पर अपनी पीठ थपथपाना यह प्रमाणित करता है कि हमारे देश में प्रतिभाओं का अकाल पड़ गया है और हम बिना कोई मौका गंवाए बेवजह अपनी उपलब्धियों का बखान करना चाहते हैं.
एक कहावत है बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना, जो हम भारतीयों पर बेहद सटीक बैठती है. अब देखिए एक ओर जहां हम भारतीय अपने देश की महिलाओं को दहेज के लिए जलाने में और उन पर तरह-तरह के अत्याचार करने में विश्वास करते हैं, उस देश के लोग जब सुनीता विलियम्स की कामयाबी पर अपनी सीना चौड़ा करते हैं तो हंसी तो आएगी ही. जहां कन्या भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा, बलात्कार जैसी घटनाएं आम हैं वहां सुनीता विलियम्स, जिसने अपने लिए एक ऐसा मुकाम बनाया है जो महिलाओं के लिए क्या बल्कि पुरुषों के लिए भी एक आदर्श है, की कामयाबी के मायने ही क्या रह जाते हैं? हम अपने घर की स्त्री और महिलाओं को अत्याचार करते हैं और जब कोई दूसरी महिला, जिसका हमसे दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है उसकी कामयाबी का जश्न मनाते हैं और वो भी सिर्फ इसीलिए ताकि वैश्विक स्तर पर हमारी पहचान सिर्फ कट्टर देश की ही नहीं बनी रहे इसलिए कहीं ना कहीं थोड़ी उदारता भी तो दिखानी चाहिए.
खुद को श्रेष्ठ और बेहतर साबित करने के लिए नए-नए हथकंडे अपनाना तो हम भारतीयों की पहचान रही है. सुनीता विलियम्स के नाम को अपने मतलब के लिए कैश करना इस सूची में एक अन्य नाम है.
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