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हिंदी ब्लौगिंग का हिंगलिश स्वरुप इसके स्वरुप को बिगाड़ेगा या इसकी स्वीकार्यता को बढायेगा –CONTEST

 भारत भारती
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हिंदी ब्लौगिंग का हिंगलिश स्वरुप इसके स्वरुप को बिगाड़ेगा या इसकी स्वीकार्यता को बढायेगा –CONTEST
भले ही हिंदी ब्लौगिंग का हिंगलिश स्वरुप युवाओं में खासा लोकप्रिय हो रहा हो व इसे हिंदी की स्वीकार्यता बढ़ाने के एक साधन के रूप में देखा जा रहा हो किन्तु मेरा मानना है कि हिंदी में अंग्रेजी की बढती मिलावट हिंदी के स्वास्थ्य के लिए अच्छी नहीं.प्रथमतया देखने पर ये आभास हो सकता है कि ऐसा करने से हिंदी के प्रचार–प्रसार करने में मदद मिलेगी किन्तु हिंदी का यह स्वरुप उसके भावी स्वरुप को बिगाड़ने का ही काम करेगा.वस्तुतः कुछ समय से आधुनिकीकरण व पश्चिमीकरण का एक और परोक्ष प्रभाव हमारे समाज पर पड़ा है जिसे मैं ‘शीघ्रीकरण’ कहती हूँ.अर्थात हमारी हर कार्य को अति शीघ्रता से करने की प्रवृत्ति बढती जा रही है. चाहे वो विवाह के समय होने वाली रस्में हों या फिर बच्चे के स्कूल जाने की उम्र, हमें सब कुछ समय से पहले चाहिए. जैसे ऐलोपैथी चिकित्सा सबसे जल्द इलाज करती है पर वास्तव में वह सिर्फ रोग के लक्षणों को दबाती है जो आगे चलके और घातकरोग के रूप में सामने आते हैं.हिंदी का हिंगलिश रूप भी तात्कालिक रूप से इसे अंग्रेजी के समानांतर खड़ा करने और देश–विदेश में फ़ैलाने में मददगार लग रहा हो पर इस विषाक्त खुराक की अभ्यस्त होने पर निकट भविष्य में वह इतनी अशक्त हो जायेगी कि उसे चलने के लिए अंग्रेजी शब्दों की बैसाखियो की अनिवार्यता हो जायेगी.किसी भी भाषा के लिए उसके अपने शब्द,वाक्य,विन्यास सभी का महत्वपूर्ण योगदान होता है.और उनका सही प्रयोग ही भाषा को बनाये रखता है. उदाहरणार्थ-आज के अधिकाँश युवा जो हिंदी में बात भी करते हैं वे तक हिंदी अंकों का इस्तेमाल नहीं जानते.आने वाले समय में पैंसठ ,सड़सठ जैसे शब्द उसी प्रकार लुप्त हो जायेंगे.जिस प्रकार ‘प्लीज़’,’सर’ व ‘सॉरी’ की जगह ‘कृपया ‘,’श्रीमान ‘ व ‘क्षमा कीजिये ‘जैसे शब्दों का प्रयोग लगभग समाप्त हो गया है.शायद इसका कारन भी हमारी शीघ्रीकरण की लत ही है जहाँ हिंदी के दो शब्द ज्यादा बोलने का कष्ट हम नहीं उठाना चाहते.आज ‘हिंगलिश’ का जो संकट हम महसूस कर रहे हैं वही संकट चीन व जापान में भी आया था जहाँ ‘चिंगलिश ‘व ‘जिन्ग्लिश ‘के बढते प्रभाव ने चीनी व जापानी भाषा प्रेमियों के समक्ष समस्या पैदा कर दी थी. किन्तु ‘सब चलता है’ और ‘हमें क्या मतलब’ जैसे सिद्धांत जो हमारे यहाँ सर्वव्यापक हैं वे वहाँ नहीं थे .चीन ने अपनी भाषा के महत्व को समझा और अपनी तमाम भाषाओँ को मिला कर ‘मंदारिन’ बना दी और आज वही भाषा विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी है.हाल ही में जापान के राष्ट्रीय चैनल के कार्यक्रम में अंग्रेजी के बढते प्रयोग के विरुद्ध वहाँ के प्रबुद्ध (किन्तु आम) नागरिक ने चैनल के विरूद्ध शिकायत दर्ज कराई जिससे ये पता चलता है कि जापान जैसे छोटे देश के आम नागरिक भी अपनी भाषा की शुद्धता के प्रति कितने जागरूक हैं.
इन सबके बीच मैं यह भी स्पष्ट करना चाहती हूँ कि हिंदी की शुद्धता से मेरा तात्पर्य हिंदी कों क्लिष्ट ,संस्कृतनिष्ठ,साहित्यिक रूप देना नहीं है. आज के दौर में ‘’टाइ’’ कों ‘‘कंठ लंगोट ‘‘, या ‘’बल्ब‘’ को ‘’विद्युत प्रकशित कांच गोलक ’’ कहने पर जोर देना अव्यावहारिक ही होगा .वह इसलिए कि शब्द सिखाए नहीं जाते बल्कि ग्रहण किये जाते हैं इन प्रचलित शब्दों को हम बहुत पहले ग्रहण कर चुके हैं तथा अब ये हमारे अवचेतन में जा चुके हैं.अतः ऐसे सभी शब्दों का निराकरण हमारे प्रवाहपूर्ण संवाद को कुप्रभावित करेगा.किन्तु पूर्व में की गयी गलतियों कों भविष्य में सुधार जा सकता है .अंग्रेजी में भी प्रतिवर्ष हिंदी के अनेक शब्द ज्यों के त्यों लिए जाते हैं .पर उसके बाद भी अंग्रेजी को कभी भी ‘हंग्रेजी’ बनाने की कोशिश नहीं की गयी .इसी प्रकार नियमबद्ध एवं परमावश्यक रूप से वांछित अंग्रेजी शब्दों को हिंदी में लाया जा सकता है ,जैसे कि –स्कूल शब्द को लाया गया .किन्तु सरलीकरण के नाम पर हिंदी के अपने हाथ –पैर काटके उसे अंग्रेजी रुपी कृत्रिम अंगों पर आश्रित करना उचित नहीं होगा . हिंदी ब्लौगिंग निश्चित ही हिंदी के लिए वरदान से कम नहीं किन्तु यदि इसमें भाषा की विशेषताओं को भी संरक्षण मिल जाये तो यह ‘सोने पर सुहागा’ हो जायेगा .

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