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सीबीआई आई…(कविता)

tarkeshkumarojha
tarkeshkumarojha
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आई .. आई .. सीबीआई …
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हम समझते थे , कुछ बात है तुममें
जरा अलग है हस्ती तुम्हारी …
लेकिन यह क्या , यहां भी वही छीनाझपटी और खींचतान की बीमारी
वही मैं बड़ा और स्वार्थ का झगड़ा
पद, पैसा और पावर का लफड़ा
बड़ा शोर सुनते थे आई .. आई .. सीबीआई
आज हर तरफ क्यों हो रही जगहंसाई
क्यों चल रहा शह – मात और घात – प्रतिघात
सैकड़ों पैबंदों से भी क्या बनेगी बात
अधिकारी बदलने से क्या बदलेगी सूरत
लौटे पाएगी जांच एजेंसी की पुरानी मूरत…

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