नीतीश का हस्र
कहीं राम विलास जैसा हश्र न हो नीतीश कुमार का…
दुनिया के अधिकांश देशों में लोकतांत्रिक सरकारें वोट के माध्यम से ही चुनी जाती है। लेकिन भारत सरीखी वोट बैंक की राजनीति और कहीं है या नहीं,दावे के साथ यह कहना मुशिकल ही है। लेकिन अपने देश यानी भारत में वोटबैंक की राजनीति ने देश की आजादी से पहले से ही गुल खिलाना शुरू कर दिया था। देश का विभाजन और इससे जुड़ी तमाम त्रासदियां इसी की उपज थी। अल्पसंख्यक वोट बैंक शुरू से ही राजनेताओं को लुभाते रहे हैं। इस लालच में कई अच्छे – भले नेता मतिभ्रम का शिकार बने। जिनमें भूतपूवर् प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। अपने समकालीन रहे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम बोफोर्स कांड में घसीट कर वी.पी. सिंह ने बड़ी तेजी से लोकप्रियता की सीढियां चढ़ी। जनता ने उन पर भरोसा कर उन्हें राजा नहीं फकीर बल्कि देश की तकदीर का दर्जा दे दिया। लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद इस राजा ने देश को मंडल व कमंडल के साथ तुष्टिकरण नीति की एक नई विषबेल सौंप दी। जिससे ऊबरने का कोई रास्ता देश को आज तक नहीं सूझ पाया है। वर्तमान राजनीति की बात करें, तो इसी मंडल राजनीति से उभरे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज वोट बैंक की राजनीति के सबसे बड़े पैरोकार बन कर उभरे हैं। एक साधारण बुद्धि का इंसान भी समझ सकता है कि जो नीतीश आज मोदी से दूरी दिखा कर अपने राज्य के अल्पसंख्यकों को रिझाने की कोशिश कर रहे हैं. वे यदि सचमुच तथाकथित धर्म निरपेक्ष होते तो भाजपा के साथ राजग में 17 साल तक रहते ही नहीं। सीधी सी बात है कि भाजपा के सहारे बिहार में खुद को स्थापित करने वाले नीतीश कुमार सही मायने में अब कांग्रेस की सहायता से खुद को केंद्र की राजनीति में स्थापित करना चाह रहे हैं। उनका सारा राजनीतिक कर्मकांड इसी वजह से हैं। लेकिन नीतीश कुमार को यह ख्याल रखना चाहिए कि इस कवायद में कहीं उनका हश्र अपने ही प्रदेश के एक और राजनेता राम विलास पासवान जैसा न हो। इतिहास गवाह है कि 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव में 29 सीटें जीत कर पासवान ने अपने ही कुनबे के नेताओं को यह कह कर ब्लैकमेल करना शुरू किया था, कि वे समथर्न तभी देंगे, जब किसी मुसलमान को मुख्यमंत्री बनाया जाए। लेकिन इसके बाद पासवान राजनैतिक बियावन में ऐसे भटके, कि वे आज तक वनवास ही झेल रहे हैं। तुष्टिकरण की खतरनाक नीति पर अमल करते समय नीतीश कुमार को इस बात को जरूर अपने जेहन में रखना चाहिए।
तारकेश कुमार ओझा,
भगवानपुर,
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