आडवानी का अभिमान
जब आदमी आ़डवाणी जैसी हरकत करने लगे…
व्यावहारिकता व वास्तविकता पर हावी भावुकता। कदाचित ऐसी मानसिक दशा मनुष्य की तब हौती है, जब वह अभिमान कर बैठता है। सच्चाई से वाकिफ होते हुए भी आत्मघाती जिद करने लगता है। कुछ ज्यादा व्यावहारिक ज्ञानी इसे सूक्ष्म हिंसा भी कहते हैं। अपने देश मे इस मान सिक दशा से गुजर कर अपना सर्वनाश करने वाले नामचीन लोगों की कमी नहीं है। दिग्गज भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी कुछ समय पहले ही ऐसी दशा से उबरे हैं. या उबरने की कोशिश कर रहे हैं. आडवाणी जैसा आचरण सिर्फ नामचीन लोग ही करते हों, ऐसी बात नहीं है। मेरे स्व. पिताजी समेत परिवार में काफी ऐसे बुजुर्ग थे, जो किसी बात पर नाराज होने पर अनशन पर बैठ जाते थे। पहर – पहर करते कई दिन बीत जाते, लेकिन वे अपनी जिद पर अड़े रहते। उन्हें मनाने की तमाम कोशिश बेकार सिद्ध होती। उन्हें पता रहता, कि बुजुर्ग के नाते यदि वे भोजन नहीं करेंगे, तो पूरे घर में इमर्जेंसी लग जाएगी। वैसे भी भला भूख से कोई कितने दिन लड़ सकता है, लिहाजा अंत में वहीं होता, जिसका प रिणाम सब जानते हैं। अंत में वे भूख के आगे ह थियार डाल देते। लेकिन अनशन तक परिजनों की जान सांसत में जरूर अटकी रहती। अब नामचीन लोगों की बात शुरू करें, तो सुपर स्टार राजेश खन्ना भी इसी मानसिक दशा का शिकार हो चुके हैं। अमिताभ बच्चन के उत्थान के बाद उन्हें भलीभांति पता था, कि उनकी पहली वाली इमेज अब किसी काम की नहीं रही। लेकिन अंत तक वे अपनी जिद पर अड़े रह कर अपना ही नुकसान करते रहे। एक और फिल्म स्टार विनोद खन्ना भी इसी मानसिक दशा के चंगुल में फंस कर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार चुके हैं। 70 और 80 के दशक में जब अमिताभ बच्चन की फिल्में धड़ाधड़ हिट हो रही थी, उन्हीं फिल्मों में विनोद खन्ना भी सहनायक के रूप में अपनी जबरदस्त उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। कई फिल्मों में तो वे अमिताभ पर भारी ही पड़ते नजर आए। लेकिन उन्हें अमिताभ बच्चन जैसा स्टारडम कभी नहीं मिला। लिहाजा अवसादग्रस्त होकर 1984 में वे पुणे स्थित रजनीश आश्रम में सन्यासी बन गए। लेकिन समुद्र में चिड़िया आखिर कब तक उड़ान भरती रह सकती है। एक दिन उसे जमीन पर आना ही पड़ता है। लिहाजा वे भी फिर उसी फिल्मी दुनिया में लौटे, जिसे वे एक समय छोड़ गए थे। आध्यात्म की बात करें, तो एक दौर में संत आसाराम बापू सर्वत्र पूजनीय थे। लेकिन समय का ऐसा फेर कि अचानक बाबा रामदेव की आधी चलने लगी। इसी तरह किक्रेट की दुनिया में भी कई ऐसे खिलाड़ी रहे हैं, जो किसी दौर में आडवाणी जैसी स्थिति से गुजर चुके हैं। अब अपने वीवीएस लक्ष्मण को ही ले लीजिए। अपनी जानदार पारी से वे हमेशा भारतीय टीम की नैया पार लगाते रहे,. लेकिन कभी टीम के राम नहीं बन पाए। लिहाजा असमय ही उन्हें किक्रेट से संन्यास लेना पड़ा। अन्यथा अभी उनकी उम्र् रिटायरमेंट की कहां हुई थी।
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