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लॉक डाउन और कोरोना की त्रासदी में असली जिंदगी भी सपनों सी हो चली है . पेश है इसी विडंबना पर खांटी खड़गपुरिया की चंद लाइनें ….
खुली आंखों का सपना ….!!
सुबह वाली लोकल पकड़ी
पहुंच गया कलकता
डेकर्स लेन में दोसा खाया
धर्मतल्ला में खरीदा कपड़ा – लत्ता
सियालदह – पार्क स्ट्रीट में निपटाया काम
दोस्तों संग मिला – मिलाया
जम कर छलकाया कुल्हड़ों वाला जाम
मिनी बस से हावड़ा पहुंचा
भीड़ इतनी कि बाप रे बाप
लोकल ट्रेन में जगह मिली तो
खाई मूढ़ी और चॉप
चलती ट्रेन में चिंता लगी झकझोरने
इस महीने एक बारात
और तीन शादी है निपटाने
नींद खुली तो होश उड़ गया अपना
मैं तो खुली आंखों से देख रहा था सपना
तारकेश कुमार ओझा- लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं। संपर्कः 9434453934, 9635221463
डिस्क्लेमर : उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण जंक्शन किसी भी दावे या आंकड़े की पुष्टि नहीं करता है।
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