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मौत के वो चार घंटे और फूलों का साथ, जानिए कैसे गार्डन के फूल बन गए एक ब्रेकिंग न्यूज का हिस्सा

तकनीक-ए- जहॉ
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वैसे एक बात तो माननी पड़ेगी कि भले ही विदेशी पृष्ठभूमि पर हम भारतीयों को हमारी सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं के लिए जाना जाता हो, यहां के तौर-अतरीके और त्यौहारों की तरफ विदेशी आकर्षित होते हों लेकिन हमारी काबीलियत सिर्फ यही तक सीमित नहीं है असल बात तो यह है कि हमने जीवन के हर क्षेत्र, चाहे बो खेल हो, सिनेमा हो, पढ़ाई हो, साहित्य हो या फिर आज की जरूरत बन चुका विज्ञान ही क्यों ना हो, में अपना परचम लहराया है. आज हम आपको ऐसे ही कुछ वैज्ञानिकों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने वैश्विक स्तर पर भारत का नाम सुनहरे अक्षरों में लिख दिया है:


सी.वी.रमन: 7 नवंबर, 1888 को जन्में चन्द्रशेखर वेंकटरमन पहले ऐसे एशियाई और अश्वेत व्यक्ति थे जिन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. प्रकाश के बिखराव से संबंधित अपनी उत्कृष्ट और उपयोगी स्थापनाओं की वजह से सी.वी.रमन को फिजिक्स के क्षेत्र में नोबल प्राइज प्रदान किया गया था. अक्टूबर 1970 में वेंकटरमन अपनी लैब में काम करते-करते बेहोश हो गए थे, उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने उन्हें कहा कि वह सिर्फ 3-4 घंटों तक ही जीवित रह सकते हैं. लेकिन काफी दुनों तक अस्पताल में रहे. लेकिन जब उन्हें यह आभास होने लगा कि उनकी मौत का समय निकट है तो अस्पताल में मरने से अच्छा उन्होंने अपने  कुछ दिनों बाद उन्होंने अस्पताल में रहने से मना कर दिया और अपने इंस्टिट्यूट के बागीचे में आकर फूलों के बीच अपना देह त्याग करने के लिए वापस आ गए. 21 नवंबर 1970 को उनका देहांत हो गया था.


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सत्येन्द्र नाथ बोस: क्वांटम मेकैनिक्स के विशेषज्ञ सत्येन्द्रनाथ बोस का जन्म 1 जनवरी,1894 को हुआ था. गॉड पार्टिकल की खोज में सत्येन्द्र नाथ बोस का योगदान वैश्विक स्तर पर अतुलनीय माना जाता है. इस पार्टिकल की खोज के बाद इसे बोस को ही समर्पित करते हुए इसका नाम ‘बोसोन’ रखा गया था. वर्ष 1937 में रबिन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी एकमात्र विज्ञान पर आधारित किताब विश्व-परिचय, बोस को डेडिकेट की थी.




श्रीनिवास रामनुजम: गणित में किसी भी प्रकार के औपचारिक प्रशिक्षण के बिना भी रामनुजन एक बेहतरीन गणितज्ञ थे. रामनुजम शुद्ध शाकाहारी व्यक्ति थे और आपको शायद पता ना हो लेकिन अपने इंगलैंड वास के दौरान रामानुजम को भयंकर स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों से दो-चार होना पड़ा था क्योंकि वहां उन्हें शाकाहारी खाना नहीं मिला था.


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विक्रम साराभाई: भारत के अंतरिक्ष प्रोग्राम के जनक के रूप में जाने जाते विक्रम साराभाई ने भारतीय स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन को स्थापित करने में अपना अहम योगदान दिया था. वर्ष 1966 में उन्हें पद्मभूषण और मृत्योपरांत 1972 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था.



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सलीम अली: पक्षी विद्या के जानकार और प्रकृतिवादी वैज्ञानिक सलीम अब्दुल अली पहले ऐसे भारतीय वैज्ञानिक थे जिन्होंने भारत में व्यस्थित तरीके से पक्षी सर्वेक्षणों का आयोजन किया था. पक्षियों पर आधारित उनके द्वारा लिखी गई किताबें इस विषय पर पढ़ने वाले और शोध करने वाले लोगों के लिए काफी फायदेमंद सिद्ध हुईं.




हर गोबिंग खोराना: फिजियोलॉजी और मेडिसिन के क्षेत्र में मार्शल डब्ल्यू के साथ नोबल प्राइज शेयर करने वाले हर गोबिंद खोरामा एक इंडो-अमेरिकी बाइकोकेमिस्ट थे. वर्ष 1970 में खोराना पहले ऐसे वैज्ञानिक बनें जिन्होंने एक जीवित कोशिका में कृत्रिम जीन का समंवय किया था. उनका यह कार्य आगे बायोटेक्नोलॉजी और जीन थेरेपी में हुई रिसर्च के लिए काफी लाभकारी सिद्ध हुआ था.



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