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विज्ञान और तकनीक जीवन को आसान बनाने में तो योगदान दे ही रहे थे लेकिन अब मानव जीवन में विज्ञान का दायरा और महत्व बहुत बढ़ने लगा है. इसी महत्व के परिणामस्वरूप वैज्ञानिक आम जन जीवन को और सुखद बनाने के लिए जन मानस को नई-नई सुविधाओं से अवगत करवाते जा रहे हैं.
मोटापा और मधुमेह, दो ऐसी बीमारियां हैं जिससे विश्व के अधिकांश लोग पीड़ित हैं. शारीरिक समस्या के साथ-साथ यह बीमारी मस्तिष्क तक को प्रभावित करने लगी है. मोटापे से ग्रस्त व्यक्तियों के भीतर आत्मविश्वास तो कम होता ही है वह बेवजह ही खुद को अन्य लोगों की तुलना में कमतर आंकने लगते हैं.
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए मोटापे जैसी समस्या के समाधान को ढूंढ़ते-ढूंढ़ते वैज्ञानिकों ने एक ऐसे बैक्टीरिया की खोज की है जो मोटापे को कम करने के लिए सहायक सिद्ध हो सकता है.
‘प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ में प्रकाशित इस शोध की रिपोर्ट के अनुसार जीवाणुओं की एक प्रजाति को चूहों में डाला गया. इसके बाद वैज्ञानिकों ने उन चूहों के शरीर में उल्लेखनीय बदलाव महसूस किए.
वैज्ञानिकों की मानें तो एक खास तरीके का बैक्टीरिया एकरमेंसिया म्यूसिनिफिला पेट की अंदरूनी झिल्ली की कार्यप्रणाली के साथ-साथ भोजन पाचन की प्रक्रिया को भी पूरी तरह बदल देता है. अब बस वैज्ञानिक चूहों पर हुए इस परीक्षण को मानव शरीर पर करने की तैयारी कर रहे हैं ताकि ये पता लगाया जा सके कि इन जीवाणुओं के असर से मानव शरीर का भार भी कम हो सकता है या नहीं.
इस शोध के अध्यक्ष और कैथोलिक यूनिवर्सिटी ऑफ लूवैन से संबद्ध प्रोफेसर पैट्रिस कानी की अगुवाई वाले इस शोध के अनुसार यह बात सामने आई है कि अलग-अलग शारीरिक भार वाले लोगों में एकरमेंसिया म्यूसिनिफिला नाम के जीवाणु की संख्या अलग-अलग होती है.
मोटापा कम करने के लिए की जानी वाली सर्जरी के आधार भी यह कहा जा सकता है कि इस बैक्टीरिया की वजह से पेट के जीवाणुओं की क्रियाओं में बदलाव आता है. प्रोफेसर कानी का कहना है कि मोटापे को पूरी तरह तो खत्म किया ही नहीं जा सकता, लेकिन इस जीवाणु का संबंध मोटापे को कम करने से है, यह बात ठीक है.
कानी का यह भी कहना है कि यह जीवाणु पेट की भीतरी झिल्ली में श्लेष्मा के स्तर को बढ़ा देता है. श्लेश्मा शरीर में एक अवरोधक की तरह काम करता है और साथ ही यह पाचन तंत्र में शामिल होने वाले रासायनिक संकेतों को भी बदल देता है जिससे शरीर में अत्याधिक और गैर-जरूरी वसा बनने की प्रक्रिया में बदलाव आता है और वजन अपने आप कम होने लगता है.
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