राजस्थान में कांग्रेस के नए प्रभारी महासचिव प्रभारी महासचिव गुरुदास कामत की नियुक्ति के बाद बुलाई गई प्रदेश कार्यसमिति की पहली बैठक में हाल ही राष्ट्रीय महासचिव बनाए गए डॉ. सी. पी. जोशी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को ज्ञान पिलाया। ज्ञान क्या समझो जहर का घूंट ही पिलाया। वे बोले कि हाईकमान को राजस्थान से बहुत उम्मीदें हैं, फिर से सत्ता प्राप्त करने के लिए आपको जहर पीना पड़ेगा, जैसे शिवजी ने पीया था। जोशी ने कहा कि बड़ा मन करके फैसले करने होंगे। आप राजस्थान के हर कार्यकर्ता की हैसियत जानते हैं। किस कार्यकर्ता को क्या दिया, उसके अब मायने नहीं रह गए हैं, उसका समय जा चुका है। समझा जा सकता है कि जोशी किस ओर इशारा कर रहे थे। असल में उन्हें दर्द इस बात का है कि उनके मन के मुताबिक नियुक्तियां नहीं की गईं। इस अर्थ में देखा जाए तो खुद जोशी ने ही शिवजी की तरह पूरे पांच साल जहर पिया। और अब गहलोत को जहर पीने की सलाह दे रहे हैं। सच तो ये है कि पूरे पांच साल गहलोत ने भी कम जहर नहीं पिया है। जोशी का जहर। उन्होंने राजनीतिक नियुक्तियों सहित संगठन के मामलों में टांग अड़ाई।
राजनीति के जानकार अच्छी तरह से जानते हैं कि अकेले जोशी की वजह से ही राजनीतिक नियुक्तियों में बहुत विलम्ब हुआ। वे हर मामले में टांड अड़ाते ही रहे। हालत ये है कि आज भी बोर्ड, आयोग व निगमों में 17 अध्यक्ष सहित सदस्यों के पदों पर 150 से ज्यादा नियुक्तियां बाकी हैं। मोटे तौर पर युवा बोर्ड, पशुपालन बोर्ड, देवनारायण बोर्ड, माटी कला बोर्ड, मगरा विकास बोर्ड, मेवात विकास बोर्ड, वरिष्ठ नागरिक बोर्ड, लघु उद्योग विकास निगम, गौ सेवा आयोग, भूदान आयोग, सफाई कर्मचारी आयोग के अध्यक्ष, एसटी आयोग में उपाध्यक्ष और निशक्तजन आयुक्त आदि के पद भरे जाने हैं। इसी प्रकार पांच नए बने नगर सुधार न्यासों में अध्यक्ष व न्यासियों की नियुक्तियां भी बाकी हैं, जो कि सीकर, बाड़मेर, पाली, चित्तौडगढ़़ और सवाईमाधोपुर में बनाई गई हैं।
हालांकि मीडिया में चर्चा यही है कि गहलोत बहुत जल्द ही बाकी बची राजनीतिक नियुक्तियां करने जा रहे हैं, मगर सवाल ये उठता है कि क्या चुनावी साल के आखिरी दौर में ये नियुक्तियां की जाएंगी? यदि की भी गईं तो उससे नियुक्ति पाने वालों को क्या हासिल होगा? क्या चंद माह के लिए वे इस प्रकार नियुक्ति का इनाम लेने को तैयार होंगे भी? चार माह बाद चुनाव होंगे और उसमें सरकार कांग्रेस की ही बनेगी, ये कैसे पक्के तौर पर माना जा सकता है? अगर भाजपा की सरकार आई तो वह उन्हें इन पदों से हटा देगी या फिर उन्हें खुद ही इस्तीफा देना पड़ जाएगा। खुद जोशी ने भी यही कहा कि अब समय जा चुका है। मगर साथ ही सच्चाई ये भी है कि यह समय उनकी वजह से ही चला गया।
जोशी के मन में गहलोत के प्रति कितना जहर भरा हुआ है, इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि वे बोले, मैं बैठक में आना नहीं चाहता था, क्योंकि अशोक जी के कुछ रिजर्वेशन हैं। कामत साहब ने आग्रह किया, जिसे टाल नहीं सका। वे बोले, मैं लीक से हट कर बोलना चाहता हूं। सवाल ये उठता है कि वे राजस्थान में मामले में कब लीक से हट कर नहीं बोले। जब भी बोले गहलोत को परेशान करने के लिए बोले।
असल में जोशी को सबसे बड़ा दर्द ये है कि वे मुख्यमंत्री बनना चाहते थे, मगर रह गए। मात्र एक वोट से हार जाने के कारण। बाद में भी कोशिशें ये ही करते रहे, मगर कामयाबी हासिल नहीं हुई। वे असंतुष्ट गतिविधियों को हवा देते रहे। कई बार असंतुष्ट दिल्ली दरबार में शिकायत करके आए। मगर गहलोत का बाल भी बांका नहीं हुआ। वजह साफ है कि गहलोत पर कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया का वरदहस्त रहा। जोशी ने राहुल को तो दिल जीत लिया, मगर गहलोत को नहीं हटवा पाए। यह दर्द भी उनके भाषण में उभर कर आया। बोले, अशोक जी आप सर्वमान्य नेता हो, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी का आप पर विश्वास रहा है और अब सोनिया गांधी का आप पर विश्वास है।
जोशी कितने कुंठित हैं, इसका अनुमान इसी बात से होता है कि वे फिर बोले, मैं फॉलोअर नहीं, कोलोब्रेटर हूं। मेरी जो हैसियत कांग्रेस ने बनाई है, जो विश्वास मुझ पर जताया है, उसके नाते मेरा फर्ज बनता है, मैं वो बातें कहूं, जो आज जरूरी हैं। सवाल ये उठता है कि उन्हें कौन कह रहा है कि वे गहलोत के फॉलोअर हैं, मगर बार-बार यही बात दोहराते हैं। आज कांग्रेस महासचिव बनाए गए हैं तो उस पद के नाते नसीहत देने से नहीं चूक रहे। जोशी ने कॉलोबरेटर की बात फिर से कह कर यह भी जताने का प्रयास किया कि कांग्रेस की राजनीति में वे भी अब बड़ा कद रखते हैं।
लब्बोलुआब, राजनीति के पंडितों का मानना है कि जोशी आने वाले दिनों में राहुल गांधी के मार्फत टिकट वितरण के मामले में भी टांग अड़ाने से बाज नहीं आएंगे।
-तेजवानी गिरधर
राजस्थान में कांग्रेस के नए प्रभारी महासचिव प्रभारी महासचिव गुरुदास कामत की नियुक्ति के बाद बुलाई गई प्रदेश कार्यसमिति की पहली बैठक में हाल ही राष्ट्रीय महासचिव बनाए गए डॉ. सी. पी. जोशी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को ज्ञान पिलाया। ज्ञान क्या समझो जहर का घूंट ही पिलाया। वे बोले कि हाईकमान को राजस्थान से बहुत उम्मीदें हैं, फिर से सत्ता प्राप्त करने के लिए आपको जहर पीना पड़ेगा, जैसे शिवजी ने पीया था। जोशी ने कहा कि बड़ा मन करके फैसले करने होंगे। आप राजस्थान के हर कार्यकर्ता की हैसियत जानते हैं। किस कार्यकर्ता को क्या दिया, उसके अब मायने नहीं रह गए हैं, उसका समय जा चुका है। समझा जा सकता है कि जोशी किस ओर इशारा कर रहे थे। असल में उन्हें दर्द इस बात का है कि उनके मन के मुताबिक नियुक्तियां नहीं की गईं। इस अर्थ में देखा जाए तो खुद जोशी ने ही शिवजी की तरह पूरे पांच साल जहर पिया। और अब गहलोत को जहर पीने की सलाह दे रहे हैं। सच तो ये है कि पूरे पांच साल गहलोत ने भी कम जहर नहीं पिया है। जोशी का जहर। उन्होंने राजनीतिक नियुक्तियों सहित संगठन के मामलों में टांग अड़ाई।
राजनीति के जानकार अच्छी तरह से जानते हैं कि अकेले जोशी की वजह से ही राजनीतिक नियुक्तियों में बहुत विलम्ब हुआ। वे हर मामले में टांड अड़ाते ही रहे। हालत ये है कि आज भी बोर्ड, आयोग व निगमों में 17 अध्यक्ष सहित सदस्यों के पदों पर 150 से ज्यादा नियुक्तियां बाकी हैं। मोटे तौर पर युवा बोर्ड, पशुपालन बोर्ड, देवनारायण बोर्ड, माटी कला बोर्ड, मगरा विकास बोर्ड, मेवात विकास बोर्ड, वरिष्ठ नागरिक बोर्ड, लघु उद्योग विकास निगम, गौ सेवा आयोग, भूदान आयोग, सफाई कर्मचारी आयोग के अध्यक्ष, एसटी आयोग में उपाध्यक्ष और निशक्तजन आयुक्त आदि के पद भरे जाने हैं। इसी प्रकार पांच नए बने नगर सुधार न्यासों में अध्यक्ष व न्यासियों की नियुक्तियां भी बाकी हैं, जो कि सीकर, बाड़मेर, पाली, चित्तौडगढ़़ और सवाईमाधोपुर में बनाई गई हैं।
हालांकि मीडिया में चर्चा यही है कि गहलोत बहुत जल्द ही बाकी बची राजनीतिक नियुक्तियां करने जा रहे हैं, मगर सवाल ये उठता है कि क्या चुनावी साल के आखिरी दौर में ये नियुक्तियां की जाएंगी? यदि की भी गईं तो उससे नियुक्ति पाने वालों को क्या हासिल होगा? क्या चंद माह के लिए वे इस प्रकार नियुक्ति का इनाम लेने को तैयार होंगे भी? चार माह बाद चुनाव होंगे और उसमें सरकार कांग्रेस की ही बनेगी, ये कैसे पक्के तौर पर माना जा सकता है? अगर भाजपा की सरकार आई तो वह उन्हें इन पदों से हटा देगी या फिर उन्हें खुद ही इस्तीफा देना पड़ जाएगा। खुद जोशी ने भी यही कहा कि अब समय जा चुका है। मगर साथ ही सच्चाई ये भी है कि यह समय उनकी वजह से ही चला गया।
जोशी के मन में गहलोत के प्रति कितना जहर भरा हुआ है, इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि वे बोले, मैं बैठक में आना नहीं चाहता था, क्योंकि अशोक जी के कुछ रिजर्वेशन हैं। कामत साहब ने आग्रह किया, जिसे टाल नहीं सका। वे बोले, मैं लीक से हट कर बोलना चाहता हूं। सवाल ये उठता है कि वे राजस्थान में मामले में कब लीक से हट कर नहीं बोले। जब भी बोले गहलोत को परेशान करने के लिए बोले।
असल में जोशी को सबसे बड़ा दर्द ये है कि वे मुख्यमंत्री बनना चाहते थे, मगर रह गए। मात्र एक वोट से हार जाने के कारण। बाद में भी कोशिशें ये ही करते रहे, मगर कामयाबी हासिल नहीं हुई। वे असंतुष्ट गतिविधियों को हवा देते रहे। कई बार असंतुष्ट दिल्ली दरबार में शिकायत करके आए। मगर गहलोत का बाल भी बांका नहीं हुआ। वजह साफ है कि गहलोत पर कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया का वरदहस्त रहा। जोशी ने राहुल को तो दिल जीत लिया, मगर गहलोत को नहीं हटवा पाए। यह दर्द भी उनके भाषण में उभर कर आया। बोले, अशोक जी आप सर्वमान्य नेता हो, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी का आप पर विश्वास रहा है और अब सोनिया गांधी का आप पर विश्वास है।
जोशी कितने कुंठित हैं, इसका अनुमान इसी बात से होता है कि वे फिर बोले, मैं फॉलोअर नहीं, कोलोब्रेटर हूं। मेरी जो हैसियत कांग्रेस ने बनाई है, जो विश्वास मुझ पर जताया है, उसके नाते मेरा फर्ज बनता है, मैं वो बातें कहूं, जो आज जरूरी हैं। सवाल ये उठता है कि उन्हें कौन कह रहा है कि वे गहलोत के फॉलोअर हैं, मगर बार-बार यही बात दोहराते हैं। आज कांग्रेस महासचिव बनाए गए हैं तो उस पद के नाते नसीहत देने से नहीं चूक रहे। जोशी ने कॉलोबरेटर की बात फिर से कह कर यह भी जताने का प्रयास किया कि कांग्रेस की राजनीति में वे भी अब बड़ा कद रखते हैं।
लब्बोलुआब, राजनीति के पंडितों का मानना है कि जोशी आने वाले दिनों में राहुल गांधी के मार्फत टिकट वितरण के मामले में भी टांग अड़ाने से बाज नहीं आएंगे।
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