Menu
blogid : 4737 postid : 737215

तोगडिय़ा ने की नए विवाद को जन्म देने की कोशिश

the third eye
the third eye
  • 183 Posts
  • 707 Comments
-तेजवानी गिरधर-
विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. प्रवीण भाई तोगडिय़ा ने एक बार फिर हंगामा खड़ा करने के लिए सांप्रदायिक सौहार्द्र की नगरी अजमेर को चुना है। वे ग्यारह साल पहले 13 अप्रैल 2003 को भी वे राज्य में भगवाकरण का बिगुल बजाने के लिए अजमेर आए थे। उस समय वह विश्व हिन्दू परिषद के अंतरराष्ट्रीय महामंत्री थे। उन्होंने सुभाष बाग में विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और शिव सेना करीब साढ़े छह सौ कार्यकर्ताओं को त्रिशूल दीक्षा दी। उन्हें शपथ दिलाई कि अपने त्रिशूल उठाओ, गर्व करो कि तुम भगवान शंकर और मां दुर्गा की पूजा करते हो, सौगंध लो कि राम मंदिर बनाएंगे, पाकिस्तान का नामोनिशान मिटाएंगे और फिर से भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाएंगे। इस भाषण पर तीव्र प्रतिक्रिया हुई और तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सख्ती बरतते हुए उन्हें गिरफ्तार करवा दिया था। तोगडिय़ा के साथ उस समय विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ता गोपी कृष्ण, जवरी लाल, सर्वेश्वर अग्रवाल और भगवती प्रसाद सारस्वत भी लपेट में आए थे। बाद में भाजपा की वसुंधरा राजे सरकार ने 7 सितंबर 2006 को यह मुकदमा वापस ले लिया।  उसके बाद लंबे अरसे तक तोगडिय़ा ने राजस्थान का रुख नहीं किया था।
एक बार फिर उन्होंने सांप्रदायिक धु्रवीकरण की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए अजमेर को चुना। वह भी ऐसे मौके पर जबकि यहां सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का आठ सौ दो वां सालाना उर्स औपचारिक रूप से शुरू हो चुका है। उन्होंने सीधे-सीधे उर्स को निशाने पर लेते हुए कहा है कि पिछले दिनों में अजमेर जिले में जो गोवंश पकड़ा गया, वह उर्स में कटने के लिए लाया जा रहा था। चूंकि गो हत्या निषेध कानून देश में लागू है, अत: उस स्थान पर रिलीजियस गेदरिंग की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जहां गोवंश की हत्या हो रही हो। सरकार को चाहिए कि वह उर्स की परमिशन देने वालों व व्यवस्था में जुटे लोगों पर गोहत्या कानून के तहत मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार करे। अर्थात उन्होंने साफ तौर पर जिला कलेक्टर व जिला पुलिस अधीक्षक कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है। प्रशासन ही क्यों, एक तरह से उन्होंने प्रदेश की भाजपा सरकार को भी अप्रत्यक्ष रूप से घेरा है। अगर गोवंश की हत्या उर्स मेले में आने वाले जायरीन के लिए की जा रही है तो इसके लिए मुसलमानों की बजाय सरकारी मशीनरी ही जिम्मेदार है। ऐन उर्स के मौके पर उनके इस बयान का मकसद समझा जा सकता है। ये तो गनीमत है कि अजमेर की आबोहवा ही ऐसी है कि यहां इस प्रकार की सांप्रदायिक गंध यकायक कुछ खास असर नहीं करती, वरना कोशिश तो यही प्रतीत होती है कि बड़ा हंगामा खड़ा हो जाए। इस बार चूंकि प्रदेश में भाजपा की सरकार है, अत: इस बात की कोई भी संभावना नहीं है कि वह तोगडिय़ा के इस बयान को कार्यवाही के लिहाज से गंभीरता से लेगी। कार्यवाही करती है तो भी दिक्कत होगी। अलबत्ता पुलिस ने जरूर त्वरित प्रतिक्रिया देते ठंडे छींटे डालने की कोशिश की है।
अजमेर के जिला पुलिस अधीक्षक महेन्द्र सिंह चौधरी ने साफ तौर पर कहा है कि डॉ. तोगडिय़ा ने जो बयान दिया है, वह बेबुनियाद है। अजमेर में कभी भी, किसी भी अनुसंधान में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ऐसी कोई बात या किसी मुल्जिम का ऐसा कोई बयान नहीं आया कि अजमेर में या उर्स के दौरान कटने के लिए गोवंश लाया जा रहा था। स्पष्ट है कि तोगडिय़ा का बयान हवा में तीर छोडऩे जैसा है, जो तथ्य की कसौटी पर खरा नहीं ठहरता। रहा सवाल पुलिस की प्रतिक्रिया का तो स्वाभाविक सी बात है कि चौधरी पर उर्स शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न करवाने की जिम्मेदारी है, इस कारण उन्हें तो आगे आना ही था। अगर खुदानखास्ता तोगडिय़ा के बयान से विवाद पैदा होता है तो सरकार उनका ही गला पकड़ेगी।
वैसे तोगडिय़ा का ताजा बयान लोकसभा चुनाव के दौरान सांप्रदायिक धु्रवीकरण पैदा करने की मुहिम का एक हिस्सा माना जा रहा है। हालांकि अब राजस्थान की सभी पच्चीस सीटों के चुनाव हो चुके हैं, इस कारण यहां तो इसका असर चुनावी लिहाज से कुछ नहीं पडऩा, मगर उन राज्यों में तो बयान की तपिश पहुंचाई ही जा सकती है, जहां अभी मतदान होना बाकी है। ज्ञातव्य है कि उर्स मेले में गुजरात, आंध्रप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल से बड़ी संख्या में मुस्लिम आते हैं और इन राज्यों में 30 अप्रैल, 7 मई और 12 मई को मतदान होना है।
बात अगर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की बनाई गई लहर के संदर्भ में करें तो इस बयान से मोदी को दिक्कत आ सकती है, क्योंकि वे यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि उनकी सरकार आई तो मुसलमानों के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। ऐसे में तोगडिय़ा के बयान से विरोधी दलों को यह कहने का मौका मिल जाएगा कि मोदी का मुखौटा भले ही एक विकास पुरुष के रूप में प्रोजेक्ट किया गया है, मगर भाजपा के हार्डलाइनर तो मुसलमानों के खिलाफ ही हैं। ज्ञातव्य है कि हाल ही मोदी ने एक और भड़काऊ बयान दिया था, जिसे मोदी ने गलत ठहराया था। यहां यह अंडरस्टुड है कि तोगडिय़ा को मोदी विरोधी माना जाता है।
बहरहाल, जानकार यही मानते हैं कि तोगडिय़ा की नजर में भले ही दरगाह की वजह से अजमेर संवेदनशील व हंगामा करने के लिए उपयुक्त जगह हो, और उसकी प्रतिक्रिया देश के अन्य हिस्सों में हो सकती हो, मगर धरातल का सच ये है कि कम से कम अजमेर में तो कोई खास प्रतिक्रिया नहीं होगी। कारण सिर्फ ये है कि हिंदू हो या मुस्लिम, दोनों के लिए उर्स आर्थिक रूप से महत्वपूूर्ण है। भारी तादाद में जायरीन की आवक से जहां हिंदू दुकानदार साल भर की कमाई उर्स के दौरान करते हैं, वहीं दरगाह में जियारत की जिम्मेदारी निभाने वाले खादिमों को भी अच्छा खास नजराना मिलता है। ऐसे में भला कौन चाहेगा कि तोगडिय़ा के बयान से उत्तेजित हो कर हंगामे का हिस्सा बना जाए?

togariya-तेजवानी गिरधर- विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. प्रवीण भाई तोगडिय़ा ने एक बार फिर हंगामा खड़ा करने के लिए सांप्रदायिक सौहार्द्र की नगरी अजमेर को चुना है। वे ग्यारह साल पहले 13 अप्रैल 2003 को भी वे राज्य में भगवाकरण का बिगुल बजाने के लिए अजमेर आए थे। उस समय वह विश्व हिन्दू परिषद के अंतरराष्ट्रीय महामंत्री थे। उन्होंने सुभाष बाग में विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और शिव सेना करीब साढ़े छह सौ कार्यकर्ताओं को त्रिशूल दीक्षा दी। उन्हें शपथ दिलाई कि अपने त्रिशूल उठाओ, गर्व करो कि तुम भगवान शंकर और मां दुर्गा की पूजा करते हो, सौगंध लो कि राम मंदिर बनाएंगे, पाकिस्तान का नामोनिशान मिटाएंगे और फिर से भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाएंगे। इस भाषण पर तीव्र प्रतिक्रिया हुई और तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सख्ती बरतते हुए उन्हें गिरफ्तार करवा दिया था। तोगडिय़ा के साथ उस समय विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ता गोपी कृष्ण, जवरी लाल, सर्वेश्वर अग्रवाल और भगवती प्रसाद सारस्वत भी लपेट में आए थे। बाद में भाजपा की वसुंधरा राजे सरकार ने 7 सितंबर 2006 को यह मुकदमा वापस ले लिया।  उसके बाद लंबे अरसे तक तोगडिय़ा ने राजस्थान का रुख नहीं किया था।

एक बार फिर उन्होंने सांप्रदायिक धु्रवीकरण की मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए अजमेर को चुना। वह भी ऐसे मौके पर जबकि यहां सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का आठ सौ दो वां सालाना उर्स औपचारिक रूप से शुरू हो चुका है। उन्होंने सीधे-सीधे उर्स को निशाने पर लेते हुए कहा है कि पिछले दिनों में अजमेर जिले में जो गोवंश पकड़ा गया, वह उर्स में कटने के लिए लाया जा रहा था। चूंकि गो हत्या निषेध कानून देश में लागू है, अत: उस स्थान पर रिलीजियस गेदरिंग की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जहां गोवंश की हत्या हो रही हो। सरकार को चाहिए कि वह उर्स की परमिशन देने वालों व व्यवस्था में जुटे लोगों पर गोहत्या कानून के तहत मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार करे। अर्थात उन्होंने साफ तौर पर जिला कलेक्टर व जिला पुलिस अधीक्षक कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है। प्रशासन ही क्यों, एक तरह से उन्होंने प्रदेश की भाजपा सरकार को भी अप्रत्यक्ष रूप से घेरा है। अगर गोवंश की हत्या उर्स मेले में आने वाले जायरीन के लिए की जा रही है तो इसके लिए मुसलमानों की बजाय सरकारी मशीनरी ही जिम्मेदार है। ऐन उर्स के मौके पर उनके इस बयान का मकसद समझा जा सकता है। ये तो गनीमत है कि अजमेर की आबोहवा ही ऐसी है कि यहां इस प्रकार की सांप्रदायिक गंध यकायक कुछ खास असर नहीं करती, वरना कोशिश तो यही प्रतीत होती है कि बड़ा हंगामा खड़ा हो जाए। इस बार चूंकि प्रदेश में भाजपा की सरकार है, अत: इस बात की कोई भी संभावना नहीं है कि वह तोगडिय़ा के इस बयान को कार्यवाही के लिहाज से गंभीरता से लेगी। कार्यवाही करती है तो भी दिक्कत होगी। अलबत्ता पुलिस ने जरूर त्वरित प्रतिक्रिया देते ठंडे छींटे डालने की कोशिश की है।

अजमेर के जिला पुलिस अधीक्षक महेन्द्र सिंह चौधरी ने साफ तौर पर कहा है कि डॉ. तोगडिय़ा ने जो बयान दिया है, वह बेबुनियाद है। अजमेर में कभी भी, किसी भी अनुसंधान में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ऐसी कोई बात या किसी मुल्जिम का ऐसा कोई बयान नहीं आया कि अजमेर में या उर्स के दौरान कटने के लिए गोवंश लाया जा रहा था। स्पष्ट है कि तोगडिय़ा का बयान हवा में तीर छोडऩे जैसा है, जो तथ्य की कसौटी पर खरा नहीं ठहरता। रहा सवाल पुलिस की प्रतिक्रिया का तो स्वाभाविक सी बात है कि चौधरी पर उर्स शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न करवाने की जिम्मेदारी है, इस कारण उन्हें तो आगे आना ही था। अगर खुदानखास्ता तोगडिय़ा के बयान से विवाद पैदा होता है तो सरकार उनका ही गला पकड़ेगी।

वैसे तोगडिय़ा का ताजा बयान लोकसभा चुनाव के दौरान सांप्रदायिक धु्रवीकरण पैदा करने की मुहिम का एक हिस्सा माना जा रहा है। हालांकि अब राजस्थान की सभी पच्चीस सीटों के चुनाव हो चुके हैं, इस कारण यहां तो इसका असर चुनावी लिहाज से कुछ नहीं पडऩा, मगर उन राज्यों में तो बयान की तपिश पहुंचाई ही जा सकती है, जहां अभी मतदान होना बाकी है। ज्ञातव्य है कि उर्स मेले में गुजरात, आंध्रप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल से बड़ी संख्या में मुस्लिम आते हैं और इन राज्यों में 30 अप्रैल, 7 मई और 12 मई को मतदान होना है।

बात अगर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की बनाई गई लहर के संदर्भ में करें तो इस बयान से मोदी को दिक्कत आ सकती है, क्योंकि वे यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि उनकी सरकार आई तो मुसलमानों के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। ऐसे में तोगडिय़ा के बयान से विरोधी दलों को यह कहने का मौका मिल जाएगा कि मोदी का मुखौटा भले ही एक विकास पुरुष के रूप में प्रोजेक्ट किया गया है, मगर भाजपा के हार्डलाइनर तो मुसलमानों के खिलाफ ही हैं। ज्ञातव्य है कि हाल ही मोदी ने एक और भड़काऊ बयान दिया था, जिसे मोदी ने गलत ठहराया था। यहां यह अंडरस्टुड है कि तोगडिय़ा को मोदी विरोधी माना जाता है।

बहरहाल, जानकार यही मानते हैं कि तोगडिय़ा की नजर में भले ही दरगाह की वजह से अजमेर संवेदनशील व हंगामा करने के लिए उपयुक्त जगह हो, और उसकी प्रतिक्रिया देश के अन्य हिस्सों में हो सकती हो, मगर धरातल का सच ये है कि कम से कम अजमेर में तो कोई खास प्रतिक्रिया नहीं होगी। कारण सिर्फ ये है कि हिंदू हो या मुस्लिम, दोनों के लिए उर्स आर्थिक रूप से महत्वपूूर्ण है। भारी तादाद में जायरीन की आवक से जहां हिंदू दुकानदार साल भर की कमाई उर्स के दौरान करते हैं, वहीं दरगाह में जियारत की जिम्मेदारी निभाने वाले खादिमों को भी अच्छा खास नजराना मिलता है। ऐसे में भला कौन चाहेगा कि तोगडिय़ा के बयान से उत्तेजित हो कर हंगामे का हिस्सा बना जाए?

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh