Menu
blogid : 4737 postid : 867759

कश्मीर हमारा आतंरिक मामला तो पाक व यूएन से काहे का डर

the third eye
the third eye
  • 183 Posts
  • 707 Comments

जो काम पिछले सत्तर साल में कोई सरकार नहीं कर पाई, वह भाजपा ने पूर्ण बहुमत हासिल करने के बाद कर दिखाया। जी, बात जम्मू-कश्मीर में धारा 370 व 35 ए को हटाने की है। यह भाजपा का जन्मजात चुनावी मुद्दा था। जाहिर तौर पर वह अपनी पीठ भी थपथपा रही है। पिछले पांच अगस्त को सरकार ने ऐतिहासिक कदम उठा तो लिया, चक्रव्यूह भेद तो दिया, मगर अब उसमें से कैसे निकला जाएगा, यह भविष्य के गर्भ में है, क्यों कि मामला दिन ब दिन पेचीदा होता जा रहा है। कश्मीर, विशेष रूप से घाटी सेना के पूर्ण कब्जे में है। जनजीवन ठप है। सरकार हालांकि हालात सामान्य जताने की कोशिश कर रही है, मगर मीडिया व संचार माध्यमों पर नियंत्रण के बावजूद छन-छन कर आ रही खबरें इशारा कर रही हैं कि हालात काफी गंभीर हैं।

इस बीच मौलिक अधिकारों के हनन व अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश की कड़ी आलोचना भी होने लगी है। लोकतंत्र में विरोध के इन सुरों को पाकिस्तान परस्ती करार दिया जा रहा है। जो भी खिलाफत कर रहा है, उसके प्रति नफरत फैलाई जा रही है। सवाल ये उठता है कि जब कश्मीर हमारा आंतरिक मामला है तो उस पर पाकिस्तान के रुख व संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका की फिक्र क्यों की जा रही है? कश्मीर निसंदेह हमारा ही है तो पाकिस्तान के रवैये का कॉग्लीजेशन काहे को ले रहे हैं? कहा जा रहा है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कश्मीर के हालात पर टिप्पणी करके पाकिस्तान परस्ती का काम किया है। पाकिस्तान को उनकी टिप्पणी को संयुक्त राष्ट्र संघ में कोट करने का मौका मिल गया है। केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने तो यहां तक कह दिया कि राहुल पाक के हाथ खेल रहे हैं।

असल में हुआ ये कि पाकिस्तान के मानवाधिकार मंत्री डॉ. चिरीन मजारी ने यूएनओ को आठ पेज की एक पिटीशन भेजी है, जिसमें न केवल राहुल के बयान का जिक्र है, अपितु हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर व खतौली के भाजपा विधायक विक्रम सैनी के बयान का भी हवाला है। ज्ञातव्य है कि राहुल ने कश्मीर में हालात खराब होने का बयान दिया है। इसी प्रकार खट्टर ने कहा था कि हमारे युवक अब कश्मीर की गोरी लड़कियों से शादी कर सकते हैं। सैनी ने कहा था कि अब हमारे मुस्लिम वर्कर अब कश्मीर में विवाह कर सकते हैं। आठ पेज के पत्र में राहुल का मामूली जिक्र है, मगर भाजपा प्रवक्ता राहुल पर बढ़-चढ़ कर हमले बोल रहे हैं। विपक्ष के धारा 370 को हटाने के विरोध को यूनए में वेटेज मिलेगा। दूसरी ओर खट्टर व सैनी के बयानों को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं।

बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट में भी इसी मुद्दे पर हुए वाकये से जाहिर होता है कि सरकार प्रकरण यूएन में जाने से घबरा रही है। जब कुछ यचिकाओं की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पांच जजों की एक संविधान पीठ बनाने की मंशा जताई तो सरकार के अटार्नी जनरल के के वेनु गोपाल व सोलिसटिर जनरल तुषार महेता ने कहा कि आपके फैसले को पाकिस्तान यूएन में ले जाएगा। प्रश्र ये है कि जो भी कश्मीर पर सरकार के कदम से इतर राय रखता है, उसे पाक परस्त बताया जा रहा है, तो क्या सुप्रीम कोर्ट का समीक्षा के लिए संविधान पीठ बनाना भी पाक परस्ती है? सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया की आजादी पर अंकुश को लेकर सरकार को नोटिस जारी किया है, तो वह भी क्या पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र संघ में मुद्दा उठाने का हथियार माना जाए?

घूम फिर कर बात यही है कि राहुल गांधी की टिप्पणी व सुप्रीम कोर्ट के कदम से पाकिस्तान को कश्मीर मुद्दा उठाने का मौका मिल गया है तो सरकार को चिंता क्यों हो रही है? जब आप कहते हैं कि कश्मीर हमारा है और वहां धारा 370 हटाने का निर्णय हमारा पूर्णत: आतंरिक मामला है तो हम पाकिस्तान के विरोध से क्यों घबरा रहे हैं? पाकिस्तान अगर संयुक्त राष्ट्र संघ में हमारा विरोध करता भी है तो हम उससे क्यों डर रहे हैं? जब हम कह रहे हैं कि पूरी दुनिया के देश हमारे साथ हैं और पाकिस्तान अकेला है तो फिर डर काहे का है। आपको याद होगा कि जब संसद में बहस के दौरान कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन ने यह सवाल किया था कि क्या कश्मीर द्विपक्षीय मामला है तो उन पर ताबड़तोड़ हमला किया गया था। आज सरकार खुद मामला द्विपक्षीय होते देख चिंतित है। वह यह उम्मीद करती है कि कोई भी सरकार के फैसले के खिलाफ न बोले।

अब बात करते हैं धारा 370 की। बेशक सरकार को यह अख्तियार था कि वह धारा 370 हटा दे। उसने संसद में बहुमत के आधार पर हटा भी दी। मगर क्या यह जरूरी है कि अन्य विपक्षी दल भी सरकार के कदम से सहमत हों। बेशक कुछ कांग्रेसी नेताओं ने सहमति जताई है, मगर धारा 370 को हटाने के तरीके पर सवाल भी उठाए हैं। उनका कहना है कि इसके लिए कश्मीर की जनता व वहां के जनप्रतिधियों को विश्वास में लिया जाना चाहिए था? अहम बात ये है कि धारा 370 हटाने की आलोचना करना पाकिस्तान परस्ती कैसे हो गई? धारा 370 को देशभक्ति व राष्ट्रवाद से जोड़ कर कैसे देखा जा सकता है? जो धारा 370 को हटाए जाने अथवा इसे हटाने के असंवैधानिक तरीके पर सवाल उठा रहे हैं, वे देश विरोधी कैसे हो गए? बेशक पाकिस्तान बिना हक के विरोध कर रहा है, मगर हम उसे दरकिनार भी तो कर रहे हैं।

 

चूंकि धारा 370 पर हमारी राय पाकिस्तान से मेल खा रही है तो इसका मतलब ये तो नहीं हो सकता कि हम पाक के डर से हमारे आंतरिक मसले पर अपनी राय भी जाहिर न करें। कहीं हम पाकिस्तान का डर दिखा कर भारत के आंतरिक विषय को जानबूझ कर राष्ट्रवाद से तो नहीं जोड़ रहे? जब पाकिस्तान हमारे सामने पिद्दी है और उसके विरोध के कोई मायने नहीं हैं तो क्यों पाकिस्तान का हौवा खड़ा कर रहे हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि चूंकि हर आम भारतीय के मन में पाकिस्तान के प्रति नफरत है, इस कारण जानबूझकर पाक खौफ दिखा कर इस मुद्दे को राष्ट्रीय हित का गढ़ रहे हैं?

एक अहम बात और। हाल ही कश्मीर के राज्यपाल ने जो बयान दिया कि चुनाव में लोग धारा 370 का विरोध करने वालों को जूते मारेगी, वह किस बात का संकेत है? यानि कि या तो आप सहमत हो जाएं वरना आपको जूते मारे जाएंगे। ये किस किस्म की तानाशाही है? बाद में क्या आप तो अब भी सवाल खड़े करने वालों को जूते मार रहे हैं। जूते तो बहुत कम बात है, आप तो उन्हें देश विरोधी ही करार दिए जा रहे हैं। समझा जा सकता है कि किसी भी भारतीय के लिए देश विरोधी शब्द डूब मरने के समान गाली है।

लब्बोलुुआब, मामला उलझता जा रहा है और कैसे सुलझेगा, कश्मीर के हालात कैसे सामान्य होंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh