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इस यात्रा का एक नकारात्मक पहलु ये भी है कि गहलोत निकले तो अपनी उपलब्धियां गिनाने को हैं, मगर वसुंधरा राजे की ओर से रोज लगाए जा रहे आरोपों का जवाब देने के लिए उन्हें भी निचले स्तर पर जा कर व्यक्तिगत आरोप लगाने पड़ रहे हैं। इस चक्कर में वे जो संदेश देना चाहते हैं, वह गौण हो जाता है। शायद ही कोई ऐसी सभा हो, जहां गहलोत व वसुंधरा की ओर से निजी आरोप न लगाए जा रहे हों। गहलोत के पास आरोप के रूप में सबसे बड़ा ब्रह्मास्त्र ये है कि वसुंधरा चार साल तक कहां थीं। इसी को आधार बना कर वे कहते हैं कि वसुंधरा को तो बोलने का अधिकार ही नहीं है।
उधर वसुंधरा की यात्रा को भारी जनसमर्थन मिल रहा है। जाहिर सी बात है कि इस वक्त पूरे देश में कांग्रेस के खिलाफ माहौल है, जो बनाया तो अन्ना हजारे और बाबा रामदेव ने था, मगर उसका वास्तविक लाभ भाजपा को मिल रहा है। इसके अतिरिक्त खुद वसुंधरा का भी अपना क्रेज है। वे पूरे नाटकीय अंदाज में लच्छेदार व धुंआधार भाषण देती हैं, जो आम जनता को लुभा रहा है। वैसे भी विपक्ष में होने के कारण उनके भाषण ज्यादा लुभावने और आक्रामक होते हैं, जो कि आम जन को प्रभावित कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि उनके पास सिर्फ एक सूत्री कार्यक्रम है, इस कारण पूरी ताकत योजनाबद्ध तरीके से लगा रही हैं, जिसमें पैसे की कोई कमी नहीं आने दी जा रही। वो है येन केन प्रकारेण सत्ता हासिल करना। वह उनके लिए जरूरी इसलिए है कि जिस प्रकार जिद करके उन्होंने हाईकमान को झुकाया है, उन्हें जीत कर दिखाना ही होगा, वरना वे सदैव के लिए राजस्थान से रुखसत हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त इस बार सत्ता में लौटने की धारणा के चलते भाजपाइयों का उत्साह भी काम कर रहा है। भाजपा के टिकट दावेदार भी पूरे जोश-खरोश से भीड़ जुटा रहे हैं। सभी दावेदारों को पता है कि टिकट वितरण में वसुंधरा की ही मुख्य भूमिका रहने वाली है, इस कारण हर दावेदार अपनी ताकत दिखाना चाहता है। जो संघनिष्ठ हैं और जो तटस्थ रहे, वे भी वसुंधरा के सिर चढ़ का बोल रहे जादू से प्रभावित हो कर शरणम गच्छामि हो रहे हैं।
वसुंधरा का मुख्य निशाना आम तौर पर गहलोत ही रहते हैं। गहलोत से उनको कितनी एलर्जी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि एक बार तो उन्होंने बिना कोई सबूत दिए ही गहलोत सरकार को अब तक की सर्वाधिक भ्रष्ट सरकार करार दे दिया। वे कांग्रेस की लोक लुभावन योजनाओं को, जिनकी की जमीनी हकीकत उतनी सुखद नहीं, पर भी निशाना लगाने से नहीं चूक रहीं। बस वे कमजोर इसी मामले में पड़ रही हैं कि कांग्रेस के इस आरोप का जवाब नहीं दे पातीं कि पूरे चार साल तक वे कहां रहीं। इसे वे यह कह कर घुमाना चाहती हैं कि वे आम जनता के दिलों में थीं। इस मसले पर अफसोसनाक पहलु ये रहा है कि एक भी भाजपा नेता यह कहने की जहमत नहीं करता कि वसुंधरा भले ही बाहर थीं, मगर विपक्ष के भाजपा ने तो अपनी भूमिका निभाई ही है।
उधर पहली बार राजस्थान में तीसरे मोर्चे की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। इस सिलसिले में किरोड़ीलाल मीणा हेलिकॉप्टर से प्रदेश का दौरा कर रहे हैं। उन्होंने पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी ए संगमा की पार्टी राष्ट्रीय जनता पार्टी की राजस्थान इकाई का गठन किया है। उनकी पत्नी व निर्दलीय विधायक श्रीमती गोलमा देवी और भाजपा से निलंबित विधायक हनुमान बेनीवाल उनके साथ है। किरोड़ी भाजपा कांग्रेस के बागियों के भी संपर्क में हैं।
यात्रा भाजपा के नाराज नेता घनश्याम तिवाड़ी भी निकाल रहे हैं, मगर समझा जाता है कि वे अपनी ताकत दिखाने के बाद अंतत: कोई न कोई समझौता ही करेंगे।
घोषित रूप से यात्रा के रूप में न सही, मगर अनौपचारिक दौरे गुर्जर नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैसला भी कर रहे हैं। वे राजनीतिक विकल्प तैयार करने की घोषणा कर चुके हैं। डॉ. किरोड़ी मीणा भी उन्हें तीसरे मोर्चे में लाने की तैयारी कर रहे हैं। फिलहाल बैसला ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन माना जा रहा है कि कर्नल बैसला जल्द ही तटस्थ स्थिति से बाहर आएंगे।
कुल मिला कर यात्राओं के जरिए फिलहाल भले ही मतदाताओं को रिझाने की कवायद हो रही है, मगर चुनाव के नजदीक आते-आते राजनीति की असली चौसर बिछने लगेगी और वही आगामी सरकार का ब्ल्यू पिं्रट तैयार करेगी। इसकी वजह ये है कि छोटी पार्टियों के अलावा राजनीतिक दबाव समूह भी तैयार हैं। नाराज नेता और छोटी पार्टियां मिल कर भी समीकरण बिगाड़ सकते हैं।
जहां तक बसपा का सवाल है उसने 29 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। बसपा के 6 विधायकों के कांग्रेस में चले जाने के बावजूद पार्टी के दलित वोट बैंक पर असर नहीं पड़ा है। दलित वोट बैंक के बूते बसपा कांग्रेस भाजपा के कई सीटों पर समीकरण बिगाड़ेगी। इसी प्रकार यूपी में पदोन्नतियों में आरक्षण समाप्त करके अखिलेश यादव ने अनारक्षित वर्ग में समर्थन बढ़ाया है। समाजवादी सामान्य वर्ग में इसे भुनाने के प्रयास में है। जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव चंद्रराज सिंघवी तीसरा मोर्चा बनाने का दावा कर रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनावों में भी सिंघवी ने तीन पार्टियों का गठबंधन बनाया था, लेकिन उनके उम्मीदवार जमानत भी नहीं बचा पाए। माकपा के अभी तीन विधायक हैं। माकपा, भाकपा, जेडीएस और समाजवादी पार्टी मिलकर नया मोर्चा बनाने की कोशिश में है। माकपा, किरोड़ीलाल की पार्टी और कुछ निर्दलीय नेताओं के साथ भी तालमेल के प्रयास में है। माकपा इस मोर्चे में सपा को भी शामिल करना चाहती है लेकिन सपा का आरक्षण विरोधी एजेंडा किरोड़ी को रास नहीं आ रहा है।
लोकजनशक्ति पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और गैर मान्यता प्राप्त रजिस्टर्ड 20 से ज्यादा पार्टियां भी चुनावी तैयारी शुरू कर चुकी हैं। बताया जाता है कि पूर्व आईएएस आर.एस. गठाला कांग्रेस भाजपा विरोधी पार्टियों के नेताओं को एक जगह लाने में जुटे हुए हैं। गठाला किरोड़ी के तीसरे मोर्चे और माकपा के साथ वाले दलों के बीच समन्वय की कोशिश कर रहे हैं। इसी प्रकार पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खास सलाहकार और रणनीतिकार रहे एस एन गुप्ता इस बार उनसे अलग हो गए हैं। उन पर कांग्रेस की नजर है। कांग्रेस चुनाव व वित्तीय प्रबंधन में उनकी दक्षता का उपयोग करने पर विचार कर रही है। उनके पास भाजपा के कई ऐसे राज हैं, जो कांग्रेस के लिए रणनीतिक रूप से फायदेमंद हो सकते हैं। एएनएम प्रकरण में जेल में बंद महिपाल मदेरणा और मलखान सिंह विश्नोई और उनके परिवार के रुख पर सबकी निगाहें टिकी हुई है। दोनों नेताओं के परिवार का राजनीतिक रुख जातियों वोटों के धु्रवीकरण में अहम भूमिका निभा सकता है।
-तेजवानी गिरधर
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