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कल मुझे एक आम आदमी मिले उन्होंने मुझसे एक सवाल कर दिया कि यह मार्केटिंग का होती है?
आजकल हर जगह सुनता हूं उसमे ई शब्द मेरे लिए एक स्पीड ब्रेकर सा खड़ा मिलता है।
हमने जवाब दिया देखिए ऐसा है कि मार्केटिंग माल के उत्पादन से भी ज्यादा जरूरी काम है।
जैसे कि एक ढाबे वाला ठीक ठाक खाना बेचता था, मगर उस ढाबे वाले को नौटंकी करके भीड़ जुटाना नहीं आता था फिर उसका खाना बर्बाद हो जाता हैं, और काफी लंबी इनिंग के बाद उसका ढाबा एक दिन बंद हो जाता है।
और उसकी जगह एक दूसरा ढाबा वाला आता है जो कि ढाबा खुलने से पहले ही धूम धड़ाके से दुकान खोलकर दुनिया के बेस्ट कुजीन की लिस्ट तैयार करवाकर उसकी रेट लिस्ट पर औने पौने दाम लिखवा देता है और उसे हर चौराहे कुछ उठाई गिरे बाबा और बेबीओ को प्रचार का जिम्मा सौंप देता है।
इस पर उसकी दुकान पर पूरा मुहल्ला जमा हो जाता है जैसे ही सुबह सुबह वे पहुचते हैं तो देखते है कि ढाबे वाला अभी घंटे भर से मंगल आरती कर रहा है इसपर जब ग्राहक आवाज लगाते है की अरे साहब हम भी सीधा मंदिर से ही आ रहे है और हमे ना सुनना।
इस पर बेमन से हेड शेफ रसोई घर मे घुसने की जहमत उठाते हैं और रसोई घर की हालत देखकर हेड शेफ अपने असिस्टेंस पर खीझ पड़ते है कि रसोई का क्या हाल बना रखा है। चूल्हा दक्षिण दिशा में ये हमारे वैदिक वास्तुशास्त्र के प्रतिकूल है इसको तोड़कर पूरब में ले जाओ ई रोशनदान तोडक़र उत्तर में ले जाओ और ई कल्छी, कढाई,गिलास, थाली ये सब काम लायक नही बची है इन सबको बदल कर हमारे पप्पूभाई की दुकान से ले आओ और हा वे जो रेट बोले उसपर दस रुपये अधिक में ही लाना वैसे भी ये दुकान भी पप्पूभाई की ही तो है।
इसी बीच किसी जागरूक ग्राहक ने याद दिला दिया अरे सेठ जी दुकान सुधारते सुधारते दोपहर हो गई ई खाना कब मिलेगा?
इस पर हेड शेफ झल्लाते हुए बोला चुपचाप खड़े रहो पुराने वाले ने ढाबे की दीवारें पूरी खुरच कर कमजोर कर दी है हम ना आते तो ये दीवार गिरने ही वाली थी इस पर दूसरे ग्राहक ने कहा अरे दीवार तो ठीक है वैसे भी जब हम यहां आए थे तो ये ढाबा तंबू में था पिछले वाले ने ही इसे पक्का बनवाया है इसी बीच पीछे खड़े परिचित ग्राहक ने पीछे से फ्लाइंग सलामी दी नालायक तू मांसाहारी है इसीलिए तुझे महाराजजी का स्वर्णिम विकास दिखाई नही दे रहा है एक बार जरा गांधारी की नजर से देख तब दिखेगा तुझे..
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