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कमरे में फैले प्रकाश का न था कोई छोर,
पर इस प्रकाश में जा रहा था एक दीपक अँधेरे की ओर,
परिवार के सम्मान को बनाये रखने में उसने पूरी जिंदगी झोंक दी,
पर मौत ने आखिर में उसकी कब्र में कील ठोँक दी,
पर जाते-जाते भी देना चाहता था खुशियाँ बेशुमार,
आँखें धीरे से खोल भाई से बोला,”हँस भी ले मेरे यार !!”
18 बसंत की जिंदगी में न किया कभी नशे व गंदी आदतों से प्यार,
पर जिंदगी ने दिया उसे कैंसर का उपहार,
हिम्मत कर अपने माँ-बाप को अंतिम संदेश देना चाहता था,
बोला,”अभी तो मैं बहुत कुछ देखना चाहता था…..
अभी बाईक की रफ्तार का मजा लेना बाकी था,
भाई की शादी और आपके संतुष्ट चेहरों का बनना मुझे साक्षी था,
मेरी मेहनत के परिणामों पर पापा को चलना था सीना तान,
और माँ की त्याग-तपस्या को बनाना था मुझे महान,
पर अफसोस, ऐसा करने में छोटी पड़ गई ये उम्र भगवान,
पर जाते जाते एक बात रहेगी मुझे दुखाती,
काश कोई होती गैर जो मेरे लिए भी आँसू बहाती,
खैर ये हसरत भी रह जाएगी हमेशा के लिए आधी,
क्योंकि कभी कभी लगा कि मैने अपनी जिंदगी खोखले रिवाजोँ को निभाने में लगा दी,
पर इन सबका कोई मतलब नहीं है अभी,
फिर भी सोचता हूँ,क्या मिलेगा ऐसा परिवार मुझे कभी ?”
यमराज के निमंत्रण पर प्राणों ने साँसोँ को थोड़ा खींचा,
पर उसने भी हिम्मत जुटा कर साँसोँ को थोड़ा सीँचा,
बोला,”ऊपर जाकर जरूर अगले जन्म जैसी चीज का पता लगाऊँगा,
हो सका तो इस परिवार के लिए फिर अर्जी लगाऊँगा |”
हार कर अब उससे न झेला गया यमराज का अंतिम वार,
और अंततः उड़ गए उसके प्राण अपने पंख पसार |
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