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अल्पसंख्यक वर्ग के रहनुमा और मीडिया

बोलवचन
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आज किसी चैनल पर देखा, आज़म ख़ान सिखों को संबोधित करते हुए कह रहे थे कि मोहन भागवत ने सारे देश के लोगों को ’हिन्‍दू’ कहा है। वे सिखों से पूछते हैं – ’क्‍या आप हिन्‍दू हैं’। फिर वे मोहन भागवत को जवाब देते हैं कि आप हिन्‍दू हैं, हम नहीं। वे आगे पूछते हैं – क्‍या सिख हिन्‍दू हैं? क्‍या ईसाई हिन्दू हैं? क्‍या मुसलमान हिन्‍दू हैं?

मोहन भागवत द्वारा दिये गए ’हिन्‍दू’ संबंधी इस बयान के संदर्भ में आज तक किसी अन्य धर्म के अनुयायियों की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी, सारा बवाल केवल एक ही समुदाय के लोगों द्वारा खड़ा किया जा रहा है। गोवा के किसी ईसाई मंत्री द्वारा सकारात्‍मक प्रतिक्रिया व्यक्त की गई जिसका भी इसी समुदाय द्वारा विरोध किया गया।

सिख धर्म, जिसका उदय मुग़लों से लोहा लेने के लिए हुआ था तथा जिसकी जड़ें प्राचीन्‌ सनातन धर्म में हैं, उसके लोगों को भी इन सांप्रदायिक लोगों ने भड़काना प्रारंभ कर दिया है। किस धर्म के विरूद्ध, यह सर्वविदित है।

यह केवल भारत में ही संभव है कि ऐसे लोग जो देश में सांप्रदायिक नफ़रत के बीज बोते हैं, वे ही सेक्‍युलरिज़्म के पहरेदार कहे जाते हैं।

कुछ दिन पहले ’आप की अदालत’ में नफ़रत से भरे हुए नेता असदुद्दीन ओवैसी आये थे जहां काफ़ी प्रयास के बाद भी वे माननीय श्री मोदी जी के प्रति अपनी नफ़रत छुपाने में नाक़ाम रहे। उन्‍हें इससे बेहद आपत्‍ति थी कि मोदी जी ने एक भाषण में कहा कि हम 1200 वर्ष की ग़ुलामी से आज़ाद हुए। असदुद्दीन ओवैसी कहते हैं कि इनमें से 600 वर्ष अंग्रेज़ों ने शासन किया था, उसे तो वे ग़ुलामी मान सकते हैं, किन्‍तु बाकी 600 वर्ष भारत पर मुग़लों का शासन था, उसे मोदी कैसे ग़ुलामी कह सकते हैं। असदुद्दीन ओवैसी रजत शर्मा से पूछते हैं, – ’आप बतायें, इस देश पर मुग़लों का शासन क्‍या ग़ुलामी था?’

साथ ही असदुद्दीन ओवैसी आगे कहते हैं कि अंग्रेज़ों से लड़ाई तो मुस्‍लिमों ने भी लड़ी थी। यह एक पृथक्‌ विषय है जिसका जवाब किसी विवादास्‍पद बहस को जन्‍म दे सकता है, किन्‍तु फिर भी हमें इस तथ्य को नहीं भूलना चाहिए कि हिन्‍दुस्‍तान की सत्‍ता अंग्रेज़ों ने मुग़लों के हाथ से छीनी थी, अतः अपनी सत्‍ता को वापस पाने के लिए मुग़लों का अंग्रेज़ों के विरूद्ध लड़ना स्‍वाभाविक था।

जब भी किसी टीवी चैनल पर धार्मिक मुद्दे से जुड़ी कोई बहस होती है तो अल्पसंख्यक वर्ग की ओर से उनके प्रतिनिधि के रूप में एक घोर सांप्रदायिक नेता असदुद्दीन ओवैसी को बुलाया जाता है, जिनके द्वारा हमेशा ही ग़लत तथ्य व विचार पेश किए जाते हैं। बहस के दौरान कटुता का वातावरण उत्पन्न हो जाता है तथा बहस का किसी निष्पक्ष तथा सर्वसम्मत निर्णय पर पहुँचना असंभव हो जाता है।

इस संदर्भ में सबसे आपत्‍तिजनक भूमिका हमारे मीडिया की है, जो अल्पसंख्यक वर्ग के उदार, विचारशील और निष्पक्ष प्रतिनिधि की बजाय टीवी पर बहस में ऐसे नेताओं को बुलाते हैं जो समाज को बांटने व देश की हवा में ज़हर फैलाने कार्य करते हैं। मीडिया कवरेज़ से असदुद्दीन ओवैसी जैसे लोगों को एक बड़ी पहचान मिलती है जिस कारण उनके समुदाय के ग़ुमराह लोग उन्‍हें अपना प्रतिनिधि और पथप्रदर्शक मान लेते हैं, फलस्‍वरूप देश में सांप्रदायिक समस्‍याएं पैदा होने लगती हैं।

सनसनी फैलाने और अपनी टीआरपी बढ़ाने की कोशिश में सबसे बड़ा अन्‍याय तो मीडिया समुदाय विशेष के उन अच्‍छे लोगों के साथ कर रहा है जो सहिष्णु और मिल-जुल कर रहने वाले हैं। असदुद्दीन ओवैसी जैसे लोगों की वज़ह से समुदाय विशेष के सारे लोगों को शक़ की नज़र से देखा जाता है व इनके कार्यों की सज़ा पूरे समुदाय को भुगतनी पड़ती है।

आश्चर्य है कि मीडिया समुदाय विशेष की कई करोड़ की जनसंख्या में से साफ़ छवि वाले कुछ ऐसे उदार और निष्पक्ष लोगों को ढूँढने में असफल है, जो उस समुदाय का प्रतिनिधित्‍व कर सकें।

मीडिया की इस तरह की हरक़तों से देश में एक समुदाय विशेष की छवि लगातार ख़राब हो रही है।

अतः मीडिया को चाहिये कि वह असदुद्दीन ओवैसी जैसे विवादास्‍पद नेताओं को महत्‍व देना बंद करे तथा समुदाय विशेष के प्रतिनिधि के रूप में निष्पक्ष और उदार लोगों को देश के सामने लाए, जिससे समाज में सांप्रदायिक सद्भाव बरक़रार रह सके।

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