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इंज़माम-उल-हक़ की नज़र में इस्‍लाम् और मुसलमान

बोलवचन
बोलवचन
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पाकिस्‍तान में शायद कोई मैसेज टीवी है जिसपर एक कार्यक्रम प्रसारित हो रहा था। इंजमाम उल हक़, जो क्रिकेट से रिटायरमेंट के बाद आजकल इस्‍लामी प्रचारक की भूमिका में है, ने कहीं सभा में भाषण देते हुए हल्के-फुल्के अंदाज़ में कुछ मज़ेदार, किन्‍तु महत्‍वपूर्ण बातें कहीं। वे बता रहे थे कि वे कैसे एक आम आदमी से इस्‍लाम् के सेवक बन गए। कुछ घटनाओं के उदाहरण सामने रखकर उन्‍होंने एक बेहद गंभीर सच्‍चाई की ओर इशारा किया। एक घटना के बारे में उन्‍होंने बताया कि वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ श्रंखला में कराची टेस्ट के दौरान क्रिकेटर मोहम्‍मद युसूफ ने ब्रायन लारा को खाने पर बुलाया। सोचा कि यहीं ब्रायन लारा को वे दीन की दावत (इस्‍लाम् धर्म अपनाने का निमंत्रण) दे देंगे। कराची के एक बुज़ुर्ग शेख़ हाशिम साहब, जो कि एक अमेरिकन थे और क़रीब 30-35 वर्ष पूर्व मुसलमान हो गए थे। वे भी साथ में थे। खाने के दौरान उन्‍होंने दीन की दावत देते हुए ब्रायन लारा को बताया कि इस्‍लाम् की राह पर चलने वाले किस तरह अल्लाह की बात मानते हैं, किस तरह मां-बाप की बात मानते हैं, किस तरह अपनी बीवी का ख़्याल रखते हैं, किस तरह बच्‍चों की परवरिश करते हैं, किस तरह अपने पड़ोसियों का ख़्याल रखते हैं, किस तरह क़ारोबार करते हैं, इत्‍यादि। जब सारी चीज़ें बताईं तो ब्रायन लारा यह सुनकर थोड़ी देर के लिए ख़ामोश हो गए। कुछ देर बाद बोले, ’’हां, इसी तरह रहना चाहिए, ज़िन्‍दगी इसी तरह गुज़ारनी चाहिए।’’ खाना खाकर जब ब्रायन लारा वापस अपने होटल जा रहे थे तो मोहम्मद युसूफ से बोले, ’’युसूफ, ऐसे मुसलमान कहां हैं, जो इस तरह ज़िन्‍दगी गुज़ारते हों? सारी बातें अच्‍छी हैं, लेकिन मुसलमान ही ऐसे नहीं हैं।
इसी तरह एक अन्य वाक़ये का ज़िक़्र करते हुए इंज़माम ने बताया कि वे इंग्‍लैंड के किसी क्‍लब से क्रिकेट खेलते थे। दीन को अपनाने के बाद जब इंज़माम का हुलिया बदल गया तो अंग्रेज़ खिलाड़ी उनको देखकर चौंके। बाद में इंज़माम की अंग्रेज़ खिलाड़ियों से धर्म पर भी बात हुई। वे बताते हैं कि, ’’यह जानकर मैं हैरान रह गया कि अंग्रेज़ खिलाड़ियों को दीन का भी पता था, हमारी क़िताब का भी पता था।’’ अंग्रेज़ खिलाड़ियों ने कहा कि उन्‍हें पता है कि आपका दीन सही है, आपकी क़िताब भी सही है, पर तुम लोग सही नहीं हो। जो तुम्‍हारी क़िताब में है, तुम्‍हारे दीन में है, तुम ख़ुद उसपर अमल नहीं करते हो। मतलब यह कि तुम दूसरों को तो दीन की दावत (इस्‍लाम् अपनाने का निमंत्रण) देने में लगे हो किन्‍तु तुम ख़ुद उसपर कितना अमल करते हो, पहले यह विचार अवश्य करो।
पाकिस्‍तान में आज एक देश के रूप में असफलता के पश्चात् इस तरह के विचारणीय प्रश्न पूछे जा रहे हैं तथा निरंतर इसपर मंथन किया जा रहा है कि वे कौन सी वज़हें रहीं जिनके कारण पाकिस्‍तान आज बरबादी के क़गार पर खड़ा है तथा जिनके कारण सारे विश्व में उसे एक आतंकवाद को पैदा करने वाले देश के रूप में देखा जाता है।
साथ में इसका वीडियो link भी दिया गया है, जिसे आप देख भी सकते हैं-
https://youtube.com/watch?v=w0eveLM3GuY

इस लेख के संदर्भ में आपके विचारों का स्वागत है।

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