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याक़ूब मेमन! हम तुम्‍हारे आभारी हैं।

बोलवचन
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याक़ूब मेमन,

अफ़सोस है कि तुम मेरा यह पत्र पढ़ने के लिए जीवित नहीं हो। कितनी हैरानी की बात है कि जो काम आज तक कोई और नहीं कर सका, तुमने कर दिखाया। तुमने इस देश के सफेदपोश सेक्‍युलर गद्दारों तथा इस देश को संप्रदायवाद का ज़हर पिलाने वाले लोगों के चेहरे पर से मक़्क़ारी का नक़ाब हटा दिया।

तुम्‍हारी फांसी के कुछ दिन पूर्व से लेकर तुम्‍हें फांसी लगने तक जो भी हलचल हुई है, उससे कम से कम सारे देश को यह तो पता चल गया है कि हमारे देश के ग़द्दार कौन है?

अगर तुम्‍हें फांसी न होती तो हम कभी यह नही जान पाते कि आज़ादी के बाद से क़रीब ६० वर्षों तक सेक्‍युलरिज़्म का मुखौटा ओढ़कर देश पर शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेता तुम्‍हारी फांसी के बाद इस क़दर आहत होंगे कि सेक्‍युलरिज़्म का पांखड त्‍यागकर अपना आतंकवाद समर्थक असली चेहरा उजागर कर देंगे। उनका असली चेहरा सामने लाने के लिए शुक़्रिया।

जब भी कहीं कोई आतंकवादी वारदात होती, हमारे देश में उन घटनाओं की आलोचना की जाती। टीआरपी के भूखे देशद्रोही एजेंडा लेकर चलने वाले मीडिया द्वारा कुछ बहसें आयोजित की जातीं। इन्‍हीं बहसों के दौरान दबे हुए शब्‍दों में कुछ लोग पूछते कि क्‍यों पूरे विश्व्‌ में इस्‍लामी आतंकवाद सर उठा रहा है। क्‍यों इस्‍लाम्‌ की ख़ातिर बड़ी संख्या में मुस्लिम लोग आतंकवाद की राह पकड़ रहे हैं? क्‍यों मुसलमान आतंकवादी धर्म के नाम पर बड़ी संख्या में अपने ही मज़हब के लोगों को क़त्‍ल कर रहे हैं। इस तरह के भी प्रश्न्‌ उठाये जाते कि क्‍यों सुन्नी, कट्टर आतंकवाद को पोषित करते हुए शियाओं को मार रहे हैं? क्‍यों इस्लाम्‌ के विभिन्न फ़िरके एक-दूसरे से नफ़रत करते हैं?

आईएसआईएस, अल-क़ायदा, बोको-हरम जैसे क़्रूरतम आतंकवादी संगठनों के बारे में जब कोई प्रश्न हिन्‍दुस्‍तान के मुस्‍लिम्‌ धार्मिक प्रतिनिधियों और सेक्‍युलर पार्टियों के प्रतिनिधियों से पूछा जाता तो उनके द्वारा ज़ोरदार तरीक़े से एक ही जवाब दिया जाता था कि, ’आतंकियों या आतंकवाद का कोई धर्म या मज़हब नहीं होता’। इन आतंकवादियों के कृत्‍यों को कृपया धर्म या मज़हब से न जोड़ें, और साथ ही यह कि इस्‍लाम्‌ के किसी भी फ़िरके में आपस में कोई मतभेद नहीं है।

चूंकि यह सत्‍य नहीं था, किसी प्रकार फिर भी न केवल भारत, अपितु पूरे विश्व्‌ के लोगों ने इन दलीलों को स्‍वीकारा। वह तो जब तुम्‍हारी फांसी निश्चित्‌ हो गई तो हमारे देश के सेक्‍युलरों सहित सभी राजनैतिक दलों के मुस्‍लिम्‌ नेता एवं मुस्लिम्‌ धार्मिक प्रतिनिधियों ने अपना आपा खो दिया और अपनी असलियत ज़ाहिर करते हुए इल्ज़ाम लगाना शुरू कर दिया कि मुसलमान होने के कारण तुम्‍हें फांसी दी जा रही है। यहां तुम्‍हें यह भी बताना ज़रूरी है कि तुम्‍हारे आतंकवादी होने से सेक्‍युलरों या मुस्‍लिम्‌ धार्मिक प्रतिनिधियों किसी को भी इनकार या कोई संशय नहीं था, फिर तुम उनकी नज़र में मुसलमान कैसे हो गए, क्‍योंकि हमें तो इन्हीं सेक्‍युलरों और मुस्‍लिम्‌ धार्मिक प्रतिनिधियों द्वारा आज तक बताया गया था कि आतंकवादी का तो कोई धर्म नहीं होता। यही सब तो ये लोग हमें और सारे विश्व को समझाते आए थे। फिर आज आतंकवादी का मज़हब इस्‍लाम्‌ कैसे हो गया और याक़ूब मेमन मुसलमान कैसे हो गया। अन्य जघन्य अपराधी जिन्‍हें ये लोग आतंकवादी कहते आये थे, हिन्‍दू या सिख कैसे हो गए।

याक़ूब मेमन! आतंकियों और आतंकवाद के मज़हब से पर्दा उठाने के लिए धन्यवाद्‌।

प्रश्न्‌ यहां यह भी है कि ये सारे लोग तुम्‍हें बचाने की क़ोशिश क्‍यों कर रहे थे। क्‍या वे फांसी के ख़िलाफ़ थे। नहीं, वे सिर्फ़ तुम्‍हारी फांसी के ख़िलाफ़ थे, क्‍योंकि तुम मुसलमान थे।

पूर्व में जब धनंजय चटर्जी को फांसी हुई थी तो उसके परिवार वालों ने उसका शव लेने से इनकार कर दिया था, क्‍योंकि वे उसके कृत्‍य से शर्मिंदा थे, किन्‍तु तुम्‍हारी अंतिम यात्रा का मंज़र दूसरा था, क्‍योंकि तुम्‍हें एक हीरो की तरह दफ़नाया गया। इस फांसी के बाद तुम अपने मज़हब के कई लोगों का आदर्श बन चुके हो। कई लोग तुमसे प्रेरणा लेकर भविष्य में इस तरह के कृत्य को दोहराने की क़ोशिश करेंगे, इस भयावह आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

याक़ूब मेमन, यदि मुझे अवसर मिलता तो मैं तुमसे एक प्रश्न्‌ अवश्य पूछता कि तुमने बदला तो लिया, परन्‍तु किससे? क्‍या वे 257 लोग जिनमें सवा सौ के क़रीब मासूम स्‍कूली बच्‍चे, महिलाएं, बूढ़े भी शामिल थे, तुम्‍हारे दुश्मन थे? मरने वाले तो 257 थे, किन्तु क्‍या तुमने उन सैकड़ों परिवारों को जीते जी नहीं मार दिया, जिनके परिवार से ये मृतक संबद्ध थे? किसी ने अपनी मां को खोया तो किसी ने अपने पिता को, किसी ने माता-पिता दोनो को, तो किसी ने अपने बच्‍चों को। उन विस्‍फोटों में घायल 700 से अधिक लोग आज भी उस भयावह पीड़ा को अपने शरीर और मन पर भोग रहे हैं। इन विस्‍फोटों में सबने सिर्फ़ खोया ही, पाया किसी ने नहीं। और यदि सच पूछो तो तुमने भी क्‍या पा लिया?

हां, मैं यह मानता हूँ कि भारत की क़ानूनी प्रक्रिया थोड़ी लंबी है। यदि तुम्‍हें किसी से शिक़ायत थी तो क़ानून का सहारा लेते। फ़ैसला आने तक इंतज़ार तो करते। तुमको भी तो अदालत ने फांसी देने में 22 वर्ष का लंबा समय ले लिया।

अंत में यही कामना करता हूँ कि तुम्‍हारी आत्‍मा को शांति प्राप्‍त हो और अगले जन्म में तुम हैवान की बजाय इंसान बनो और तुम इस जन्‍म में किए गए अपने भीषण पापों का प्रायश्चित्त करते हुए मानव समाज के हक़ में कुछ अच्‍छे कार्य करते हुए अपना जीवन जियो।

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