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अभी आईएसआईएस के आंतकवादियों द्वारा भेजा गया पत्रकार जेम्स फॉली की हत्या का वीडियो देखा। दिल दहल गया। इस समय मन में एक ही प्रश्न् है कि प्राचीन समय में जिन नरपिशाचों की बात की जाती थी, क्या ये लोग वही हैं? मेरी पत्नी ने संयोगवश ये वीडियो मेरे साथ ही देख लिया था, जिसके बाद से वह बेहद सदमे में है। थोड़ा-सा सामान्य होने पर लिख पा रहा हूँ। हड्डियों को कँपा देने वाली ऐसी क्रूरता के इतने भयानक उदाहरण विश्व में कम ही देखने को मिले है।
यहां पर उल्लेखनीय है कि जेम्स फॉली कोई अमेरिकी सैनिक नहीं थे। वे तो पश्चिम एशिया के लिए रिपोर्टिंग करने वाले एक सामान्य से पत्रकार थे। युद्ध की एक अलिखित नीति होती है, जिसमें युद्ध, केवल लड़ने वाले देशों के सैनिकों के बीच में ही होता है। कभी किसी सामान्य नागरिक या पत्रकार का ख़ून नहीं बहाया जाता। यदि इन नरपिशाचों को अमेरिका से किसी प्रकार की शिक़ायत थी तो उससे प्रत्यक्ष युद्ध का ऐलान करते, किन्तु निर्दोष नागरिकों को इतनी क़्रूरतापूर्ण मौत देना क्या उचित है?
कुछ वर्ष पूर्व अमेरिका के पेंटागन टॉवर पर भी ज़ेहादियों ने हमला किया था, जिसमें सारे निर्दोष नागरिक मारे गये थे। अभी हाल ही मे इस्राईल द्वारा हमास आतंकवादियों के हमलों के जवाब में जो कार्यवाही की जा रही है, उसका हमारे देश के मुस्लिम इंसानियत का वास्ता देकर घोर विरोध कर रहे हैं, क्योंकि मरने वाले मुस्लिम हैं, किन्तु इन्हीं लोगों ने अमेरिका के पेंटागन टॉवर पर हमले के बाद उत्सव मनाया था।
आज ही ख़बर आई है कि तीस्ता सीतलवाड़ ने आईएसआईएस के आतंकवादियों की तुलना मां काली से की है। धर्म का ज़्यादा ज्ञान न होने के बावजूद मुझे यह पता है कि मां काली को राक्षसों के नाश के लिये जाना जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि तीस्ता सीतलवाड़ की नज़र में मासूम निर्दोष इंसान राक्षस हैं व आईएसआईएस काली मां का रूप है जो इन मासूम एवं निर्दोष राक्षसों का नाश करने के लिये अवतरित हुआ है।
अभी दो-तीन दिन पूर्व ही ख़बर आई थी कि राजस्थान के अडिशनल डीजीपी (इंटेलिजेंस) ने जयपुर प्रशासन और पुलिस को चिट्ठी लिखकर बताया है कि मुस्लिम उद्यमियों का एक समूह शहर में हिन्दू बहुल गरीब बस्तियों में मस्जिदों के निर्माण के लिए फंडिग कर रहा है, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा मस्ज़िदें बनाकर इस्लाम् का प्रभुत्व क़ायम किया जा सके। इसमें कहा गया है कि गरीब लोगों को ऊंची कीमत का प्रलोभन देकर जमीन बेचने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
देश के किसी हिस्से में मुसलमान मांग कर रहे हैं कि यदि किसी क्षेत्र में मुसलमानों की आबादी 25% या उससे अधिक है तो वहां मुसलमान प्रत्याशी को टिकट दिया जाये। कहीं गैंगरेप करके हिन्दू युवतियों को मुसलमान बनाया जा रहा है तो कहीं ज़रा-ज़रा सी बात पर मुसलमान दंगाईयों द्वारा दंगे किये जा रहे हैं। इसके अलावा भी रोज़ होने वाली अन्य दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं से हम स्पष्ट संकेत प्राप्त कर रहे हैं कि यदि हम समय पर नहीं चेते तो हम इस्लाम् स्वीकार करने की क्रूरतम नियति के शिक़ार हो सकते हैं। इन सब घटनाओं को भयानक भविष्य के प्रति चेतावनी समझकर हमें इनके कुत्सित् प्रयासों को समय रहते सख़्ती से कुचलना होगा, इसी में सबका भला है, वरना भारत को भी अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, इराक़ या सीरिया बनने में देर नहीं लगेगी।
अपने कुटिल इरादे लेकर आये हुए इस्लामी प्रचारकों के ब्लॉग्स को पढ़कर आप इसकी अनुभूति कर सकते हैं कि इस्लाम् के चाहने वाले किस हद तक मतांध एवं कट्टर प्रवृत्ति के होते हैं।
एक ब्लॉगर इस्लाम् को सनातन धर्म सिद्ध करने पर तुले हुए हैं तथा किसी कमेंट में वे कहते हैं कि जब आप मानते हैं कि, ’सभी धर्म एक राह दिखाते हैं तो फिर आप क्यों नहीं हिन्दू धर्म छोड़कर इस्लाम् के रास्ते पर नहीं चलते।’ अपने धर्म के पक्ष में वे क़ुरान की निम्नलिखित कई आयतें पेश करते हैं जिन्हें पढ़कर आप ख़ुद फ़ैसला कर सकते हैं कि वास्तविक जीवन में ख़ुद मुसलमान इस्लाम् का कितना अनुसरण करते हैं। ज़रा ध्यान से पढ़ियेगा – क्या आप ने क़ुरान की वे आयतें नही देखीं जिन मे हर हाल मे न्याय करने को कहा गया है चाहे अपने शत्रु के पक्ष मे अपने विरुद्ध क्यों ना करना पड़े. (4:135, 4:3, 5:8), क्या आपने क़ुरान की वह आयत नही देखी जो यथासंभव शान्ति स्थापना की बात करती हैं. (2:3, 4:90, 5:16, 8:61 और इनके अतिरिक्त सैकड़ों आयतें), क्या आपने नही देखा कि क़ुरान कहता है कि एक व्यक्ति की हत्या पूरी इंसानियत की हत्या है (5:32)।
इसी संदर्भ में मैं सोच रहा हूँ कि यदि ये आयतें सत्य हैं तो फिर जेम्स फॉली के हत्या क़ुरान के अनुसार पूरी इंसानियत की हत्या है। तब तो क़ुरान के विपरीत होने के कारण हर मुसलमान को इसका विरोध करना चाहिये।
साथ ही, पूरे विश्व् को अब गंभीरता से यह सोचने की ज़रूरत है कि क्या वाक़ई इस्लाम् जैसे अमानवीय धर्म की इंसानियत को ज़रूरत है, क्योंकि मेरे विचार से आज के दौर में इस्लाम् पूरी तरह अप्रासंगिक हो गया है तथा पूरी इंसानियत पर ख़तरा बन मंडराने लगा है।
यदि मैंने कुछ ग़लत लिखा है तो पाठक इस संदर्भ में टिप्पणी कर मेरा मार्गदर्शन करें।
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