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मुसलमानों के सुधार का प्रयास यानि बवाल को न्यौता

बोलवचन
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हमारे देश का संविधान धर्म निरपेक्ष है। मैंने वर्षों पहले पढ़ा था कि जब हमारा देश आज़ाद हुआ था तो हमारे देश के नेतृत्व ने सभी धर्मों विशेषकर मुस्‍लिमों को यह विश्वास दिलाया था कि हिन्‍दू बहुल हिन्‍दुस्‍तान में उनके साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा। चूंकि मुस्‍लिमों के अलावा सिख, जैन, ईसाई, पारसी इत्‍यादि धर्मों के अनुयायी तो पहले से ही आश्वस्‍त थे, किन्‍तु हमेशा की तरह अपना अस्‍तित्व समाप्‍त होने की आशंका से ग्रस्त मुस्‍लिम् डरे हुए थे। मुस्‍लिमों के इस डर को दूर करने के लिए उन्‍हें विशेषाधिकार प्रदान किया गया कि वे अपने पर्सनल लॉ का अनुसरण बेख़ौफ़ कर सकते हैं। प्रारंभ में भारत सरकार द्वारा मुस्‍लिमों की दशा सुधारने के बहुत प्रयास किए गए, अंततः मुल्लाओं और मौलानाओं (हमेशा से ही मुसलमानों की बदहाली के लिए पूर्ण रूप से ज़िम्मेदार) से हारकर सरकार को मुसलमानों को अपने हाल पर छोड़ देना ही सबसे बेहतर नीति प्रतीत हुई। आज भी जब देश की किसी सरकार द्वारा समस्‍त भारतीय नागरिकों के हित में कोई प्रयास किया जाता है तो मुसलमानों के प्रतिनिधि मुल्ला-मौलवी और ओवैसी जैसे नेता बवाल मचाने लगते हैं तथा सरकार के प्रयासों को अपने विशेषाधिकार में हस्‍तक्षेप बताने लगते हैं। क़ाश, मुसलमान समझ पाते कि जो लोग उनके लिए आवाज़ उठा रहे हैं, वास्‍तव में वही उनके सबसे बड़े दुश्मन हैं।
माननीय प्रधानमंत्री श्री मोदी जी ने जब क़ुरान और कम्प्यूटर वाली बात कही थी तो यही मुल्ला-मौलवी टीवी चैनलों पर अपना आपा खोकर चिल्ला रहे थे कि हम मदरसों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेंगे।
’श्रीमान् सगीर किरमानी’ नामक विद्वान ब्‍लॉगर ने नभाटा पर, अपने लेख ’क़ुरान तो है, पर कंप्‍यूटर कहा हैं?’ में लिखा है कि, ’कुरान पढ़ने-पढ़ाने की आज़ादी तो हमारा संविधान देता ही है, आप बस मुस्लिम नवयुवकों को कंप्यूटर यानी आधुनिक ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा और रोजगार के बेहतर मौके सुनिश्चित कराइए।’ इसे पढ़ते हुए मेरे ज़ेहन में केवल एक ही प्रश्न् था कि, ’क्‍या हमारा संविधान मुसलमानों को कम्‍प्‍यूटर यानि आधुनिक ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा और रोज़गार के बेहतर मौके सुनिश्चित् नहीं कराता है?’
अभी महाराष्ट्र सरकार के एक निर्णय, जिसमें उन वैदिक स्‍कूलों और मदरसों को स्‍कूल का दर्ज़ा नहीं दिए जाने की बात की है जिसमें विज्ञान, गणित आदि विषय नहीं पढ़ाये जाते हैं, तो मुल्ला-मौलवियों ने वही ’विशेषाधिकार में हस्‍तक्षेप’ टाईप का बवाल मचाना शुरू कर दिया है। वैदिक स्‍कूलों की तरफ से अभी तक कोई प्रतिक्रिया के समाचार नहीं हैं।
बताईये, श्रीमान् सगीर किरमानी जी, इसपर आपका क्‍या मत है। आप यह तो जानते हैं कि ये मुल्ला-मौलवी और ओवैसी जैसे नेता मुस्‍लिमों की बदहाली के लिए ज़िम्‍मेदार हैं, तो फिर क्‍यों आपके समुदाय के प्रबुद्ध लोग टीवी पर बवाल मचा रहे इन मुल्लाओं का विरोध नहीं करते? आपने प्रश्न् तो उठाया, किन्‍तु क्‍या वास्‍तव में मुस्लिम् समुदाय की बदहाली के लिए कोई और दोषी है? दोषी यदि कोई है तो वह है ख़ुद मुस्‍लिम् समुदाय।
क्‍यों मुस्‍लिम् समुदाय सईद नक़वी और श्री एम. जे. अक़बर जैसे प्रबुद्ध विचारकों एवं विद्वानों के विचारों का सम्मान नहीं करता? क्‍यों बिना विचार किए सलमान रश्दी, तस्‍लीमा नसरीन जैसे लोगों को इस्‍लाम् का दुश्मन मान लिया जाता है? इसका जवाब केवल यही है कि इन मुल्ला-मौलवियों और ओवैसी जैसे नेताओं ने अशिक्षित मुस्‍लिम् समुदाय के दिलो-दिमाग़ पर पूर्ण रूप से क़ब्‍ज़ा कर लिया है।
मुसलमानों के हितों के लिए किस प्रकार कार्य किया जाए, यह समझना किसी के लिए संभव नहीं। जो समुदाय अपने धार्मिक अधिकारों के प्रति तो पूर्णतः सजग है, किन्‍तु अपनी शिक्षा, सामाजिक एवं आर्थिक विकास के प्रति बेपरवाह है, उसका कोई क्‍या करे। मुसलमान ख़ुद अपने समुदाय के उत्‍थान के लिए काम क्‍यों नहीं करते, क्‍यों हमेशा दूसरों को कोसते रहते हैं, यह भी एक प्रश्न् है।
सबसे महत्‍वपूर्ण बात, ये मुल्ला-मौलवी जो आज मुस्लिम् समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, उसी मदरसा सिस्टम की देन हैं, जिसे अधिकांश मुस्लिम् प्रबुद्धजन अपने समुदाय की प्रगति में सबसे बड़ी रूकावट मानते हैं।

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