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ख़बरदार! जो कहा कि हम अच्‍छे हैं…

बोलवचन
बोलवचन
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आज सुबह उठते ही न्‍यूज़ चैनल्स पर आती हुई दो ख़बरों ने मेरा ध्यान आकर्षित किया, जिनमें आपस में कोई समानता न होने के बावजूद एक बात ऐसी थी, जिससे हमारे देश में सांप्रदायिक वैमनस्य बढ़ सकता है तथा एक वर्ग में दूसरे वर्ग के प्रति अविश्वास का भाव पनप सकता है।

पहली ख़बर दिल्ली से थी, जिसका शीर्षक था – ’नॉर्थ-ईस्‍ट की छात्रा की क्रूरतापूर्वक हत्‍या’, जिसके अंतर्गत बताया गया कि 24 वर्षीय यह लड़की अपने पार्टनर के साथ पिछले 6 महीने से लिव-इन में रह रही थी। हत्‍या के बाद से उसका प्रेमी फरार है तथा उसकी तलाश की जा रही है। इस पूरी ख़बर के दौरान बार-बार किया गया ’नॉर्थ-ईस्ट’ शब्‍द का प्रयोग मेरी समझ से परे है। प्रेमी-प्रेमिका के बीच विवाद के दौरान हुई इस हत्‍या को एक नस्‍लभेदी घटना का जामा पहनाकर प्रसारित करना क्या हमारे देश के विभिन्न वर्गों के बीच वैमनस्‍य पैदा करने की कोशिश नहीं है? नार्थ-ईस्ट के लोग हमेशा से अपने ही देश में नस्‍लभेदी एवं भेदभावपूर्ण व्‍यवहार के शिकार रहे हैं। ऐसे में क्‍या यह ज़रूरी है कि इस तरह की घटनाओं को भी नस्लभेदी रंग दे दिया जाए। ऐसी ख़बरों से उनके मनोबल पर क्‍या असर पड़ेगा। यह टीआरपी एवं सनसनी के भूखे अतिउत्‍साही मीडिया को गंभीरतापूर्वक समझने की आवश्यकता है।

दूसरी घटना बैंगलुरू से आ रही है जिसमें अपने ऊपर हो रहे हमले से बचाव के लिए पुलिस इंस्‍पेक्‍टर ने आक्रमणकारी पर गोली चला दी जिससे उसकी मृत्‍यु हो गई। अपराधी का नाम मोहम्‍मद था, जिसके कारण बवाल शुरू हो गया। उसके परिवारवालों ने पुलिस पर आरोप लगाया कि चूंकि मोहम्‍मद मुस्‍लिम था, इस कारण उसे मार दिया गया। किसी इस्‍लामिक संस्था ने उस पुलिसवाले को गिरफ्तार कर कड़ी कार्यवाही की मांग की है। ख़बर दिखाते समय रिपोर्टर का पूरा ज़ोर उस अपराधी के ’मुस्‍लिम’ होने पर था। किसी ने पुलिस का पक्ष जानने या घटना की पूरी जानकारी लेने की कोशिश नहीं की, सीधे ही पुलिस को कटघरे में खड़ा कर दिया गया। हालांकि, पुलिस की ओर से दिये गए बयान में स्‍पष्ट कहा गया कि उस अपराधी ने पुलिस पर चाकू से हमला कर दिया था, जिसके फलस्‍वरूप आत्‍मरक्षा हेतु चली गोली से अपराधी की मौत हो गई।

वैसे ही हमारे देश में लोग सांप्रदायिक वैमनस्‍य से पीड़ित है, ऐसे में किसी एक वर्ग विशेष को पुलिस जैसी संस्‍था (जो देश एवं समाज के हर नागरिक की सुरक्षा के प्रति समान रूप से जवाबदेह है) के प्रति भड़काना और उसकी निष्पक्षता पर संशय पैदा करना, मेरी नज़र में किसी गंभीर अपराध से कम नहीं।

अब समय आ गया है कि मीडिया अपनी ज़िम्‍मेदारी समझे एवं ख़बरों को इस तरह न पेश करे कि सांप्रदायिक वैमनस्‍य उत्‍पन्न हो जाए।

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