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पतझड़ में भी फूल खिलाने निकला हूँ..

Truth..The Reality
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पतझड़ में भी फूल खिलाने निकला हूँ, अँधेरे में भी आज दीप जलाने निकला हूँ,
कभी चला में, कभी गिरा में. और कभी गिर -२ के उठ चला यारों, चलते का तो साथ सभी देते है, में तो गिरते को भी आज उठाने निकला हूँ…
पतझड़ में भी फूल खिलाने निकला हूँ, अँधेरे में भी आज दीप जलाने निकला हूँ,
कभी जीत मिली, कभी हार मिली,  और कभी जीत जीत के भी हार मिली यारों, जीत के पल तो हर कोई संजोता, मै तो हारों को भी आज सजाने निकला हूँ…
पतझड़ में भी फूल खिलाने निकला हूँ, अँधेरे में भी आज दीप जलाने निकला हूँ,
कभी मै डूबा, कभी मै तैरा, और कभी मै  डूब -डूब कर तैरा यारों, धारा संग तो सभी है बहते, मै तो विपरीत धार में आज जीवन पार लगाने निकला हूँ..
पतझड़ में भी फूल खिलाने निकला हूँ, अँधेरे में भी दीप जलाने आज निकला हूँ,
कुछ दोस्त मिले, कुछ दोस्त बिछड़े , कुछ बिछड़ के वापस दोस्त मिले यारों, दोस्त तो सभी बनाते है यारों, में तो कुछ दुश्मन दोस्त आज बनाने निकला हूँ …
पतझड़ में भी फूल खिलाने निकला हूँ, अँधेरे में भी दीप जलाने आज निकला हूँ,
कभी हंसा मै, कभी मै रोया, और कभी हंस-२ के भी रोया यारों, खुशियों में सभी है हँसते यारों , में तो गम में भी आज मुस्कुराने निकला हूँ…
पतझड़ में भी फूल खिलाने निकला हूँ, अँधेरे में भी दीप जलाने आज निकला हूँ,

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