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त्रिपुरा के स्थानीय TV चैनल “दिनरात” के पत्रकार शांतनु भौमिक की हत्या कर दी गयी। हत्या उस समय हुई, जब वह त्रिपुरा में इंडिजीनस फ्रंट ऑफ त्रिपुरा व सीपीएम के ट्राइबल विंग टीआरयूजीपी के बीच संघर्ष को कवर कर रहे थे।
शांतनु की हत्या के बाद चारों तरफ सन्नाटा है। अभिव्यक्ति की आज़ादी व असहिष्णुता को आधार बनाकर देश पर हमला करने वाले बुद्धिभिक्षी, तथाकथित पत्रकार, लेखक आदि सभी शांत हैं।
गौरी लंकेश, जो एक वर्ग विशेष को गाली देती थी, उसके खिलाफ जहर उगलती थी, उन्हें निष्पक्ष पत्रकार की संज्ञा देने वाले लोग, उनकी हत्या पर मातम मनाने वाले वामी, कांग्रेसी, तथाकथित पत्रकार, बुद्धिजीवी व नेता सभी पत्रकार शांतनु की मौत पर शांत हैं।
शांत होंगे भी क्यों नहीं, क्योंकि हत्या वामपंथी शासित राज्य में जो हुई है। हाल ही में यही लोग गौरी लंकेश की हत्या पर तमाम तरह का रोना रो रहे थे, लेकिन स्वयं के राज्य में पत्रकारों की सुरक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया।
नरेंद्र दाभोलकर व पंसारे की हत्या पर हो हल्ला मचाने वाले लोग खुद के शासन होते हुए भी एक वर्ष से अधिक बीत जाने के बाद भी अभी तक किसी को पकड़ नहीं पाए हैं, न ही जांच पूरी कर पाए हैं।
यदि ये वास्तव में पत्रकारों की हत्या पर गंभीर होते, तो इस तरह की घटना उनके शासन में न होती और यदि हुई भी है, तो इस तरह का मौन न होता। नरेंद्र दाभोलकर व पंसारे की हत्या में शामिल लोगों पर अब तक कोई कार्रवाई हो चुकी होती।
दिल्ली प्रेस क्लब में इस पत्रकार की हत्या की भी निंदा की जाती और जिस तरह गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में दिल्ली प्रेस क्लब में पत्रकारों के साथ तमाम नेता एकत्र हुए थे, उसी तरह शांतनु की हत्या पर एकत्र होते और स्वयं की कमी को स्वीकार करते।
मगर वास्तविकता यही है कि इन लोगों को तो बस मसाला चाहिए अपनी राजनीति चमकाने का और देश पर अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला व असहिष्णुता का आरोप लगाने का।
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