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चुनाव परिणामों पर राजनेताओं के बेबुनियाद आरोप

अंतहीन
अंतहीन
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किसी भी देश में लोकतंत्र एक मंदिर के समान होता है। मतदाता जिसके पुजारी होते हैं। चुनाव जिसकी पूजा पद्धति होती है। जनप्रतिनिधि जिसमें ईश्वर के समान होता है। चुनाव का परिणाम जिसमें प्रसाद स्वरूप होता है।

देश के पांच राज्यों-उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा व मणिपुर में विधानसभा विगत दिनों सम्पन्न हुए। जिनके परिणाम 11 मार्च दिन शनिवार को जनता के समक्ष आए। परिणामों की बात की जाए, तो उत्तरप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी अपने सहयोगी दलों के साथ 403 सीटों में से 325 सीटों पर प्रचण्ड बहुमत के साथ विजय प्राप्त कर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, वहीं सत्ताधारी समाजवादी पार्टी को 2012 को विधानसभा चुनावों में प्राप्त 224 सीटों की अपेक्षा मात्र 47 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। कांग्रेस को केवल 7 सीटें मिली, जिसने पिछले विधानसभा चुनावों में 28 सीटें जीतीं थी। बहुजन समाज पार्टी को पिछले विधानसभा चुनावों में मिली 80 सीटों की अपेक्षा 19 सीटें मिली। राष्ट्रीय लोकदल को 1 सीट व अन्य को 3 सीटों पर विजय प्राप्त हुई। उत्तराखंड में भाजपा को 57, कांग्रेस को 11, व अन्य को 2 सीटों पर विजय मिली, जबकि बहुजन समाज पार्टी का खाता तक नहीं खुल सका। पंजाब में कांग्रेस को 77, शिरोमणि अकाली दल+भाजपा को 18, आम आदमी पार्टी को 20 व अन्य को 2 सीटों पर विजय प्राप्त हुई। गोवा में भाजपा को 13, कांग्रेस को 17 व अन्य को 10 पर जीत मिली। मणिपुर में कांग्रेस को 28, भाजपा को 21, तृणमूल कांग्रेस को 1 व अन्य को 10 सीटों पर जीत हासिल हुई।

इस तरह के परिणाम आने के बाद चुनाव परिणामों को लेकर चुनाव आयोग व केंद्र सरकार हारे हुए राजनेताओं के निशाने पर है। वे अपने हार का ठीकरा इन पर फोड़ रहे हैं। मायावती-अखिलेश से लेकर लालू यादव तक चुनाव में प्रयुक्त होने वाली इलेक्टॉनिक वोटिंग मशीनों में गड़बड़ी होने की बात कर रहे हैं। इस तरह के आरोप लगाते हुए वे केंद्र सरकार पर लोकतंत्र ही हत्यारे होने का आरोप लगा रहे हैं। वैसे तो चुनाव परिणाम चाहे जो भी हो, उन्हें सहर्ष स्वीकार करना चाहिए क्योंकि लोकतंत्र जनता ही जनार्दन है, वह स्वविवेक से अपने प्रतिनिधि का चुनाव करती है और यही लोकतंत्र है।

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन, कंट्रोल यूनिट व बैलेटिंग यूनिट से बनी होती है। बैलेटिंग यूनिट के द्वारा बटन दबाकर मतदाता द्वारा मतदान किया जाता है व कंट्रोल यूनिट पीठासीन अधिकारी के पास रहती है जिसका बटन दबाकर पीठासीन अधिकारी मतदाता को मतदान करने के लिए सक्षम बनाता है। इसका पहली बार प्रयोग सन् 1982 में केरल के परूर विधानसभा के 50 मतदान केंद्रों पर हुआ। नवंबर 1998 के बाद से आम चुनाव/ उपचुनावों में प्रत्येक संसदीय तथा विधानसभा क्षेत्रों में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। मतदान केंद्रों पर भेजी जाने वाली ईवीएम की सूची उम्मीदवारों को जांच के लिए दी जाती है। इसके अलावा पोल एजेंटो की मौजूदगी में चुनाव अभ्यास कराया जाता है, जब पोल एजेंट जांच कर सकते हैं। चुनाव शुरू होने से पहले एक मॉक पोल सर्टिफिकेट लिया जाता है और गवर्नमेंट सेक्युरिटी प्रेस में मुद्रित हरे रंग के कागज की सील लगा दिया जाता है। मतदान केंद्र पर भी चुनाव अधिकारी एजेंटो को बाकायदा मशीन चेक करके दिखाते हैं। इन सबके बाद भी ईवीएम में गड़बड़ी की बात करना समझ से परे है।
1998 के बाद से प्रदेश में लगभग 4 विधानसभा चुनाव व देश में लगभग 5 लोकसभा चुनाव हो चुके हैं जिनमें ईवीएम का प्रयोग किया गया। इन चुनावों में विभिन्न राजनैतिक दलों की सरकारें चुनी गयीं। तब क्यों नहीं मशीनों में छेडछाड़ की बात हुई? एक-दो मतदान केंद्रों पर गड़बड़ी हो सकती है लेकिन एक साथ सभी मतदान केंद्रो पर गड़बड़ी की बात करना समझ से परे है। यदि ईवीएम में केंद्र सरकार गड़बड़ी करती तो पंजाब में क्यों चुनाव हारती? मणिपुर व गोवा में क्यो न खुद के लिए बहुमत की राह आसान करती है? गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पारसेकर, भाजपा उत्तरप्रदेश के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष क्यों चुनाव हारते? ईवीएम में छेड़छाड़ तो 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस भी कर सकती थी। ईवीएम में छेड़छाड़ तो स्वयं अखिलेश यादव करा सकते थे।

ईवीएम में छेड़छाड़ का मामला पंजाब के पटियाला विधानसभा क्षेत्र में भी सामने आया था, जिसकी जांच के बाद चुनाव आयोग ने जिला प्रशासन को क्लीन चिट दे दी। दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी केजरीवाल के द्वारा ईवीएम में छेड़छाड़ का आरोप लगा था, जिसे चुनाव आयोग ने नकारते हुए कहा था-“उसे ईसीआई-ईवीएम (भारत के चुनाव आयोग द्वारा जारी ईवीएम) में छेडछाड़ नहीं हो सकने का पूरा विश्वास है और पूरे देश के मतदाताओं को आश्वस्त किया जाता है कि मशीनों का दुरुपयोग नही किया जा सकता।” इसके साथ ही कहा गया,“चुनाव आयोग ईवीएम के काम करने पर किसी भी तरह की शंका को दूर करना चाहेगा। यह दोहराया जाता है कि आयोग ने व्यापक प्रशासनिक कदम और प्रक्रियागत चेक और बैलेंस की व्यवस्था की है। इसका लक्ष्य किसी भी संभावित दुरुपयोग व प्रक्रियागत चूक को रोकना है। 2014 के लोकसभा चुनावों में भी ईवीएम में गड़बड़ी की बात सामने आई थी। तब सुब्रहमण्यम स्वामी ने ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था और मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले गए थे। उसके बाद से ईवीएम में पर्ची देने की अनिवार्यता सुप्रीम कोर्ट ने कर दी। इसके साथ ही देश की न्यायपालिका ने भी सही व प्रामाणिक मतदान के लिए लगातार चुनावों में ईवीएम के प्रयोगों पर जोर दिया है। ऐसे में राजनेताओं व राजनैतिक पार्टियों द्वारा ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाना व गड़बड़ी जैसे आरोप लगाना बिल्कुल तर्कहीन है। चुनाव का परिणाम जो भी हो, उसे राजनेताओं द्वारा सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। अंत में बस यही कहूंगा-
“परिणाम चाहे जो भी हो,
मंजूर होना चाहिए।
इश्क हो या जंग हो,
भरपूर होना चाहिए।”

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