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कुछ समय पहले समान नागरिक कानून पर सुप्रीम कोर्ट के प्रस्ताव पर केन्द्र सरकार ने लॉ कमीशन को समान नागरिक संहिता के सभी पहलुओं पर जांच करने को कहा था। उसी समय पूरे देश में इस विषय को लेकर बहस तेज हो गई थी। तमाम लोग व समुदाय इसके पक्ष में थे, तो कुछ लोग व कुछ समुदाय इसके विरोध में। विरोध करने वाले समुदाय के लोगों को यही लग रहा था जैसे यूनिफॉर्म सिविल कोड केवल उन्हीं पर लागू हो रहा हो।
उनका समुदाय खतरे में पड़ जाएगा। इसका समर्थन उनके लिए स्वयं के समुदाय के तमाम रीति-रिवाजों, परम्पराओं के विरोध करने जैसा था। साथ ही साथ उन्हें लग रहा था कि इसका समर्थन करके वे अपने समुदाय के कानूनों के खिलाफ हो जाएंगे, जो उनके लिए पाप जैसा था। उनके लिए समुदाय से बेदखल हो जाने जैसा था। तभी मेरी भी सोशल मीडिया पर इस विषय पर समुदाय विशेष के एक व्यक्ति से बात हो रही थी। मेरे इस सवाल पर कि आपके लिए देश पहले है या आपका समुदाय, तो उसका जवाब था मेरा समुदाय व मेरे सामुदायिक कानून मेरे लिए सर्वप्रथम हैं, बाकि बाद में। ऐसी मानसिकता देश के तमाम लोगों की है।
पिछले कुछ समय से वंदेमातरम् व भारत माता की जय कहने पर भी बहस जोर-शोर से चल रही है। इस विषय पर राजनीतिक सरगर्मी भी खूब है। कोई इसे अभिव्यक्ति की आजादी से जोड़ रहा है, तो कोई किसी से। इस विषय पर भी देश के तमाम लोग विरोध में हैं और जो लोग इसके विरोध में हैं, उन लोगों का विरोध वे लोग तक नहीं कर रहे हैं, जो देशविरोधी नारे लगाने वालों के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। इसे अभिव्यक्ति की आजादी व मौलिक अधिकारों से जोड़ते हैं।
अभी हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु के स्कूलों-कॉलेजों एवं सरकारी कार्यालयों में सप्ताह में कम से कम एक दिन वंदेमातरम् गाना अनिवार्य करने का आदेश दिया है। महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा के प्रमुख सचेतक राज के. पुरोहित ने गुरुवार को पत्रकार वार्ता में कहा था कि वह मुख्यमंत्री से मिलकर महाराष्ट्र में भी वंदेमातरम् गायन अनिवार्य करने की मांग करेंगे व इस विषय को सदन में भी उठाएंगे। इसी पर प्रतिक्रिया देते हुए एमआईएम के विधायक वारिस पठान ने कहा था कि वह सदन में इस मांग का विरोध करेंगे, क्योंकि उनका धर्म और कानून इसे गाने की इजाजत नहीं देता। कोई उनके सिर पर रिवॉल्वर रख दे, तो भी इसे नहीं गाएंगे।
सपा नेता अबू आजमी ने कहा था कि एक सच्चा मुसलमान इसे कभी नहीं गाएगा। मुझे देश के बाहर भी फेंका जाता है, तो मैं इसे नहीं गाऊंगा। कुछ समय पहले उत्तराखंड कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने कांग्रेसियों को वंदेमातरम् न गाने का फरमान सुनाया था, क्योंकि उत्तराखंड के शिक्षामंत्री धन सिंह रावत ने हर किसी को वंदेमातरम् गाना जरूरी बताया था। इस तरह देश के तमाम राजनेता, बुद्धिजावी, कलाकार, धर्मगुरू व लोग वंदेमातरम् गाने का विरोध करते आए हैं।
देश व भारत माता का नमन-वंदन करते हुए स्वतंत्रता सेनानियों ने आजादी की लड़ाई लड़ी व देश को आजाद कराया। अब आजाद भारत में लोग उसी भारत माता की वंदना करने से कतरा रहे हैं व विरोध कर रहे हैं। खिलाफत आंदोलन के अधिवेशन वंदेमातरम् के गायन से ही शुरू होते थे। अहमद अली, शौकत अली, जफर अली जैसे वरिष्ठ मुस्लिम नेता इसके सम्मान में खड़े हो जाते थे। बैरिस्टर जिन्ना तो इसके सम्मान में न खड़े होने वाले लोगों को डाँट लगाते थे।
रफीक जकारिया ने अपने निबन्धों में लिखा है कि मुस्लिमों द्वारा वंदेमातरम् का विवाद निरर्थक है। यह गीत स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कांग्रेस के सभी मुस्लिम व हिन्दू नेताओं द्वारा गाया जाता था। बंगाल विभाजन के समय हिन्दू व मुस्लिम दोनों ही इसे पूरा गाते थे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने वंदेमातरम् गायन के लिए अंग्रेजों तक से संघर्ष किया और स्वतंत्र भारत में तमाम लोग इसका विरोध कर रहें हैं।
जिस मिट्टी में हम जन्म लिए, हमारा लालन-पालन हुआ, खेले और बड़े हुए और जो मिट्टी हमें जीवनपर्यंत सब कुछ देती है, उसकी वंदना करने में, उसे नमन करने में कदापि संकोच नहीं करना चाहिए। क्योंकि हमारा जीवन भर भार सहन करती है हमारी भारत माता। हम जैसे चाहते हैं वैसे इसके आंचल में रहते हैं। हमारे धर्मग्रंथ भी हमें यही शिक्षा देते हैं ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात माता और जन्मभमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं। फिर ‘देश हमें देता है सब कुछ हम भी तो कुछ देना सींखें’, तो क्या हम लोग इसे सम्मान नहीं दे सकते? हम पूज्य भारत माता को नमन-वंदन नहीं कर सकते? फिर वंदेमातरम् का अभिप्राय भी तो यही है कि मातृभूमि का वंदन।
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