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सीमा पर खूनी खेल आखिर कब तक ?

अंतहीन
अंतहीन
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लगभग 800 वर्षों तक मुस्लिम व 250 वर्षों तक
अंग्रेजी शासन के पश्चात् तमाम स्वाधीनता संघर्षों के परिणामस्वरूप 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ।
देश की आजादी के जश्न के साथ हमें मिला भारत के विभाजन का दंश। जिन्ना जैसे सियार-भेड़िये नेताओं की वजह से देश का बँटवारा हो गया और पाकिस्तान बन गया। बँटवारे के साथ ही शुरू हुआ मौतों का खेल जो आज तक जारी है।

कश्मीर व अन्य राजनैतिक विवादों की वजह से भारत पाकिस्तान के बीच सम्बन्ध हमेशा से ही तनावपूर्ण रहे हैं, जो पिछले कुछ दिनों से और भी तनावपूर्ण हो गए हैं। आतंकवाद की सह पर फलने-फूलने वाला पाकिस्तान आए दिन सीमा पर सीज फायर उल्लंघन कर रहा है, व गोलाबारी कर रहा है। जिसमें हमारे देश के सैनिक, जो हमारी रक्षा के लिए दिन-रात मौत को सर पर लिये खड़े रहते हैं, शहीद हो रहे हैं और साथ ही सीमावर्ती क्षेत्र के नागरिक भी हताहत हो रहे हैं। पिछले एक सप्ताह में लगभग 5 सैनिकों सहित 8 लोग मारे जा चुके हैं व 35 लोग घायल हो चुके हैं। साथ ही खबर आ रही है कि सीमा पर तैनात बीएसएफ के मंदीप सिंह के शव को पाकिस्तानी सैनिक क्षत-विक्षत कर सिर को अपने साथ ले गए हैं। मंदीप सिंह के साथ हुई घटना एक बार फिर हमें 8 जनवरी 2013 का स्मरण करा रही है, जब पाकिस्तानी सैनिक भारतीय सीमा में घुसकर शहीद हेमराज समेत लगभग दो सैनिकों के सिर काटकर साथ ले गए थे।

पाकिस्तान के साथ अब तक चार युद्ध हुए जिसमें सभी में वह पराजित हुआ, लेकिन फिर भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है और आए दिन हमारे सीमा पर तैनात सैनिकों व उनके परिवारीजनों को लगातार हताहत करता आ रहा है इसके लिए कभी वह आतंकवाद का सहारा लेता है तो कभी अपने सैनिकों का।

पाकिस्तान के साथ हम शुरू से ही साफ्ट नीति अपना रखे हैं और केवल खोखली बयानबाजी करते आ रहे हैं अगर कभी सर्जिकल स्ट्राइक कर या जवाबी कारवाई में उसके सैनिकों को मार ले जाते हैं तो इतने में ही खुश हो जाते हैं हम और अपना बखान करना शुरू कर देते हैं और फिर पुराने ढर्रे पर आ जाते हैं।
हमें या हमारे परिवार के किसी सदस्य को कोई बीमारी तक लग जाती है तो पूरा परिवार परेशान हो जाता है। उसी तरह जब सीमा पर जवान शहीद होता है और उसके अंतिम संस्कार के लिए उसका सही शव भी उसके परिवारीजनों को नहीं मिलता, तो उनको होने वाले असहनीय दु:ख का अनुमान लगा पाना बहुत मुश्किल है।

आखिर ये मौत और खून-खराबे का शिलशिला कब तक चलता रहेगा ? कब तक हम सैनिकों की पत्नियों की मांग सूनी होने देंगे? कब तक हम सैनिकों के परिवार को हताहत होने देंगे? किसी की जिंदगी से बढ़कर कुछ नही होता । और अब सवाल हमारे देश के रक्षकों की जिन्दगी का है उनके परिवारीजनों के जीवन का है तो हम देशवासी अब देश के सैनिकों के साथ ये मौतों और खून-खराबे का शिलशिला अब और नहीं सहन करेंगे।

अब सरकार को चाहिए कि वह सीमा पर शांति के लिए स्थायी समाधान निकाले और उनको अपनाए। फिर वे चाहें सिंधु नदी का पानी रोकने के रूप में हों या कोई अन्य । हम देशवासी साथ खड़े होंगे। सीमा पर शहीद हुए सैनिकों की जिन्दगियाँ तो हम वापस नहीं कर सकते हैं लेकिन सीमा पर शांति के स्थायी समाधान निकाल कर देश के सैनिकों को सच्ची श्रद्धांजलि जरूर अर्पित कर सकेंगे और देश पर बलिदान हुए सैनिकों का बलिदान भी सार्थक हो सकेगा।

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