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सवाल, सांसद की रोटी का है !

प्रयास
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सारी लड़ाई तो रोटी की ही है, ऐसे में रोटी खराब मिली तो क्यों न हंगामा करते शिवसेना के सांसद। आखिर इतनी मेहनत जो करते हैं, हमारे माननीय सांसद, दिनभर संसद में जी-तोड़ मेहनत करने के बाद शाम को आराम से रोटी खाने के लिए बैठे थे, ऐसे में रोटी भी ऐसी रबड़ सरीखी निकली जो हलक में ही न उतरे तो गुस्सा तो आएगा ही न। कितनी मेहनत करते हैं, हमारे माननीय सांसद इसका नजारा भी आज ही संसद में देखने को मिला जब रोटी और रोजेदार के मुद्दे पर हमारे माननीय एक दूसरे को सबक सिखाने के लिए बांह चढ़ाते तक देखे गए।

महाराष्ट्र सदन में जो हुआ और उसके बाद संसद में जो हुआ उसके लिए बहुत ज्यादा हैरानी नहीं होनी चाहिए, आखिर हमारे माननीय सांसदों की रोटी का जो सवाल था, फिर सामने वाले को हमारे सासंद सबक न सिखाएं, ऐसे हो सकता है भला ! वो भी तब जब ये सासंद शिवसेना के हों !

सांसदों की हरकत ने तो हैरान नहीं किया, लेकिन ये पूरा घटनाक्रम परेशान जरूर करता है। रमजान के पाक महीने में एक रोजेदार को जबरन रोटी खिलाने की कोशिश करना परेशान करता है। उससे भी ज्यादा परेशान करता है, इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देने की कोशिश करना।

पहले तो ये सब होना नहीं चाहिए था, अगर माना आवेश में सांसदों ने ये सब कर भी दिया, तो माफी मांगकर कोई छोटा नहीं हो जाता। सांसद चाहते तो इस मुद्दे पर माफी मांग कर इसका पटाक्षेप कर सकते थे, लेकिन दिनभर इस पर अपने अपने हिसाब से लोग राजनीति करते रहे और जब तक शिवसेना सांसद ने घटनाक्रम पर माफी नहीं खेद जताया, तब तक बहुत देर हो गयी थी।

अच्छा लगता अगर हमारे माननीय सांसद किसी गरीब को रात को भूखा न सोना पड़े, इसके लिए इतनी दिलचस्पी दिखाते। किसी भूखे को रोटी खिलाने के लिए कभी लड़ाई लड़ते।

बड़ा अजीब लगता है, जिस देश में हर रोज भूख से कई मौतें होती हों, वहां पर इन भूखे लोगों को दो वक्त की रोटी नसीब हो, इसके लिए कोई सांसद कभी इतनी संजीदगी से प्रयास नहीं करता। लेकिन जब बात अपनी रोटी की आती है, तो ये कुछ भी करने से गुरेज नहीं करते। ये किसी भी हद तक जा सकते हैं, लेकिन अपने लिए, उसके लिए नहीं जिसकी वजह से ये लोग संसद तक पहुंच पाते हैं।

हां, वोट के लिए जब इनके पास जाना हो, तो वादों की झड़ी लगाने में देर नहीं करते लेकिन उनके हक की आवाज उठाने में, उनके हक की लड़ाई लड़ने में ये कहीं पीछे छूट जाते हैं।

deepaktiwari555@gmail.com

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