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काली होगी बहुगुणा की दीपावली !

प्रयास
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दीपों के त्यौहार दीपावली की तैयारियां शुरु हो गयी हैं, घर की सफाई की जा रही है और रंगाई पुताई कर घर को नया रुप रंग दिया जा रहा है। हो भी क्यों न, दीपों का ये त्यौहार सिर्फ अंधेरे को ही दूर नहीं भगाता बल्कि जीवन में भी नयी उमंग भर देता। दीपावली के भी कई रुप हैं, जितने बड़े कद के लोग, उनकी उतनी ही बड़ी दीपावली भी होती है, लेकिन बड़े पद के साथ ही बड़ी कद काठी वाले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के लिए इस बार की दीपावली रोशनी की बजाए अमावस की काली रात में तब्दील होती दिखाई दे रही है। मतलब साफ है कि इस दीपावली से पहले उत्तराखंड में कांग्रेस आलाकमान ने भी सफाई की तैयारी शुरु कर दी है।

दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय के विश्वसनीय सूत्रों के हवाले से आ रही ख़बरों पर अगर यकीन किया जाए तो अक्टूबर माह की विदाई की बेला उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी से विजय बहुगुणा को विदा करती दिखाई दे रही है। हालांकि इस बात की चर्चाएं देहरादून में तो काफी पहले से ही गर्म हैं, लेकिन अब दिल्ली में भी इसकी गूंज सुनाई देने लगी है औऱ इसके सूत्रधार बने हैं, मुख्यमंत्री की कुर्सी की महत्वकांक्षा मन में लिए कांग्रेस में एक ही छत के नीचे रहने वाले कुछ कांग्रेसी, जिन्हें बहुगुणा इस कुर्सी पर फूटी आंख नहीं सुहाते।

वैसे भी मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने फैसलों को लेकर विवादों में रहने वाले विजय बहुगुणा की कुर्सी उस वक्त से कुछ ज्यादा ही डगमगाने लगी है, जब देवभूमि उत्तराखंड ने अपने सीने में उत्तराखंड के इतिहास की अब तक की सबसे भीषणतम त्रासदी को झेला था। आपदा के वक्त दिल्ली दरबार में हाजिरी लगाने और राहत एवं बचाव कार्य की धीमी गति और लचर प्रबंधन ने उत्तराखंड में बहुगुणा पर आती दिखाई दे रही राजनीतिक आपदा में अहम रोल अदा किया। रही सही कसर पूरी कर दी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नजरें गढ़ाए बैठे कांग्रेस के कद्दावर नेताओं ने। ये सब दरअसल इस पूरी पटकथा का एक अहम हिस्सा था जो दीपावली से ठीक पहले अक्टूबर की विदाई के साथ साकार होता दिखाई दे रहा है।

आलाकमान को हर तरह से साधने में माहिर विजय बहुगुणा को उनके ऊपर आने वाली इस राजनीतिक आपदा का पूरी तरह आभास भी है कि उनकी कुर्सी कभी भी भरभरा कर गिर सकती है, और इसीलिए बहुगुणा ने जैसे तैसे जोड़ तोड़ कर मिली इस कुर्सी को बचाने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। फिर चाहे वो दिल्ली दरबार में हाजिरी लगाकर उनको खुश करने का कोई मौका न छोड़ने की बात हो या फिर करोड़ों रुपए खर्च कर मीडिया मैनेजमेंट के जरिए अपनी धूमिल छवि पर पर्दा डालने की बात।

बहुगुणा हर जुगत अपना रहे है कि कैसे भी जैसे तैसे जुगत कर मिली इस कुर्सी को बचा लिया जाए लेकिन बहुगुणा की नाकामियों की फेरहिस्त के साथ ही अपनी ही पार्टी में उनके विरोधियों की फेरहिस्त इतनी छोटी भी नहीं कि कांग्रेस आलाकमान उसे लंबे वक्त तक नजरअंदाज कर सके। लिहाजा अक्टूबर माह के आखिरी में उत्तराखंड कांग्रेस में बड़ी उठापठक देखने को मिल सकती है।

अगर ऐसे होता है तो जाहिर है ये उत्तराखंड में मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा के लिए बड़ा मुद्दा बन सकता है और भाजपा इसे 2014 में जनता के बीच भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी लेकिन कांग्रेस के पास उत्तराखंड में दूसरा कोई चारा भी नहीं है क्योंकि बहुगुणा खुद को साबित करने में विफल ही रहे हैं फिर चाहे वो आपदा के बाद उनका लचर प्रबंधन हो या फिर बहुगुणा सरकार के दूसरे फैसले।

जाहिर है विजय बहुगुणा की दीपावली अगर काली होती है तो बहुगुणा के मंत्रियों के घरों में भी दीपों की चमक फीकी पड़ेगी और इसके उल्ट कुछ लोगों के घरों में रोशनी के साथ ही आतिशबाजी की गूंज कुछ ज्यादा ही सुनाई देगी। अंदरखाने इसकी तैयारी तो दिल्ली से लेकर देहरादून तक कई कांग्रेसी दिग्गज कर रहे हैं लेकिन आलाकमान का आशीर्वाद किसे मिलेगा इसको लेकर सस्पेंस बरकरार है।

हालांकि 2002 और 2012 में उत्तराखंड में मुख्यमंत्री की कुर्सी के सबसे दमदार दावेदार रहे हरीश रावत को बहुगुणा की जगह उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी जा सकती है, लेकिन उत्तराखंड में मुख्यमंत्री की कुर्सी का ख्वाब संजोए बैठी कांग्रेस की ही कद्दावर नेता इंदिरा हृद्येश व हरक सिंह रावत जैसे घाघ कांग्रेसी एक बार फिर से हरीश रावत की राह में रोड़ा बन सकते हैं।

बहरहाल उत्तराखंड में कुर्सी बचाने और कुर्सी हासिल करने की कवायद तेज हो चुकी है। निराशा और हताशा के साथ ही उम्मीद के बादल भी कांग्रेसियों के घरों पर मंडराने लगे हैं। किसके घर पर निराशा और हताशा के बादल बरसेंगे और किसके घर पर उम्मीद के बादल बरसेंगे ये तो वक्त ही तय करेगा। लेकिन अगर इस बार दीपावली से पहले ही उत्तराखंड में कई कांग्रेसियों के घरों में रोशनी और जोरदार आतिशबाजी के साथ ही ढोल नगाड़ों की आवाज सुनाई दे तो समझ लिजिएगा कि कुछ लोगों की दीपावली तो काली हो ही गयी है।

deepaktiwari555@gmail.com

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