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भूख नहीं कमबख़्त सियासत मार देती है !

प्रयास
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पापी पेट का सवाल है, वरना कौन कमबख्त तन को झुलसा देने वाली गर्मी में जी तोड़ मेहनत करता। अगर पापी पेट ना हो, तो दिन-रात खून-पसीना एक करने की ज़रूरत ही ना पड़े, लेकिन इतनी जद्दोजहद के बाद अगर मेहनताने के लिए भी  आंदोलन का रास्ता अख्तियार करना पड़े, तो क्या ?

पूर्वी दिल्ली में सड़क किनारे जगह-जगह लगे कूड़े के ढ़ेर इस आंदोलन की कहानी खुद बयां कर रहे हैं। खास बात ये, कि हक की इस लड़ाई में सबसे ज्यादा नुकसान भी लड़ने वालों का ही होता है। फिर आम जनता तो है ही उस घुन की तरह है जो आटे के साथ हमेशा से पिसती आई है।

अगर कोई फायदे में है, तो वह है, इस लड़ाई के दूसरे सिरे पर खड़ी सरकार और सत्ता की लालसा लिए राजनीतिक दल, जिन्हे सफाई कर्मचारियों की परेशानी में भी अपना वोट बैंक दिखाई पड़ रहा है। सफाई कर्मचारियों की इस परेशानी में वे भले ही तन से साथ खड़े होने का दम भर रहे हैं, लेकिन असल में सियासी कौम अपने सियासी नफे नुकसान के गणित में उलझी हुई है।

इस जंग का आगाज़ करने वाले पूर्वी नगर निगम के सफाई कर्मचारियों के घर में खाने के लाले पड़े हुए हैं लेकिन घर से भरपेट नाश्ता कर इनके आंदोलन में शामिल होने वाले राजनीतिक दलों के नुमाईंदे एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेल रहे हैं।

सफाई कर्मचारियों के साथ ही इस लड़ाई का असर झेल रही आम जनता की दुश्वारियों से बेख़बर राजनेता अपनी-अपनी सियासत चमकाने में बेहद व्यस्त हैं। कुछ एसी कमरों में बैठकर प्रेस कांफ्रेंस कर एक दूसरे पर निशाना साध रहे हैं तो कुछ लाव-लश्कर के साथ धरना स्थल पर ही इनके सबसे बड़े हिमायती नज़र आ रहे हैं।

राजनीति को बदलने का सपना दिखाकर आम आदमी के नारे के साथ दिल्ली की सत्ता में काबिज अरविंद केजरीवाल सरकार हो, दिल्ली में “नाम” की विपक्षी पार्टी भाजपा या फिर राजनीतिक ऑक्सीजन तलाश रही कांग्रेस, सभी इनकी समस्या की बात कर रहे हैं, समाधान की नहीं ! हां, समाधान के सवाल पर गेंद एक-दूसरे के पाले में सरकाने में जरूर इनका कोई सानी नहीं है।

हालांकि दिल्ली सरकार को हाईकोर्ट की फटकार के बाद दो दिनों में बकाया वेतन के एमसीडी अधिकारियों के आश्वासन के बाद आखिर सफाई कर्मचारियों ने अपनी हड़ताल समाप्त करने का ऐलान जरूर किया है, लेकिन इसके बाद भी सवाल ये उठता है कि आखिर ऐसी नौबत ही क्यों आन पड़ी ? इस सवाल का जवाब शायद ही कोई राजनेता दे पाए। साफ है, मेहनत करने वालों को भूख नहीं कमबख़्त सियासत मार देती है !

deepaktiwari555@gmail.com

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