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विकास नहीं, जातीय मुद्दे पर ही लड़ा जा रहा है बिहार चुनाव

भावों से शब्दों तक
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बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। बुधवार को चुनाव आयोग ने बिहार में होनी वाले आगामी मतदान की तारीखों का ऐलान कर दिया है। अक्टूबर माह से लेकर नवम्बर के शुरूआती हफ्ते में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में कुल पांच चरण में मतदान कराने की घोषणा की गयी है। इसके साथ ही चुनावी नतीजे भी आठ नवम्बर को बिहार की जनता के सामने आ जायेंगे।

बिहार विधानसभा की तारीखों का ऐलान होते ही यह बहस प्रासंगिक हो गयी है कि इस बार किस राजनैतिक दल की सरकार बिहार में देखने को मिलेगी। क्षेत्रफल और भारत की केंद्रीय राजनीती में कद्दावर नेताओं को देने की वजह से बिहार को एक महत्वपूर्ण राज्य माना जाता रहा है। सत्तर के दशक में हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ जनआन्दोलन में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने बिहार के लिए कई कद्दावर नेता दिए।

सत्तर के दशक में हुए पटना के गांधी मैदान में जयप्रकाश आन्दोलन में कई छात्र नेताओं ने अहम भूमिका निभाई थी। बताया जाता है कि जब जयप्रकाश आन्दोलन को पुलिस लाठी के बल पर कुचलने के लिए आई थी तभी तत्कालीन वक्त में छात्र नेता रहे और मौजूदा वक़्त में राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने ही जयप्रकाश नारायण पर पड़ने वाली पुलिसिया लाठी को अपनी पीठ पर लेते हुए उन्हें बचा लिया था।

मसलन इसी तरह के अन्य वाकयों ने लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार को बिहार का कद्दावर नेता बना दिया और इसके बाद से ही देश के इस राज्य में इन्हीं दोनों नेताओं की तूती जमकर बोलने लगी।

जनता परिवार में कभी साथ रहे नीतीश कुमार, लालू प्रसाद, मुलायम सिंह यादव सरीखे कई अन्य कद्दावर नेताओं ने जनता परिवार में पड़ी फूट के बाद के अपने अपने रास्ते अलग कर लिए। इसके बाद नीतीश कुमार और शरद यादव ने जनता दल (यूनाइटेड), लालू प्रसाद यादव ने राष्ट्रीय जनता दल और मुलायम ने समाजवादी पार्टी का गठन किया जिसके बाद से ही यह तीनों राजनैतिक दल बिहार में चुनाव लड़ते आ रहे हैं।

बहरहाल, आगामी बिहार विधानसभा चुनावों के मद्देनजर सभी राजनैतिक दलों ने कमर कस ली है। अक्टूबर और नवम्बर माह में होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी से लेकर संभावित जनता परिवार को असलियत रूप देने में जुटे महागठबंधन के सभी राजनीतिक दल ने बिहार की जनता से विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने की बात कह रहे हैं। तमाम चुनावी रैलियों में संबोधन के दौरान बिहार भाजपा नेताओं से लेकर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनता से बिहार में विकास के वादें किये हैं। इसके अतिरिक्त महागठबंधन के भी सभी नेताओं ने बिहार की जनता से विकास के मुद्दे पर ही वोट डालने की अपील की है।

यूँ तो सभी राजनैतिक दल विकास के मुद्दे को लेकर ही जनता के सामने आरहे हैं लेकिन सच्चाई इससे बिलकुल भिन्न है। यह किसी से छिपा हुआ नहीं है कि बिहार में जातीय समीकरण सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं। एक आंकड़े के मुताबिक बिहार में 15 फीसद सवर्ण, 16 फीसद मुस्लिम, 6 फीसद दलित और 10 फीसद महादलित मतदाता मौजूद हैं। इसके अतिरिक्त 53 फीसद अन्य पिछड़ा वर्ग से लेकर जनजाति के मतदाता भी हैं जो बिहार के चुनावी दंगल को किसी भी तरफ मोड़ने में सक्षम दिखाई देते हैं।

बिहार विधानसभा चुनाव में तमाम राजनैतिक दलों द्वारा जाति व धर्म को लेकर दिए गए संकेत पर नज़र डालें तो पाएंगे कि मौजूदा वक़्त में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की छवि सुशासन बाबू की तरह बताई जाती रही है। लेकिन इसके बावजूद भी नीतीश या उनसे जुड़े नेता तमाम रैलियों में जाति को लेकर संकेत देते रहे हैं। महागठबंधन के दूसरे बड़े नेता लालू प्रसाद यादव भी स्वाभिमान रैली में विपक्ष के द्वारा लगाये जा रहे जंगलराज पार्ट 2 के आरोपों को खारिज करते हुए मंडल पार्ट 2 बता चुके हैं।

इतना ही नहीं बल्कि 40 सीटों पर लड़ रही कांग्रेस भी मुस्लिम वोट बैंक को साधने का प्रयास करती रही है। गौरतलब है कि बिहार की चुनावी रैलियों में मंडल, कमंडल की राजनीति के संकेत आने मात्र से ही मालूम हो जाता है कि विकास के यह चुनाव विकास के मुद्दे पर नहीं बल्कि जातीय समीकरण पर लड़ा जा रहा है।

वहीँ भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी खुद को पिछड़ी जाति का बता कर बिहार में जाति कार्ड खेल चुके हैं। इसके अतिरिक्त भाजपानीत राजग बिहार में अपने गठबंधन को बढाने के लिए कई ऐसे राजनैतिक दलों से गठबंधन करने में जुटी है जिससे समीकरण उसके पक्ष में हो सकें। भारतीय जनता पार्टी चुनावी बिसात पर जिन मोहरों को साथ लेना चाहती है वे यूँ तो छोटे राजनैतिक दल हैं लेकिन इन चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इन पार्टियों में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और अतिदलित चेहरे के रूप में पहचाने जाने वाले जीतनराम मांझी की हिंदुस्तान अवाम मोर्चा ले लेकर दलित चेहरे राम विलास पासवान की लोक जन शक्ति पार्टी जैसी पार्टियाँ शामिल हैं। बिहार के जाति समीकरण को समझने वाले यह बताते हैं कि इन दोंनो नेताओं की बिहार में दलित व महादलित वोटों पर अच्छी खासी पकड़ है।

सभी राजनैतिक दलों द्वारा जातीय समीकरण को दुरुस्त बनाने को लेकर चली जा रही इन चालों से इस बात को जरुर बल मिलता है कि तमाम प्रयासों के बावजूद भी अभी भी बिहार धर्म और जाति के बेड़ियों के चंगुल से आजाद नहीं हो पाया है।

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