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भारत की केंद्रीय राजनीति में मोदी सरकार को सत्ता संभाले नौ महीने से अधिक का वक्त बीत चुका है। विगत वर्ष के अप्रैल- मई माह में हुए दुनिया के सबसे बड़े आम चुनावों से पहले देश कई महत्वपूर्णं व विकट समस्याओ से जूझ रहा था। भ्रष्टाचार, कालाबाजारी आदि तो प्रमुख समस्याएं थी परंतु इसके इतर बीते कुछेक सालों में कमोबेश हाशिए पर जा रही भारतीय रेलवे भी एक समस्या बनकर उभरी थी। कांग्रेस नीत संप्रग सरकार ने अपने लगभग एक दशक की सत्ता में कई बार रेल मंत्री का बदलाव किया पर राजनीति चमकाने की वजह से सभी मंत्री रेलवे की स्थिति और बदहाल करते चले गए।
गौरतलब है कि भारतीय रेलवे महज एशिया में नही बल्कि वैश्विक रूप से भी अग्रणी पंक्ति में आती है। रोजाना भारत की करोड़ो जनता रेलवे का इस्तेमाल करती है। इसी करणवश 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद ही इस महत्वपूर्णं मंत्रालय में सुधार की उम्मीद की जाने लगी। इसी कड़ी में आगे बढ़ते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के सशक्त नेता सदानंद गौड़ा को रेल मंत्री बनाया। सदानंद गौड़ा के रेल मंत्रालय के बाद मोदी सरकार ने इस मंत्रालय में बदलाव करते हुए इसकी जिम्मेदारी सुरेश प्रभु को सौंप दी।
रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने मंत्रालय संभालते ही भारतीय रेलवे को हाशिए से बाहर निकालने की कई कोशिशें जरूर की परंतु मौजूदा वक्त में यह कोशिशें नाकाफी ही साबित हुई हैं। बहरहाल, अगर हम मौजूदा वक्त में रेलवे की स्थिति के बारे में बात करें तो पाएंगे कि भारतीय रेलवे चौतरफा मार का सामना कर रही है। देश के कुछेक शहरों के रेलवे स्टेशनों को छोड़ दिया जाए तो कमोबेश सभी स्टेशनों का हाल बहुत बेहाल है। कई रेलवे स्टेशन तो यात्रियों के पीने के लिए साफ पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं तक से जूझ रहे हैं।
भारतीय रेलवे की तमाम मूलभूत दिक्कतों में जो प्रमुख समस्या दिखाई पड़ रही है वह रेलवे की टिकट प्रणाली की समस्या है। विभिन्न रेल स्टेशनों पर लाइन लगा कर अनारक्षित टिकट लेने में आम नागरिक को आने वाली तमाम परेशानियों की बात हो या फिर इंटरनेट द्वारा रेलवे की आधिकारिक वेबसाइट से मिलने वाला आरक्षित टिकट हो। दोनो ही स्थितियां एक आम नागरिक या यात्री को बहुत ही परेशान करती है।
रेलवे टिकट काउंटर पर मिलने वाले टिकटों के इतर अगर हम मौजूदा वक्त में इंटरनेट के जरिए से रेलवे की वेबसाइट पर मिलने वाले आरक्षित टिकटों की बात करें तो पहली ही नजर में कई गड़बडि़यों का सामने आना भी पूरी की पूरी टिकट व्यवस्था पर ही सवालिया निशान खड़े करता है। जहां रेलवे की अधिकारिक वेबसाइट व्यापक स्तर पर ट्रैफिक होने की वजह से ज्यादातर रेलवे की नकारात्मक छवि को ही सामने लाती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय रेलवे की आधिकारिक वेबसाइट ‘आईआरसीटीसी‘ का नाम बीते वर्ष गूगल में सबसे अधिक बार सर्च की जाने वाली वेबसाइटों की अग्रिम पंक्तियों में शुमार हैं। साइट पर व्यापक स्तर पर ट्रैफ्रिक होने के कारण टिकटों की कालाबाजारी में दिनों दिन इजाफा हो रहा है। त्यौहारों के वक्त यह कालाबाजारी अपने चरम पर होती है। होली, दिवाली से लेकर हरेक तयौहारों पर आराक्षित टिकटों की कमी होने की वजह से दलालों की सक्रियता में भी तेजी आजाती है। रेलवे टिकट की कालाबाजारी से तो रेलवे उच्च अधिकारी से लेकर निचले स्तर पर काम करने वाला कर्मचारी तक परिचित है लेकिन इसमें सुधार लाने के बजाए टिकटों की कालाबाजारी में कर्मचारी भी सम्मिलित हैं। इतना ही नहीं बीते कुछेक वर्षो में कई अखबारों, टीवी न्यूज चैनलों के द्वारा किए गए स्टिंग ऑपरेशनों में टिकट प्रणाली में रेलवे कर्मचारियों के कालाबाजारी में षामिल होने की पोल भी खुल चुकी है। इन तमाम विसंगतियों के बावजूद भी मौजूदा वक्त की भाजपा नीत राजग सरकार इस अहम मुद्दे पर कड़ी कार्यवाई करती हुई दिखाई दी है।
बहरहाल, भारतीय रेलवे की टिकट प्रणाली की यह स्थिति इस कदर हाशिए पर जा चुकी है कि यात्री रेलवे में सफर करने के बजाए हवाई मार्ग को अधिक महत्व देने लगे हैं। इसके अलावा एशिया में भारतीय रेलवे का सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क होने की वजह से यह स्थिति बहुत ही चिंताजनक है। इसी कारणवश अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में रेल मंत्रालय व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी टिकट प्रणाली को सुचारू रूप से दुरूस्त करने के लिए क्या कदम उठाते हैं।
मदन तिवारी
वेब पत्रकार
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