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49 दिनों तक घमासान चलने के बाद दिल्ली में कांग्रेस के समर्थन से बनी आम आदमी पार्टी की सरकार का आखिरकार पटापेक्ष हो गया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार रात उपराज्यपाल नजीब जंग से मुलाकात की और उन्हें अपनी कैबिनेट का इस्तीफा सौंपा। लगभग एक महीने तक चले इस हाई वोल्टेज ड्रामे में केजरीवाल सरकार पर पूरे देश की नजर थी।
भ्रष्टाचार उखाड़ फेंकने का दावा करने वाले जिस ‘जनलोकपाल’ बिल के सहारे केजरीवाल ने अन्ना हजारे के साथ मिलकर अपने आंदोलन की शुरुआत की थी शुक्रवार को उसी बिल को माध्यम बनाकर अपनी नई नवेली सरकार का अंत किया। केजरीवाल ने तो इस पूरे घटनाक्रम के लिए भाजपा और कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया वहीं उनके विरोधी मानते हैं कि इस इस्तीफे से केजरीवाल ने लोकसभा चुनाव की बिसात तैयार की है।
लेकिन एक वर्ग यह भी मानता है कि केजरीवाल ने वही काम किया जो कुछ साल पहले भाजपा ने राम मंदिर के मुद्दे पर किया था। उन्होंने अयोध्या में जनता से वादा किया था कि वह सत्ता में आते ही राम मंदिर का निर्माण कराएंगे लेकिन सत्ता में आने के बाद भाजपा के लिए राम मंदिर कोई मुद्दा न रहा। लेकिन हर चुनाव के पहले वह राम मंदिर की बात जरूर करती है ताकि अपने वोट बैंक को पुख्ता किया जा सके। केजरीवाल ने भी जनता से जनलोकपाल के मुद्दे पर यही काम किया है। वह जानते थे कि जिस जनलोकपाल कि वह बात कर रहे हैं उसका ना तो भाजपा समर्थन करेगी और ना ही सरकार में उनको समर्थन दे रही कांग्रेस।
आज का मुद्दा
इस्तीफे के जरिए जनलोकपाल को मुद्दा बनाए रखना चाहते हैं केजरीवाल?
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