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अपने एक बयान में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कैबिनेट में साफ छवि के लोगों को जगह दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार देश का दुश्मन है और संविधान के संरक्षक की हैसियत से प्रधानमंत्री से अपेक्षा की जाती है कि वह ‘अवांछित‘ व्यक्तियों को मंत्री न नियुक्त करें।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर कोई फैसला देने से इनकार कर दिया है और इसे प्रधानमंत्री के विवेक पर छोड़ दिया है। इससे यह जाहिर होता है कि जनहित याचिका के जरिए न्यायपालिका कार्यपालिका के उन कामों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती जो उनके अधिकारों जुड़ी हुई हैं।
अब सवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने खड़ा होता है कि उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में नेताओं को जगह देने के लिए योग्यता का पैमाना क्या रखा है? दागियों को अपने मंत्रिमंडल में शामिल करके क्या वह यह संदेश देना चाहते हैं कि मंत्री बनने के लिए शैक्षणिक और नैतिक योग्यता नहीं बल्कि दागी/अपराधी होना जरूरी है ?
वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते उनका मानना है कि जब तक व्यक्ति पर लगे आरोप पूरी तरह से साबित नहीं हो जाता तब तक वह व्यक्ति निर्दोष है और मंत्री बनने के लिए योग्य भी।
आज का मुद्दा
मंत्रिमंडल में नेताओं को जगह देने के लिए क्या योग्यता होनी चाहिए ?
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