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कांग्रेस पार्टी के खिलाफ पूरे देशभर में जिस तरह का माहौल है उसको देखते हुए पिछले कुछ महीनों से केंद्र सरकार जनहित से संबंधित क्रांतिकारी फैसले ले रही है। 50 लाख केंद्रीय कर्मचारी तथा 30 लाख पेंशनभोगियों को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार ने 7वां वेतन आयोग का गठन कर दिया है।
इस बीच खबर यह भी आ रही है कि जाति के आधार पर आरक्षण समाप्त करने के लिए कांग्रेस में मंथन चल रहा है। बहुत ही कम मामलों में अपने विचार रखने वाले कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने कहा है कि “जाति के आधार पर आरक्षण समाप्त हो जाना चाहिए था। यह अब तक क्यों नहीं हुआ, क्योंकि निहित स्वार्थी तत्व प्रकिया में आ गए। क्या दलितों और पिछड़ों में सभी को आरक्षण का लाभ मिलता है? यह सब ऊपर वालों को मिलता है। सामाजिक न्याय और जातिवाद में अंतर है”। उन्होंने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से सभी समुदायों को इसके दायरे में लाते हुए आर्थिक रूप से कमजोर तबकों के लिए कोटा लागू करने का अनुरोध किया।
वैसे यह द्विवेदी का अपना निजी वक्तव्य है, लेकिन कहा यह भी जा रहा है कि राहुल गांधी भी पार्टी के घोषणा पत्र के लिए इस विषय पर जनता से सीधी राय ले रहे हैं। अब यहां सवाल उठता है कि क्या जनार्दन द्विवेदी की मांग इतनी आसान और सरल है कि भारत जैसे जटिल राजनैतिक परिदृश्य में संभव हो सकता है। चुनाव नजदीक आते ही उनकी यह मांग कहीं न कहीं जनता को भ्रम में डालती हुई दिखाई दे रही है।
वहीं आरक्षण विरोधी लोगों का मानना है कि द्विवेदी ने राहुल से जो मांग की है, वह पूरी तरह से उचित है। उन्हें लगता है कि आरक्षण संविधान प्रदत्त समानाधिकार पर कुठाराघात कर हमारे देश की एकता तथा सामाजिक सद्भाव को दीमक की तरह खोखला करता जा रहा है।
आज का मुद्दा
आरक्षण किस आधार पर होना चाहिए- आर्थिक या जातिगत?
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