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एक अहम फैसले में देश की सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लिव-इन संबंध स्थापित करना न किसी तरह का अपराध है और न ही ऐसा करना पाप है, लेकिन संसद को इस तरह के संबंधों में रह रही महिलाओं और उनसे जन्में बच्चों की रक्षा के लिए कानून बनाना चाहिए। न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा है कि संसद को इन मुद्दों पर गौर करना है ताकि महिलाओं और इस तरह के संबंधों से जन्में बच्चों की रक्षा की जा सके, भले ही इस तरह के संबंध विवाह की प्रकृति के संबंध नहीं हों।
सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक कथन को जहां एक तरफ कुछ लोग बदलते सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य में अनुकूल निर्देश मान रहे हैं वहीं दूसरी तरफ रुढिवादी मान्यताओं के लोग कोर्ट के इस फैसले से बेहत ही आहत हैं। उनका मानना है कि जो चीज देश में सामाजिक रूप से अस्वीकार्य हो उसको कैसे बढ़ावा दिया जा सकता है। उनके अनुसार कोर्ट का यह निर्देश भारतीय सामाजिक संरचना में दरार का संकेत दे रहा है।
आज का मुद्दा
लिव इन मामलों पर कानूनी सुरक्षा के लिए पहल होनी चाहिए या फिर यथास्थिति कायम रहनी चाहिए?
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