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उच्च और जिम्मेदार पद पर बैठा कोई भी व्यक्ति जब कोई बात कहता है तो उसका प्रभाव बहुत दूर तक होता है। इसलिए उससे यह उम्मीद की जाती है कि जब वह कोई बयान दे या फिर टिप्पणी करे तो पूरे होशो-हवाश में हो और कोई भूल न करे। भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी ने तो ठान लिया है कि वह लगातार भूल करते रहेंगे। हाल ही के एक चुनावी रैली में नरेंद्र मोदी ने मोहनदास करमचंद गांधी की जगह महात्मा गांधी को मोहनलाल करमचंद गांधी के नाम से संबोधित किया। वह इस तरह की भूल पहले भी करते आए हैं। इससे पहले एक रैली के दौरान मोदी ने चंद्रगुप्त को गुप्त वंश का बताया जबकि चंद्रगुप्त मौर्य वंश के संस्थापक थे। मोदी ने तक्षशिला को बिहार में बताया जबकि यह पाकिस्तान में है।
नरेंद्र मोदी की तरफ से लगातार हो रही तथ्यात्मक गलतियों की वजह से अब सवाल उठ रहा है कि क्या मोदी आने वाले वक्त में उन 1 अरब 20 करोड़ लोगों का नेतृत्व कर पाएंगे जो बदलाव की उम्मीद लगाए बैठे हैं। इस मुद्दे पर जहां एक तरफ मोदी के विरोधी ऐतिहासिक तथ्यों की ठीक जानकारी नहीं होने पर उन्हें इतिहास का ट्यूशन लेने की सलाह दे रहे हैं वहीं दूसरी तरफ भाजपा इस मुद्दे को ज्यादा तूल न देने की बात कह रही है।
आज का मुद्दा
तथ्यात्मक गलतियों और लच्छेदार भाषण से बदलाव की कितनी उम्मीद ?
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