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एक-दूसरे को नीचा दिखाना तथा खुद के अस्तित्व को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाना आज की राजनीति का कटु सत्य बन चुका है। जब भारत में संसदीय शासन प्रणाली को लागू किया गया तब देश के जनप्रतिनिधियों से यह उम्मीद की गई थी कि वह संसद की गरिमा और भारत की जनता के विश्वास को और अधिक मजबूत करेंगे, लेकिन हो रहा है इसका ठीक उलटा।
लोकसभा में गुरुवार जो हुआ उसने पूरे देश का सिर शर्म से झुका दिया है। भारतीय संसद की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले अभूतपूर्व घटनाक्रम में तेलंगाना विरोधी आंध्र प्रदेश के एक सांसद ने लोकसभा में माइक तोड़े, मिर्ची स्प्रे किया, जिससे तीन सांसदों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा तथा बाद में सीमांध्र क्षेत्र के 16 सदस्यों को निलंबित कर दिया गया। वैसे इस तरह की शर्मसार करने वाली घटना केवल संसद में ही नहीं बल्कि पूरे देश के अधिकतर प्रांतों में हो रही है।
कुछ जरूरी सवाल
1. यह कौन सी संस्कृति उत्पन्न हो रही है जहां जनता के चुने हुए नुमाइंदे अपने आपे से बाहर हो रहे हैं?
2. क्या बातचीत और चर्चा का वह दौर समाप्त हो चुका है जब कभी इतिहास में किसी मुद्दे पर स्वीकृति और अस्वीकृति लेनी होती थी तो गरिमा के साथ आसानी से मिल जाती थी।
आज का मुद्दा
जनता के चुने हुए नुमाइंदे क्यों हो रहे हैं आपे से बाहर?
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