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जो कहीं भी संभव नहीं वह राजनीति में जरूर संभव है। चुनाव नजदीक आते ही कौन सी पार्टी या नेता किसके पाले में चला जाए यह दृढ विश्वास के साथ कोई भी नहीं कह सकता। कल तक दुश्मन रहने वाली पार्टी आज दोस्त बन जाए यह केवल भारतीय राजनीति में ही संभव है। हालिया उदाहरण आप देख सकते हैं कि किस तरह से केजरीवाल ने कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में सरकार बनाई, इसके बाद मोदी को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानने वाली लोक जनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान भी राजनैतिक फायदे के लिए एनडीए में शामिल हो गए।
अब कहा यह जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी अपने पुराने साथी शिव सेना को नाराज करके महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) की तरफ हाथ बढ़ा रही है। एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे ने सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए बीजेपी नेता नितिन गडकरी के उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया जिसमें कहा गया था कि एमएनएस पार्टी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेगी। राज ने इसके साथ ही शिवसेना के खिलाफ अपने ज्यादातर उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर दी। हालांकि राज ठाकरे ने कहा कि उनकी पार्टी के चुने गए सांसद पीएम बनाने के लिए नरेंद्र मोदी का समर्थन करेंगे। उधर भाजपा ने भी राज ठाकरे के इस कदम का स्वागत किया है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या भारतीय जनता पार्टी अपने पुराने साथी शिव सेना का साथ छोड़ देगी? क्या वह एमएनएस को साथ लेकर लोकसभा चुनाव में जीत के सपने देख रही है? सवाल एक और है, अगर भाजपा ने राज ठाकरे के समर्थन से सरकार बनाई तो इससे करोड़ो उत्तर भाषी जो मुंबई में एमएनएस कार्यकर्ताओं की प्रताड़ना के शिकार होते हैं, उन्हें आघात नहीं पहुंचेगा?
आज का मुद्दा
यदि भाजपा राज ठाकरे के समर्थन से सरकार बनाने पर विचार कर रही है तो क्या इससे करोड़ो उत्तर भाषी नाराज हो जाएंगे?
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