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यह तो सभी जानते हैं कि हमारे देश की राजनीतिक पार्टियां किसी भी मुद्दे का राजनीतिकरण करने में तनिक भी देर नहीं लगातीं।. ताजा उदाहरण है पटना के गांधी मैदान में हुआ सीरियल ब्लास्ट। हाल-फिलहाल में लौहपुरुष वल्लभभाई पटेल पर राजनीति बड़े ही जोरों से चल रही है। चुनावी साल में लौहपुरुष वल्लभभाई पटेल को बीजेपी और कांग्रेस अपना करीबी बताने में जुटी हैं।
बीते मंगलवार को अहमदाबाद में सरदार पटेल की याद में एक संग्रहालय के उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी साथ दिखे. दोनों ने अपने-अपने तरीके से सरदार वल्लभभाई पटेल की व्याख्या की। नरेंद्र मोदी ने ये कह कर नया विवाद पैदा कर दिया कि अगर सरदार पटेल भारत के पहले प्रधानमंत्री होते तो देश की तस्वीर अलग होती। उधर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उसी मंच से कहा कि सरदार पटेल हमेशा एक कांग्रेसी नेता रहे और धर्मनिरपेक्षता के हिमायती थे।
ऐसा नहीं है कि ये राजनीतिक पार्टियां देश के महापुरुषों पर पहली बार राजनीति कर रही हैं। स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी और बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर आदि को राष्ट्रीय पार्टियों सहित क्षेत्रीय पार्टियां भी अपना बताती रही हैं। अब सवाल उठता है कि क्या देश के महापुरुषों और स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों पर राजनीति करना सही है? यह महापुरुष किसी पार्टी विशेष के हैं या फिर संपूर्ण देश के?
आज का मुद्दा
सरदार पटेल पर किसका हक ?
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