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अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री व समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी को सबसे बड़े सेकुलर दल का तमगा देते हुए कहा कि वाराणसी में उनका प्रत्याशी सांप्रदायिक शक्तियों से न सिर्फ मुकाबला करेगा बल्कि उन्हें पराजित भी करेगा। उनके इस बयान से जाहिर होता है कि उनकी पार्टी देश की एकमात्र ऐसी पार्टी है जो विभिन्न समुदायों के बीच सांप्रदायिक सौहार्द्र और भाईचारे को बढ़ावा देती है। यह तो एक बात हुई।
अब सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले पर थोड़ा गौर फरमाते हैं, जो उसने मुजफ्फरनगर में हुए दंगों पर दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने मुजफ्फरनगर में हुए दंगों पर सुनवाई के दौरान कहा कि दंगों को रोकने में यूपी सरकार नाकाम रही। कोर्ट ने माना शुरुआती दौर में ही दंगों को रोकने में यूपी सरकार ने लापरवाही बरती। आपको बताते चलें पिछले साल सितंबर में मुजफ्फनगर और शामली में हुए दंगों में 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी और सैकड़ों परिवार बेघर हुए थे। ढुलमुल और पक्षपाती रवैये की वजह से इस मामले में यूपी की अखिलेश सरकार की काफी आलोचना की गई।
कोर्ट के इस फैसले के बाद अब सवाल यह उठता है कि खुद को धर्मनिरपेक्ष (सेकुलर) दल मानने वाली समाजवादी पार्टी जमीनी स्तर पर कितनी सेकुलर है? क्या समाजवादी पार्टी की धर्मनिरपेक्षता का संबंध केवल राजनीतिक लाभ लेने से है?
आज का मुद्दा
क्या समाजवादी पार्टी की धर्मनिरपेक्षता का संबंध केवल राजनीतिक लाभ लेने से है ?
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