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कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बारे में अकसर कहा जाता है कि वह जनता से खुद को जोड़ नहीं पाते। उनकी रैलियों और सभाओं में उतनी भीड़ नहीं उमड़ती जितनी भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी की सभाओं और रैलियों में उमड़ती है। ऐसे में क्या राहुल, मोदी के मुकाबले जनता से ज्यादा जुड़ नहीं पा रहे हैं?
जानकारों की मानें तो जनता से जुड़ाव को लेकर जितना सक्रिय राहुल गांधी दिखाई देते हैं उतना तो आज के दौर में केवल ‘आप’ के नेता अरविंद केजरीवाल ही दिखते हैं। भले ही इसका फायदा उन्हें ना हो रहा हो। एक तरफ जहां मोदी बड़ी-बड़ी रैलियों और हाइटेक सभाओं से जनता के बीच जाकर अपनी बात पहुंचाते हैं वहीं राहुल सड़कों, गलियों और चौपालों में जाकर अपनी बात जनता के सामने रखते हैं तथा उनकी समस्या को सुनते हैं। इस तरह की प्रवृति नरेंद्र मोदी में बहुत ही कम दिखाई दी है।
विश्लेषकों का मानना है कि कार्यकर्ता से लेकर आम आदमी तक हर कोई राहुल गांधी से मिल सकता है, उनसे बातें कर सकता है, लेकिन मोदी के साथ ऐसा नहीं है। वह रैलियों में भी जब जनता को संबोधित करते हैं तो जनता से दूरी बनाकर। मोदी जनता के पास जाकर उनकी समस्या को नहीं सुनते। उनके व्यवहार और हाव-भाव को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे वह भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री हैं।
आज का मुद्दा
नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी में से कौन जनता के ज्यादा करीब है?
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