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पुरानी कहावत है “’चोर चोरी से जाए, पर हेराफेरी से ना जाए”’। आज के समय में यह कहावत देश के अधिकतर राजनेताओं पर मुफीद बैठती है। आज भारतीय लीडर अपनी दबंगई के लिए पूरे विश्वभर में विख्यात हैं। संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग कितना भी सख्ती कर ले यह अपने करतूतों से बाज नहीं आने वाले। इसकी बानगी तब देखने को मिली जब हाल ही में राकांपा नेता शरद पवार ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि पिछली बार 2009 में सतारा और मुंबई में एक दिन ही मतदान हुआ। लोग अपने गृहनगर गए। परंतु इस बार सतारा में 17 अप्रैल और मुंबई में 24 अप्रैल को मतदान होना है। उन्होंने कहा कि सतारा में राकांपा के चुनाव चिन्ह घड़ी पर वोट दें और फिर यहां भी घड़ी पर वोट करने के लिए वापस आ जाएं।
शरद पवार के इस गैर-जिम्मेदाराना बयान से अब विवाद खड़ा हो गया है। हालांकि, बाद में पवार ने यह कहते हुए अपने इस बयान से पल्ला झाड़ने की कोशिश की कि उन्होंने ‘हल्के-फुल्के अंदाज’ में वह बात कही थी, लेकिन कहा यह जा रहा है कि मुख्य चुनाव अधिकारी के कार्यालय ने मामले पर कार्रवाई आगे बढ़ाने से पहले केन्द्रीय मंत्री के भाषण की वीडियो या ऑडियो रिकार्डिंग हासिल करने की प्रक्रिया शुरू की है।
अब यहां सवाल यहां उठता है कि देश के इतने वरिष्ठ नेता अगर इस तरह के बायन देंगे तो हम कैसे चुनाव सुधार की उम्मीद कर सकते हैं। इस अलावा सवाल चुनाव आयोग पर उठना लाजिमी है। आखिर कब तक चुनाव आयोग दांत और नाखून विहीन संवैधानिक संस्था बना रहेगा?
आज का मुद्दा
आखिर कब तक चुनाव आयोग दांत और नाखून विहीन संवैधानिक संस्था बना रहेगा?
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