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आख़िरी पेड़

मेरे विचार आपके सामने
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आख़िरी पेड़
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मेरी उम्मीदों को टूटने की चोट से
जब प्रतिक्रिया स्वरूप
मेरी आत्मा का लहू
मेरी आँखों से लावा बन
बह निकलता था
जब तुम्हारी छांव में
शीतल हवा सी बांह से
सूखते -पोंछते मेरे आँसू
कब ठहर जाते थे पता नहीं॥

हर रिश्ते की महक
तुम्ही से बिखरी
मेरे आँगन में थे तुम
जैसे बरखा में छतरी
निशां मेरे बचपन के
आज तक तुम पर थे
यौवन की पहली अंगड़ाई भी
मेरी तुम्ही से उतरी॥

मेरे मरुस्थली जीवन के
ए! आख़िरी पेड़ बताओ

साखों ने साथ छोड़ा पहले
या पत्ते पहले जले थे
या उन साँपों ने डसा
जो तुम्हारी आस्तीन में पले थे
वो कौन था विश्वासघाती ॥

मेरे मरुस्थली जीवन के ए! आख़िरी पेड़
कैसे ढह गए तुम पता नहीं .. …………… पूनम राणा ‘मनु’


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