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जागरण जंक्शन पर मेरा सफर कुछ खट्टे -मीठे पल “Feedback”

मेरे विचार आपके सामने
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जागरण जंक्शन के मंच पर मेरा सफ़र feedback


आदरणीय मेरे मित्र गण ,बंधुगण ,बहनें  और जागरण जंक्शन की टीम !
सादर नमस्कार !
यूं तो दैनिक  जागरण से मेरा नाता पुराना है।कभी जब मैं  छोटी थी ,रही होंगी 8-9 साल की तब मेरे पिताजी के सीधे हाथ की हड्डी एक दुर्घटना वश टूट गई ,वो एक वकील थे । उन दिनो जब भी कोई एप्लीकशन या  मुकदमे की फाइलों में जो कुछ भी लिखना होता ,वो बोलते जाते मैं लिखती जाती थी । इसी मे से एक काम होता था दैनिक जागरण में मुख्य रूप से लिखी कोई घटना (कानूनी धारा जैसी  )या रिपोर्ट को काट कर संबन्धित विभाग मे कुछ कागजात के साथ नत्थी कर भेजना । भेज तो पिताजी देते थे ।पर मेरा दैनिक-जागरण से लगाव उसी समय शुरू हो गया था ।एक-एक खबर ध्यान से पढ्ना और पिताजी से विचार-विमर्श करना ,उसकी कटिंग को संभाल कर रखना तथा जहां पर जरूरत हो वहाँ पर नत्थी करना मेरा दैनिक कार्य होता था
मेरे कई अखबारों में आर्टिकल तथा कवितायेँ छपती रहती हैं ।पर घर मे आज भी दैनिक जागरण ही आता है । दैनिक जागरण में भी मेरे यदा-कदा मेरे छोटे-मोटे आर्टिकल आते रहते हैं ।
इससे मेरा लगाव जाने क्यूँ है मैं नहीं जानती । जोश का  तो मेरे पास आपको पहला संस्कारण  भी मिल जाएंगा ॥
जागरण जंक्शन से मेरी पहली मुलाकात
जागरण जंक्शन से जुड़ना सयोंग से हुआ मैं अपने गुरु जी श्री निर्मल गुप्त जी की फेस बुक वाल पर कुछ देख रही थी वही पर श्री सूर्यकांत द्रीवेदी जी के ब्लॉग का लिंक दिखाई दिया ।आर्टिकल अच्छा था उसपर कमेन्ट देने का मन हुआ तो क्लिक करते ही जागरण जंक्शन का ब्लॉग खुल गया धीरे-धीरे देखा तो मैं हर्षित हो उठी ,जो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था वो मेरे सामने था ,‘‘अपने सपने व अपने भावों को व्यक्त करने की स्वतन्त्रता प्रदान करने वाला मंच ” देखकर मन झूम उठा । झट-पट अपना खाता खोला और ब्लॉग के मंच से जुड़ गई ,जिसे भी पढ़ूँ वही मुझसे बेहतर … मज़ा आ गया ,मैं पढ़ती तो रही पर कमेन्ट न कर पाई ।कारण तकनीक कुछ समझ न आ रही थी । मुझे वैसे भी नेट कम चलाना आता है । फिर मै कोशिश करती रही और मंच तक पहुच ही गई, सब एक से एक बेहतर लिखने वाले -पढ़ने वाले । मंच बहुत अच्छा लगा और मैंने भी अपनी रचना पोस्ट कर दी । सब लोगों ने उत्साह बढ़ाया मेरा स्वागत किया ,बहुत अच्छा लगा । मन में थोड़ा सा डर था कि पता नहीं जमे-जमाये लोग मुझे कैसे टिकने देंगे !पर सब मेरा भ्रम साबित हुआ ।
हर व्यक्ति मंच का हीरे जैसा है । सब लोग बुद्धिजीवी हैं ,न द्वेष न ईर्ष्या । मंच  मुझे  मेरे परिवार सा लगा फिर तो मैंने एक के बाद एक कई रचनाएँ पोस्ट की । मेरी रचनाएँ जहाँ बेस्ट ब्लॉग में शामिल हुयी वहीं मुझे बेस्ट ब्लॉगर ऑफ द वीक का ताज भी मिला । मन मयूर सा झूम उठा ।बेस्ट ब्लॉगर चुने जाने के बाद तो यूं लगा जैसे जेजे ने मेरे पंखों को उड़ान दे दी और मेरे भावों में इंद्र्धनुषी रंग भर दिये … सचमुच धन्यवाद जागरण जंक्शन !!!

मुझे आपसे कई बार शिकायत हुई ,हर बार शिकायत अपने आप गलत सी लगी क्यूंकी मेरे ज्यादा नेट न जानने के कारण जो भी परेशानी होती थी मुझे उसका कारण मैं आपको समझती थी पर अब सब ठीक है
जागरण जंक्शन की  टीम अपने आप में इतनी दक्ष है कि इसमें कोई संदेह नहीं कि वह इस मंच को  और भी बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत  होगी।बस थोड़ी सी यही समस्या है कि कमेन्ट देने में समय लगता है जिस कारण चाहते हुये भी अपने साथी रचनाकारों कि रचनाओं पर टिपन्नी जल्दी-जल्दी नहीं दे पाती हूँ ।
इसे बेहतर बनाने के लिए बस इतना और कीजिये ,दिन रखिए

जैसे – पहला सप्ताह कविताओं का
दूसरा सप्ताह लेख का
तीसरा सप्ताह -आपका दिया हुआ टोपिक
चौथा सप्ताह गज़ल इत्यादि के लिए हो ।

इससे हर व्यक्ति को अपनी प्रतिभा दिखने का मौका मिलेगा ,और हर रचना के बीच में कम-स- कम 7 दिन का अंतर रखिए ।

उम्दा तकनीक और उम्दा रचनाकर -ऐसा मंच मिला  मुझे  ,मैं यही तो चाहती थी । बहुत  दिनो से तलाश थी आखिर कार मैंने तुम्हें पा ही  लिया ।ज्यादा लंबा सफर अभी तक मैंने जेजे के साथ तय नहीं किया है ,पर इरादा काफी लंबा जाने का है , एक बचपन कि सखी  जैसा है जागरण जंक्शन । जिससे या जिस पर मैं अपने मन की  हर भावना शेयर कार सकती हूँ
बस इतना ही कहूँगी इस मंच के साथ मेरा हर पल यादगार है ।
एक  कविता आपके लिए …जेजे

_________________________
तुम निर्झर झरने से
बहते हो
चुप !कोई शोर नहीं
बस एक टिप-टिप
श्याम वर्ण पर
ओजस्वी
धरती की प्यास बुझाते
पर कोई कर नहीं ॥
मन के मयूर के पंख
लाल, नीले, पीले
भिज्ञ-अनभिज्ञ
पर एक इन्द्र-धनुष
दिखाते -रिझाते
पर एक मन,है
कहीं जो  तर नहीं  ॥
सब तृप्त -अतृप्त से निहारते
कुछ है जो छूट जाता उनका,
पर तुम चुप
अपना प्रेम सभी पर बरसाते॥
और मन ही मन
हृदय में पाले एक आस
मैं भी
हर बरस तुम्ही को
मिलने चली आती ….
कि
कभी तो कहीं से दिख जाऊँगी
मैं भी तुम्हें
तब तब…
मेरे रंग के ये लाल डोरे,
लिपट जाएंगे तुमसे
तब शायद कह दो तुम मुझसे
मैं तुमसे ही मिलने आता हूँ
हाँ तुमसे ही मिलने आता हु
….. मेरी लाल बहूटी ……….पूनम’मनु’

लाल बहूटी ____________एक बहुत ही सुंदर लाल रंग की  घास, जो सावन के महीने मे कहीं-कहीं बहुत कमी के साथ दिखती है ॥
धन्यवाद  ……………….

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