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भविष्य की नींव

मेरे विचार आपके सामने
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भविष्य कि नींव

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हमारे देश में बच्चों की प्रारम्भिक शिक्षा के प्रति लोग अब भी इतने जागरूक नहीं हैं । कुकुरमततों की तरह फैल रहे ये पब्लिक स्कूल बच्चो के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं ।रोज़-रोज़ बदलते टीचर न तो अपना कार्य समय पर समाप्त करवा पाते हैं ,वहीं दूसरे टीचर के द्वारा पढ़ाये जाने पर पहले टीचर या दूसरे टीचर की पढ़ाई का अंतर बच्चों को कनफ्यूज़ कर देता है । वहीं एक ही कक्षा में ढेर बच्चों का दाखिला भी उन्हे अच्छा माहौल प्रदान नहीं कर पाता। अच्छे स्कूलों में सीमित बच्चों का रखना और उनकी मन-मुवाफ़िक फीस वसूलना  कुकुरमततों की तरह फैले गली- गली में इन पब्लिक स्कूलों की चाँदी काटने का सबब बनता  है। थोड़ी सी समृद्ध स्थिति वाला परिवार अपने सभी बच्चों को  पब्लिक या इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाना चाहता है । मगर वो इस बात की छान- बीन नहीं करते कि जिस स्कूल में वह अपने बच्चों का दाखिला कराने जा रहेहैं ,वहाँ पर पढ़ाई कि स्थिति क्या है , केवल सही तरीके से पहनी ड्रेस और ढेर पुस्तकें इस बात का संकेत कतई नहीं है कि उस स्कूल कि पढ़ाई भी अच्छी होगी ।
वैज्ञानिक  दृष्टि से यह सिद्ध है कि बाल्यकाल के प्रथम या शुरुआती वर्षों में बुद्धि के विकास की दर तेजी से बढ़ती है । इस अवस्था में जो भी बच्चों को पढ़ाया या सीखाया  जाता है,वह आसानी से ग्रहण कर लेता है ।जिसमें से वो काफी कुछ याद रख पाता है । इसलिए सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि बच्चों के समुचित शारीरिक विकास के साथ-साथ उनकेबुद्धि के विकास पर भी समुचित ध्यान दिया जाना चाहिए । ऐसी स्थिति में बच्चों को अच्छे संस्कार व शिक्षा देने वाले स्कूलों मे ही दाखिला करवाया जाना चाहिए । ताकि बच्चों की नींव (बेस) मजबूत हो ।और उनका भविष्य अच्छी शिक्षा से  समृद्ध बने । इसलिए ये ज़रूरी है कि इस दिशा में लोगों को जागरूक किया जाए।(खासकर ग्रामीण इलाको में जहां माँ- बाप तो ज्यादा पढे लिखे नहीं होते पर अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं )कि वो किसी भी परिवार कि देखा- देखी या निकट स्कूल होने कि वजह से किसी भी ऐसे स्कूल मे अपने बच्चो का भविष्य ख़राब करने से बचें । जिन स्कूलों में बच्चों कि प्रारम्भिक वर्षों कि पढ़ाई को गंभीरता से न लिया जाता हो ।और इस राय से भी बचें कि अभी तो बच्चा है । अभी क्या ज़ोर देना पढ़ाई पर ,जब बड़ा होगा तो पढ़ लेगा ।वही इस स्थिति से भी बचें कि बच्चों को जबर्दस्ती पढ़ने बैठाया जाए । उनकी रुचिनुसार विषय को उनके मन के अनुसार वक़्त में उन्हे पढ़ने कि छूट मिलनी चाहिए । बस सतर्कता से उनपर निगाह रखी जानी चाहिए ।शुरू के पनपे गुण बच्चों में अंत तक रहते हैं ,इसलिए आव्शयक्ता है तो बस थोड़ी सी सावधानी कीऔर ये ध्यान रखने की कि आप जिन हाथों के जरिये अपने बच्चो के भविष्य की नीव रखना चाहते हैं , वो इस काबिल है भी के नहीं । …….. पूनम राणा ‘मनु’

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