मृत्यु की कामना
कई बार ऐसा होता है जब अपना कोई , बिलकुल अपना किसी बहुत ज़्यादा कष्ट से गुजरे और लगातार गुजरे तब बेबस मनुष्य केवल ईश्वर से ही प्रार्थना करता है। सबकी प्रार्थनाएँ अलग-अलग होती हैं । ऐसा ही मेरे साथ हुआ , जब मैंने अपनी माँ का कष्ट देखा तो ,मेरे मुँह से भी एक प्रार्थना उनके लिए निकली । और वो ईश्वर ने सुन ली।पर उस प्रार्थना के पूरा होने पर जो अफसोस मुझे हुआ , वो पल-पल मेरी आँखें गीली किए रहता है । उसी पश्चाताप में निकली ये रचना आप सबके सामने …………… और माँ से माफी की उम्मीद में …….
मृत्यु की कामना
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तेरी पथराई सी आँखें
जब सूख गयी थी
दो रोटी के निवाले की मर
जब तेरी भूख गई थी
तू बैठी रही कई महीने ऐसे
जैसे कोई ले ली हो समाधि
जीने की चाह तेरी खत्म हो गई
सारी इच्छायें जैसे नदी मे बहा दी
तेरे हाथ – पैरों की वो ठिठरन
जब मैं महसूस करती थी
जहां-तहां से तुझे ढकने को
क्या-क्या प्रयास करती थी
सो बार पुकारो जब माँ माँ
तब एक हल्की हुंकार तू भरती थी
तुझे पल-पल मरते देख के माँ
मैं भी पल=पल ही मरती थी
तेरी मृत्यु की कामना
मैंने तब की थी माँ…..
एक-एक सांस लेने में कष्ट
जब तुझको हुआ करता था
तेरे उस दर्द से माँ
मेरा दिल बहुत डरता था
कई महीनो की मौत
जब तू रुक के झेल रही थी
उसी मौत को मैंने देखा
जो तुझसे खेल रही थी
तेरी मृत्यु की कामना
मैंने तब की थी माँ……….
मेरी सुनली ईश्वर ने
और तू चली गई
तूने मुझे जन्म दिया था
तूने मुझे सब दिया था
बस एक बार आखिरी चीज़
तू मुझको माफ कर दे माँ
मैंने तेरी मृत्यु की कामना
की थी माँ …………………….. पूनम राणा ‘मनु’
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