RASHTRA BHAW
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प्रिय जीवन है शमशान मेरा!
प्रथम पहर में महानिशा रव
तुम बिन जीवन के सब कलरव
स्वाँग मात्र है चक्रव्यूह यह,
मैं ही पांडव मैं ही कौरव।
हृदयकोश के चरम लक्ष्य तक
अति दुष्कर है उत्थान मेरा।
प्रिय जीवन है….
स्वप्नों की छाया आघातित
हर वरदान स्वयं में श्रापित
चिर अतीत अब तक सहमा है
थकित चकित विस्मित विस्फारित।
दृढ़ विश्वास भ्रमित शंकित है,
क्या यही सत्य आख्यान मेरा?
प्रिय जीवन है…
मार्तण्ड के अंतस में तम
प्राची को हो स्वयं दिशाभ्रम
गीतों के उर में निर्जनता,
विरहग्रसित हो प्रतिक्षण संगम
तुम बिन यह मेरी परिभाषा,
तुम बिन यह उपमान मेरा।
प्रिय जीवन है….
स्मृतियों का यह आराधन
रह रहकर तेरा सम्बोधन
नहीं सत्य शाश्वत विधान है
यह विछोह यह एकल साधन।
अहो सनातन प्रकृति प्रणय हो,
शव से शिव में उत्थान मेरा।
प्रिय जीवन है…
-© वासुदेव त्रिपाठी
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