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शादी की 33वीं वर्षगांठ पर ” मन की बात “

Udai Shankar ka Hindi Sahitya
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शादी की 33वीं वर्षगांठ पर
“मन की बात”
उदय शंकर श्रीवास्तव, कटरा बाजार, गोंडा, उ॰प्र॰ 271503

साथियों मेरे लिए ये पिछले तीन चार दिन बड़े कठिन बीते हैं। शादी की साल गिरह पर मैं कोई कविता पढूं यह मेरी बीवी भी चाहेगी और शायद आप सभी भी। अगर कविता नहीं बन पाई तो बीवी कहेगी नेत्रदान पर तो कविता लिखते हैं और जो मैंने अपना जीवन आपको दान कर दिया उस पर आप क्योँ कुछ नहीं लिख सके। तो मैं पुरे मनोयोग से अपनी शादी की 33वीं वर्षगांठ पर कोई कविता लिखने का प्रयास कर रहा था जो बन नहीं पा रही थी। पांच जून नज़दीक आता जा रहा था। मैं पन्ने पर पन्ने लिखता और फाड़ता रहा।
दो बिलकुल अनजान लोगों का मिलना। एक दूसरे में समर्पित होकर दोनों का इतना घनिष्ट और एकाकार हो जाना कि दूसरे कोई भी रिश्ते उस प्यार उस विश्वास के आगे टिक ही नहीं पाते। शादी के इन वर्षों में इतने उतार चढ़ाव हैं इतनी खट्टी मीठी यादें हैं कि उन्हें एक लयबद्ध छोटी सी कविता में कैसे लिखूं।
क्या मैं उन रातों का वर्णन करूँ जब हमारे बीच बातें खत्म नहीं हुईं और रातें छोटी पड़ गईं । या फिर उन रातों की बात करूँ जब हम अंक 36 बने रहे और रातें पहाड़ हो गईं ।
क्या मैं पति-पत्नी के उन चुटकुलों की बात करूं जहाँ पत्नी से छुटकारा पाने को आतुर पति-पत्नी की बातें हमें खूब गुदगुदाती हैं। मगर पत्नी से दो दिन का वियोग ही हमें तुलसीदास बना देती है।
कुछ समझ नहीं आ रहा था तो दो चार लाइनें यूं बन पाईं :-
आज मैं अपने प्रणय के गीत को कैसे लिखूं,
क्या एक दूजे में समर्पण की कहानी ही कहूं ,
क्या प्रेम रस के उन पलों को याद कर आहें भरूं,
या हमारे रार के तकरार की बातें करूं,
जब कविता आगे नहीं बढ़ी तो सोंचा बाहर टहलता हूँ शायद प्रकृति से कुछ क्लू मिल जाये। बाहर निकल कर देखा तो रात का सन्नाटा। पेड़, पौधे, बादल, आसमान, चाँद, तारे किसी से कोई क्लू नहीं मिला। अचानक वरांडे के ताखे में चिड़िया का एक जोड़ा शांत सुस्ताता हुआ या शायद सोता हुआ दिखाई दिया। अचानक लगा इनसे पूंछू, “भाई साहब आप सातों जन्मों में से कौन से जन्म का आनंद ले रहे हैं।“
वह दृश्य देख कर लगा कि हाँ वाकई जोड़े तो ईश्वर ही निश्चित करके भेजता है वरना इन पक्षियों की तो शादी नहीं होती फिर भी ये जोड़े में ही क्यों रहते हैं।
मन तो चंचल है। विचार उठने लगा कि पता नहीं पूनम के साथ यह मेरा कौन सा जन्म है। अगर पहला है तब तो अच्छा है। आगे छह जन्म और साथ रहने का मौका मिलेगा। अगर सातवां हुआ तब भी साथ नहीं छोडूंगा। पूनम के साथ सात जन्मों के फरदर एक्सटेंशन की दरख्वास्त करूंगा भगवान से। अगर दरख्वास्त मंजूर हुई तो ठीक वरना भगवान को पति-पत्नी वाली ड्यूटी से वालन्ट्री रिटायरमेंट के पेपर्स सौंप दूंगा।
इसी सब उधेड़ बुन में अन्दर आया तो देखा पत्नी जी गहरी निद्रा में हैं। सोती हुई पत्नी को देखकर प्यार कुछ ज्यादा ही उमड़ता है। क्योंकि आप स्वतंत्र रूप से उन्हें निहार सकते हैं और चिंतन कर सकते हैं। मैंने भी बिस्तरे का एक कोना पकड़ लिया और सोचने लगा। वाकई जीवन में चाहे कोई सुख आये या दुख आये अब हम दोनों ही एक दूसरे का ख्याल रख सकते हैं। माँ के बाद अब पत्नी ही है जो यह समझ जाती है कि मेरा पेट भरा है या नहीं भरा। मुझे कब दवा की जरुरत है कब दुआ की जरुरत है।
इसी सोच विचार के बीच किसी कवि की एक कविता याद आने लगी जो मैं आज यहां आप सबके समक्ष पत्नी को समर्पित कर रहा हूँ।
शून्य में भी चेतना का, पूर्ण एक आधार हो तुम।
हर सुखद अनुभूतियों में, बसा एक संसार हो तुम।।
अग्नि प्रज्ज्वलित हो चुकी, अब होम की बातें करें।
यज्ञ की संपूर्णता में, तेज़ बन साकार हो तुम।।
सात जन्मों तक रहेगा, साथ मेरा और तुम्हारा।
इन प्रचारित रीतियों का, खुला मंगलद्वार हो तुम।।
मैं भटकता जा रहा था, जिंदगी की राह पर।
पथ दिखाती सूक्तियों का, स्वयं एक उच्चार हो तुम।।
कुछ गढा कुछ अनगढ़ा, आकार है इन मूर्तियों का।
अनगढ़ी इन मूर्तियों में, प्रणय बन साकार हो तुम।।
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