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झुग्गी वाले बच्चे

Udai Shankar ka Hindi Sahitya
Udai Shankar ka Hindi Sahitya
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धूल-धूसरित तन है इनका ,
तन पर समुचित वस्त्र नहीं ,
लगता है ये कष्ट-मुक्त हैं ,
इन-सा कोई मस्त नहीं ।
बाल दिवस को ये क्या जानें ,
ये गाते हैं फिल्मी गानें ।
टूटे डब्बे जूठे बरतन ,
बजा रहे हैं खन-खन-खन ,
इन बच्चों का बैंड यही है ,
इनका डिज़्नीलैंड यहीं है ।
धक्का-मुक्की रार करेंगे ,
गाली में तकरार करेंगे ।
भूखे-पेट आशिक्षित रहकर ,
इधर-उधर बस मँडराते हैं ,
यूँ ही जब ये थक जाते हैं ,
झुग्गी में जाकर सो जाते हैं ।
पड़ी कड़कती धूप कभी तो ,
मिले इन्हें टप्पर की छाँव ,
सर्द-ठिठुरती रातें कटतीं ,
टायर-ट्यूब के जला अलाव ।
नहीं मयस्सर इनको ,
एक सुरक्षित घर का आँगन ,
नाले की नो-मैंस लैंड पर,
बीत रहा है इनका बचपन ।
सभी सुखों में पले-बढ़े जो ,
हर पीढ़ी धनवान बन गई ,
मगर अभागे इन बच्चों की ,
विपन्नता पहचान बन गई ।
नहीं रहा कोई अब शोषित ,
और नहीं कोई अब लाट ,
फिर क्यों अब भी होते हैं ,
हैव और हैवनॉट ?
जनतंत्र की मांग यही है ,
चलो मिटा दें अर्थतंत्र के ये दो फाट ,
मंथन कर लो चिंतन कर लो ,
करो उजागर सबके थाट ।
पर इतना तो करना ही होगा ,
ईश्वर से डरना ही होगा ,
आँगन राशन शिक्षा कपड़ा ,
अब इनको देना ही होगा ।
(उदय शंकर श्रीवास्तव)
कटरा बाजार ,गोण्डा
उ.प्र. २७१५०३
मो: 9716027886

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