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चुनावी – रंग

meri awaaz - meri kavita
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चुनावी – रंग

फिर आया चुनाव – फिर हुआ चुनाव,
चुनावी रंग में रंग में रंगा शहर और गॉंव ।
जनता फासने को नेता चले नये दांव ,
डूबे न इनकी मजधार में नाव ।।
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फूलों से भी जिनके छिल जाते पांव ,
खि‍न्न होते देख निरिह जनता के घाव ।
मरहम करने निकले वही- लिए प्रेम का भाव ,
अब उन्हें न घूप लगती न छांव ।।
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हर गली हर चौराहे पर डाले पड़ाव ,
जनता की सेवा में दिखाते बड़ी चाव ।
मिथ्या वादों की फिर वहीं कांव – कांव ,
‘देश में लाएंगे नया बदलाव’ ।।
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कुर्सी पाते ही बदल जाता बर्ताव,
जन-सेवा से निज-सेवा में होता झुकाव ।
देश में फैला जाति -धर्म-अलगाव ,
अपनी कुर्सी का करते बचाव ।।
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उदयराज़

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