फिर आया चुनाव – फिर हुआ चुनाव, चुनावी रंग में रंग में रंगा शहर और गॉंव । जनता फासने को नेता चले नये दांव , डूबे न इनकी मजधार में नाव ।। ****** फूलों से भी जिनके छिल जाते पांव , खिन्न होते देख निरिह जनता के घाव । मरहम करने निकले वही- लिए प्रेम का भाव , अब उन्हें न घूप लगती न छांव ।। ******* हर गली हर चौराहे पर डाले पड़ाव , जनता की सेवा में दिखाते बड़ी चाव । मिथ्या वादों की फिर वहीं कांव – कांव , ‘देश में लाएंगे नया बदलाव’ ।। ******* कुर्सी पाते ही बदल जाता बर्ताव, जन-सेवा से निज-सेवा में होता झुकाव । देश में फैला जाति -धर्म-अलगाव , अपनी कुर्सी का करते बचाव ।। ****** ————————————— उदयराज़
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments